Highlights
जवाराम महाराज को अपना गुरू माना और तप और माला फेरकर भक्ति का मार्ग अपनाया। केवदाराम बताते है कि वो अपनी पत्नि से बहुत ज्यादा प्रेम करते थे। अभावग्रस्त जिंदगी में उन्होंने पल-पल साथ दिया। मेहनत मजदूरी करके बच्चों को बड़ा करने में कोई कमी नहीं रखी उन्हें असमय पत्नी का साथ छोड़कर चले जाना सहन नहीं हुआ। आखिरकार संसार से बेपरवाही होने लगे और प्रभु भक्ति में मन लग गया।
                                            रानीवाड़ा | जालोर के रानीवाड़ा में एक साधु तेज धूप में रेत के अंदर साधना कर रहे हैं। साधक केवदाराम कई सालों से गर्मी के मौसम में इस तरह लगातार साधना कर रहे हैं। दूरदराज से श्रदालु उनकी भक्ति एवं आशीर्वाद के लिए इन दिनों रतनपुर आ रहे हैं।
रतनपुर निवासी 65 साल के केवदाराम मेघवाल बाबा रामदेव के आस्तिक भक्त है। साथ में, ब्रह्या विष्णु महेश को मानते है। केवदाराम कहते है कि 15 साल पहले उनकी पत्नी का स्वर्गवास होने से उनमें संसार से विरक्ति आने लगी। 
प्रभु की भक्ति में माला फेरने लगे, लेकिन एक बेटा दो बेटी होने के कारण सामाजिक जिम्मेदारी भी रही। तीनों संतानों की शादी के बाद उनकी भक्ति के साथ तपस्या शुरू हुई।
9 साल से वो गर्मी के तीन महिनों में बिना कपड़े पहने अपने ऊपर गर्म  रेती डालकर कड़ी धुप के समय मे 2 घंटे तक प्रभु के नाम माला फेरना शुरू किया। गांव में रहते तो गांव की नदी में और कही ओर गए तो वहां अनुकूल जगह पर इसी तर्ज पर प्रभु  की भक्ति लगातार जारी रही है। 
उन्होंने जवाराम महाराज को अपना गुरू माना और तप और माला फेरकर भक्ति का मार्ग अपनाया। केवदाराम बताते है कि वो अपनी पत्नि से बहुत ज्यादा प्रेम करते थे। 
अभावग्रस्त जिंदगी में उन्होंने पल-पल साथ दिया। मेहनत मजदूरी करके बच्चों को बड़ा करने में कोई कमी नहीं रखी। 
उन्हें असमय पत्नी का साथ छोड़कर चले जाना सहन नहीं हुआ। आखिरकार संसार से बेपरवाही होने लगे और प्रभु भक्ति में मन लग गया।
हमने देखा तो साधक केवदाराम का आधे से ज्सादा हिस्सा रेती में धसा हुआ था। माला पर तेजी से अंगुलिया चल रही थी। पास में काफी तादात में श्रद्धालु भी दर्शन करने आए हुए थे। गर्मी का पारा आज भी 45 डिग्री पार होने के बावजूद साधु केवदाराम पर कोई असर नहीं दिख रहा था। चेहरे से पसीना निकल रहा था।
काफी इंतजार करने के बाद साधक की साधना पूरी होने पर वो रेती हटाकर खड़े हुए। उनके शरीर से इतना पसीना बहता नजर आया, जिससे रेती भी गीली हो गई थी। 
पूछने पर बताया कि उनका शरीर छूने पर आपको ठंडा महसूस होगा। उन्होंने बताया इस प्रकार की तपोसाधना से उनके कोई फर्क नहीं पड़ता, उन्हें कोई बीमारी नहीं है और पूर्णतया स्वस्थ हैं।
उनके पुत्र महादेव मेघवाल (Mahadev Meghwal) ने बताया कि, मां के जाने बाद उनके पिता ने भक्ति का मार्ग अपनाया। पहले वो मजदूरी कर परिवार का पेट पालते थे। 
अब परिवार की जिम्मेदारी उस पर है। रानीवाड़ा (Raniwada) में हीरा घिसाई कर परिवार पाल रहा है। उनके पिता हर साल पैदल नंगे पैर रामदेवरा दर्शन करने जाते है। कई बार तो रामदेवरा से द्वारका (Dvarika) तक भी पैदल यात्रा कर लेते है।
उनकी भक्ति पर जवाराम (javaram) महाराज का पूरा प्रभाव देखा गया। उनके साथ डूंगरी के हंसाराम (hansaram) और उनके पुत्र भी इसी तरह की साधना में लगे हुए है। 
उनका तो यही कहना है कि ईश्वर एक है चाहे आप बाबा रामदेव का पूजे या ब्रह्या विष्णु या महेश को। सब एक ही है। उनका कहना है कि जब तक शरीर में जान है तब तक उनकी तपोसाधना यूहीं चलती रहेगी।
                                            
                                         राजनीति
 
                            राजनीति                             
                            

 
         
                                     
            
             
            
             
            
             
            
             
            
            