विधानसभा चुनाव: क्या मूड है उस शिव का, जहां से बागी चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं रविन्द्रसिंह भाटी

क्या मूड है उस शिव का, जहां से बागी चुनाव लड़ने का मन बना रहे हैं रविन्द्रसिंह भाटी
Ravindra Singh Bhati with Arun Singh
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अब राजनीति में सीधे हमले नहीं होते। चुपचाप भाले सेक लिए जाते हैं। राजनीतिक हत्याएं हो जाती है। इसी मारवाड़ में बीजेपी के शीर्ष पर जलशक्ति मंत्री गजेन्द्रसिंह शेखावत से बेहतर तो कौन जानता होगा, जब वे अध्यक्ष बनाए जा रहे थे और उनकी जाजम कैसे पुराने नेताओं ने खींच ली थी। अब वही हाल रविन्द्रसिंह का है। 

Jaipur | आपको बता दें कि रविन्द्रसिंह भाटी 2019 में अध्यक्ष बने। रविन्द्रसिंह भाटी जब बीजेपी में आ गए हैं तो उन्हें यह तो पहले से पता रहा होगा कि यह इंतजार वाली पार्टी है। चूंकि शिव के सभी राजपूत नेताओं का यही कहना रहा कि आप रविन्द्र भाटी के अलावा किसी को दे दीजिए। आजाद परिंदे अक्सर भय की वजह बनते हैं। राजनीति में तो खासकर के। 

जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय (जेएनवीयू) के पूर्व अध्यक्ष, रवींद्र सिंह भाटी ने राजनीतिक क्षेत्र में भौंहें चढ़ाते हुए आगामी चुनाव एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लड़ने का इशारा किया  है। अपने राजनीतिक करियर में आश्चर्यजनक घटनाओं के बाद, भाटी सोमवार को अपना नामांकन दाखिल करेंगे, यह देखने वाली बात होगी।

बाड़मेर जिले के शिव विधानसभा क्षेत्र के कद्दावर नेता रविन्द्र सिंह भाटी सात दिन पहले ही बीजेपी में शरीक हुए थे। ऐसी अटकलें थीं कि वह शिव में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा के चुने हुए उम्मीदवार होंगे। हालाँकि, ये उम्मीदें तब टूट गईं जब भाजपा ने इस सीट के लिए स्वरूप सिंह खारा को उम्मीदवार बनाया।

रवींद्र सिंह भाटी ने जनता से समर्थन मांगने और अपनी स्वतंत्र उम्मीदवारी की घोषणा करने के लिए ट्विटर का सहारा लिया। अपने ट्वीट में उन्होंने कहा, 
जन सेवा को परम कर्तव्य मान कर अपने जीवन की शुरुआत की हैं और उसके लिए पूर्ण सक्षमता से संघर्ष किया है। अब आगे की राह स्वयं जनता तय करे, मेरे अपने तय करे, मेरे शुभचिंतक तय करे।

जो आपका निर्णय है वही मेरा निर्णय है। ????????

सुख-दुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।

अभी बात शिव विधानसभा की करते हैं जहां से वे टिकट मांग रहे हैं। फिर जानेंगे कि ऐसा क्यों हुआ।
यह सीट जैसलमेर, बाड़मेर, चौहटन, पोकरण विधानसभा से सीमा साझा करती है और पाकिस्तान से सटी हुई है। पाकिस्तान से कुल दस विधानसभा क्षेत्रों की सीमाएं सटती है, जिनमें से शिव एक है। बावजूद इसके अंतरराष्ट्रीय स्तर क्या राष्ट्रीय की राजनीति के मुद्दे यहां के विधानसभा चुनाव में मुद्दे नहीं है। सबसे बड़ा मुद्दा है जाति। जाति है कि जाती नहीं। बाड़मेर यहां से 55—60 किलोमीटर है और पचपदरा करीब डेढ़ सौ। लोगों में रिफाइनरी के पैसे वाला असर नहीं आया है। अभी भी व्यवहार कुशल लोग हैं और रिश्तों को रिफाइन करने में यकीन नहीं करते। 

इस जिले की सात में छह सीट कांग्रेस डिक्लेयर कर चुकी है। गुड़ा मालानी को छोड़कर और दो अल्पसंख्या जिनमें एक मुस्लिम शिव से अमीन खान और बाड़मेर से मेवाराम जैन हैं।

एक राजपूत मानवेन्द्रसिंह सिवाना से और मदन प्रजापत पचपदरा से। बायतू से हरीश चौधरी जाट कोटे से और पदमाराम मेघवाल चौहटन में एससी के टिकट पा चुके हैं।

बीजेपी दो राजपूत, शिव में स्वरूप सिंह खारा और सिवाना में हम्मीर सिंह को, एक विश्नोई केके विश्नोई को गुड़ामालानी पर टिकट दिया है। बालाराम मूंड हरीश चौधरी के सामने बायतू से और आदूराम मेघवाल चौहटन आरक्षित सीट पर प्रत्याशी हैं। परन्तु चूंकि बात आज शिव ही की कर रहे हैं। 

गैर अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार यहां संख्या में सर्वाधिक करीब 28 फीसदी मतदाता राजपूत हैं। दूसरे नम्बर पर मुस्लिम है जिनकी आबादी करीब 23—24 प्रतिशत के बीच है। तीसरे नम्बर पर दलित हैं जो 18 प्रतिशत के आसपास वोटर्स बताए जाते हैं।

जाट भी यहां अच्छी संख्या, निर्णायक बोले तो आठ—नौ फीसदी बताए जाते हैं। तभी तो उदाराम मेघवाल आरएलपी के टिकट पर पिछली बार करीब चौबीस प्रतिशत वोट खेंच ले गया।

शिव विधानसभा में बड़ी जातियों में कुमावत है जिनके छह से सात प्रतिशत वोट बताए जाते हैं। इसी जिले में पार्टी मदन प्रजापत को पचपदरा से टिकट देकर समाज को कांग्रेस एक मैसेज दे चुकी है। यहां अनुसूचित जाति के भी साढ़े चार से पांच प्रतिशत वोट आंके जाते हैं।

अन्य समाजों में राजपुरोहित और विश्नोई समाज दो—दो प्रतिशत के आसपास हैं। बाकी में दूसरी ओबीसी और ​सामान्य जातियां हैं। 

इस बार आरएलपी यहां अलग मूड में है और एआईएमआईएम भी अवसर तलाश रही है। गागरिया की सभा में क्या हुआ था। अमीन खान के बयान और औवेसी के डायलॉगों की अनुगूंज लोगों की जेहन में ताजा होगी ही।

परन्तु फिलहाल जिक्र है रविन्द्रसिंह भाटी का। यहां एक और भाटी बागी हुए हैं, नाम जालमसिंह रावलोत हैं। 2003 में विधायक बने थे। 2008 में हारे थे। 2013 में बागी हुए, लेकिन समाज की समझाइश पर बैठ गए।

इस सीट पर अमीन खान 1980 से चुनाव लड़ रहे हैं। फिलहाल कांग्रेस में शायद ही कोई ऐसा नेता होगा जो दसवीं बार उसी सीट से लगातार टिकट पा रहा है। पांच बार जीते हैं। एक बार राजपूत प्रत्याशी से हारते हैं और दूसरी बार हराते हैं। यहां मुस्लिम और राजपूत समाज के अलावा और किसी समाज से विधायक नहीं बना है। इस बार बारी किसकी है।

यह शिव विधानसभा की जनता तय करेगी। मुस्लिम—राजपूत यहां आमने—सामने होते हैं, लेकिन इस इलाके की खासियत है कि लोग मन में वैर नहीं पालते। जब अमीन खान ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल पर ​एक टिप्पणी की और राजपूत समाज की करणी सेना के विरोध पर मामला गरमाया और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा तब उन्होंने विधानसभा में इस बात को कहा भी था कि भैरोंसिंह शेखावत और तत्कालीन थानेदार जीवराज सिंह भाटी के वे कर्जदार है।

जीवराज सिंह भाटी परमवीर मेजर शैतानसिंह के भाई थे। जिन्होंने अमीन खान को एक महीने तक पुलिस थाने में शरण दी थी और उस वक्त उनकी जान बचाई थी। युवा अमीन खान उस वक्त इलाके में कांग्रेस के नाम लेवा थे और लोग यहां उनके विरोध में थे। जबकि चौथी और पांचवीं विधानसभा से यह सीट अस्तित्व में है और तब से कांग्रेस ही जीत रही थी। परन्तु अमीन खां उसी तरह लोगों की आंखों में खटकते थे जैसे कि आज रविन्द्रसिंह भाटी बीजेपी पार्टी में खटक रहे हैं। 

अमीन खान ने कहा था कि उस वक्त उन्हें जब मारा जाना तय हो ​गया था। तब जीवराज सिंह भाटी ने उन्हें थाने में शरण दी और जिंदगी बचाई। अब राजनीति में सीधे हमले नहीं होते। चुपचाप भाले सेक लिए जाते हैं। राजनीतिक हत्याएं हो जाती है। इसी मारवाड़ में बीजेपी के शीर्ष पर जलशक्ति मंत्री गजेन्द्रसिंह शेखावत से बेहतर तो कौन जानता होगा, जब वे अध्यक्ष बनाए जा रहे थे और उनकी जाजम कैसे पुराने नेताओं ने खींच ली थी। अब वही हाल रविन्द्रसिंह का है। 

रविन्द्र अपने उत्साही विचार और एग्रेसिव अंदाज को ठीक नहीं करेंगे तब तक पार्टियों में बतौर सिपाही कैसे फिट हो पाएंगे। राजनीति के लोग कहते हैं कि हमें ऐसे हीरे नहीं चाहिए जो हमारे ही हाथ काट दे। रविन्द्रसिंह के साथ यहीं खेला हो गया। इस सीट पर पर उनके विरोध में बीजेपी के साथ—साथ संघ के पदाधिकारियों का भी नाम आ रहा है। गजेन्द्रसिंह शेखावत और कैलाश  चौधरी का भी इसमें नाम है कि वे इस अलग अंदाज वाले पंछी को टोलरेट नहीं कर पाएंगे।

रविन्द्रसिंह क्या अब भी बीजेपी में बने रहेंगे। क्या वो बागी होंगे। बड़ा सवाल है। परन्तु जवाब इसी श्लोक से निकालें तो लगता है कि भाटी बगावत की राह अख्तियार करेंगे। रविन्द्र द्वारा ट्वीट किया गया श्लोक जिसका मैं उपर जिक्र कर चुका दूसरे अध्याय का 39वां है और यदि उन्होंने उससे पहले वाला श्लोक शायद पढ़ा होगा वह है हतो वा प्राप्यसि स्वर्गं जीत्वा वा भोक्षस्य महीम तस्मात उतिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृत निश्चय:।

भाटी के समर्थकों ने बाड़मेर में टायर जलाने सहित विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से अपनी निराशा व्यक्त की है। स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है क्योंकि भाटी के वफादार उनके अगले कदम का इंतजार कर रहे हैं।

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