राजेंद्र गुढ़ा की खुली चुनौती: अगर ’मां का दूध पिया है तो पायलट के खिलाफ कार्रवाई करके देखें, छठी का दूध याद आ जाएगा

अगर ’मां का दूध पिया है तो पायलट के खिलाफ कार्रवाई करके देखें, छठी का दूध याद आ जाएगा
Rajendra Singh Gudha
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राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने कांग्रेस आलाकमान को चुनौती देते हुए कहा है कि, अगर ’मां का दूध पिया है तो सचिन पायलट के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करके देखें, छठी का दूध याद आ जाएगा।

जयपुर | राजस्थान में विधानसभा चुनावों से पहले एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी में महौल गरमाता दिख रहा है।

सचिन पायलट खेमे के विधायक राजेंद्र सिंह गुढ़ा के बयानों से राजस्थान के राजनीतिक गलियारों में गरमाहट आ गई। 

राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने कांग्रेस आलाकमान को चुनौती देते हुए कहा है कि, अगर ’मां का दूध पिया है तो सचिन पायलट के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करके देखे, छठी का दूध याद आ जाएगा।

गुढ़ा का यह बयान सचिन पायलट द्वारा वसुंधरा के नाम पर अशोक गहलोत के खिलाफ आयोजित एक विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर आया है।

कांग्रेस के गहलोत और पायलट गुटों के बीच लंबे समय से तनाव चल रहा है और गुढ़ा का बयान पार्टी के भीतर चल रही कलह को दिखाता है।

गुढ़ा ने ये चुनौती झुंझुनू के खेतड़ी के टीबा गांव में शहीद की प्रतिमा के अनावरण के दौरान दी। जिसमें सचिन पायलट और गुढ़ा दोनों ने भाग लिया। 

कांग्रेस में पहले से ही माहौल तनावपूर्ण चल रहा था ऐसे में  कांग्रेस के आलाकमान को गुढ़ा की चुनौती ने आग में घी डालने का काम कर दिया है।

वर्तमान सैनिक कल्याण राज्य मंत्री गढ़ा ने कहा कि उन्हें सूचित किया गया था कि मुख्यमंत्री गहलोत पायलट को जेल भेजने की योजना बना रहे हैं। 

उन्होंने यह भी ऐलान किया कि अगर जरूरत पड़ी तो केवल हम ही नहीं बल्कि राजस्थान की 36 कौम भी जेल तो क्या अपनी जान देने को तैयार है। 

गुढ़ा के बयानों से स्पष्ट संकेत मिलता है कि राजस्थान में कांग्रेस पार्टी के भीतर स्थिति बेहद नाजुक मोड पर पहुंच चुकी है।

इस कार्यक्रम में पायलट खेमे के सदस्यों में से एक विधायक वेद प्रकाश सोलंकी ने कहा कि सचिन पायलट के बिना राजस्थान में कांग्रेस की सरकार सत्ता में नहीं आ सकती है।

उन्होंने यह भी कहा कि शहीद की विरांगना नौकरी की प्रतीक्षा कर रही है, लेकिन मंत्रियों के पास ऐसा करने की पावर तक भी नहीं है।

इस तरह की बयानबाजी ने राजस्थान में कांग्रेस पार्टी के भीतर चल रहे सत्ता संघर्ष को उजागर किया है। ऐसे में अब यह स्पष्ट है कि गहलोत और पायलट गुटों के बीच चल रही वर्चस्व की लड़ाई इतनी जल्दी खत्म होने वाली नहीं है। 

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