Highlights
डॉ. जितेन्द्रसिंह यहां बीते 34 साल से राजनीति में है और पांच बार विधायक रह लिए। यही नहीं वे अब 77 के उम्रदराज हो जाएंगे
कांग्रेस किसे अपना प्रत्याशी बनाएगी, बसपा का हाथी किसे अपनी पीठ पर बिठाएगा और बीजेपी किसे चुनेगी। यह दिसम्बर में तय होगा।
जयपुर | यह इलाका वह है, जिसने देश को विवेकानंद दिया। रामकृष्ण परमहंस का शिष्य वैश्विक पहचान वाला एक ऐसा साधु बना कि उसने भारतीय वेदांत को अनूठी पहुंच दी। वजह थे महाराजा अजीत सिंह। यह वह क्षेत्र है जिसे तांबा यानि कि कॉपर के नाम से भी जाना जाता है।
बात खेतड़ी विधानसभा सीट की करेंगे। यह वह सीट है जिसने शीशराम ओला जैसा एक नेता दिया। केन्द्र की राजनीति में जाने से पहले शीशराम ओला यहां 1957 से 1972 तक तीन बार लगातार विधायक रहे।
शेखावाटी की सामान्य सीट खेतड़ी राजस्थान और हरियाणा के बॉर्डर पर स्थित है। फिलहाल यह नीम का थाना, उदयपुरवाटी, सूरजगढ़, झुंझुनूं सीट की सीमाएं छूती हैं। बीजेपी के नरेन्द्र कुमार यहां से सांसद हैं। इस सीट पर वोटों की संख्या तो अभी तक 2 लाख 18 हजार 789 ही है और बूथ 209 हैं, जिन पर औसतन 1047 मतदाता है।
परन्तु यह बढ़ोतरी का काम आचार संहिता लागू होने तक चलता रहेगा। 11 हजार 370 मतदाता बीते चार साल में बढ़े भी हैं।
यहां जाट, गुर्जर, दलित, सैनी और राजपूत आदि जाति के मतदाता प्रभावी संख्या में हैं।
2018 में यहां कांग्रेस के टिकट पर जितेन्द्रसिंह चुनाव जीते हैं। हालांकि जितेन्द्रसिंह यहां से पांच बार विधायक हैं, लेकिन लगातार सिर्फ एक ही बार जीत पाए हैं। परन्तु बीते करीब 33 सालों से यह सीट कई कोणों के मुकाबलों में फंसती है। त्रिकोणीय—चतुष्कोणीय संघर्ष यहां की पहचान है और बीते बीस सालों में बसपा के उदय ने यहां अलग ही राजनीतिक समीकरण स्थापित किए हैं। 2018 में जितेन्द्रसिंह को 57 हजार 153 वोट मिले और बीजेपी के धर्मपाल को 56 हजार 196।
अंतर एक प्रतिशत से भी कम यानि कि 957 वोटों का रहा। धर्मपाल 2013 में निर्दलीय खड़े होकर बीजेपी को हरा चुके थे। परन्तु यहा से 2013 में विधायक रहे पूरणमल सैनी को जनता ने तीसरे नम्बर पर धकेल दिया। पूरणमल 35 हजार 166 वोट लाकर तीसरे नम्बर पर खिसक गए। चुनाव में 11 प्रत्याशी खड़े हो गए और मामला त्रिकोणीय बन गया था। जितेन्द्रसिंह पांचवीं बार विधानसभा पहुंचे।
इससे पहले 2013 के चुनाव में जितेन्द्रसिंह यहां से विधायक थे और उर्जा मंत्री के नाते लड़ रहे थे। परन्तु लोगों ने पूरणमल सैनी को बसपा के टिकट पर पसंद किया। 7 हजार 850 वोटों से उन्होंने जितेन्द्रसिंह को हराया। वहीं बीजेपी के टिकट पर 2003 में विधायक बने दाताराम गुर्जर को तीसरे नम्बर पर धकेल दिया। उन्हें सिर्फ 19.20 फीसदी वोट मिले।
धर्मपाल गुर्जर जिन्हें 2008 में बीजेपी ने प्रत्याशी बनाया था उन्होंने टिकट कटने पर बागी होकर 15.42 फीसदी वोट लिए और बसपा के जीतने में अहम भूमिका निभाई। 2003 में गुढ़ा सीट से विधायक रहे रणवीरसिंह गुढ़ा ने भी लोक जनशक्ति पार्टी से यहां चुनाव लड़ा परन्तु 3940 वोटों के साथ 5वें नम्बर पर रहे।
2008 में नए परिसीमन के बाद यहां जितेन्द्रसिंह एक बार फिर से विधायक बने। उन्हें बीजेपी के धर्मपाल गुर्जर से बागियों के कारण खास टक्कर नहीं मिली। 2013 में विधायक बने पूरणमल सैनी बसपा से 16 हजार 554 यानि कि 16.63 प्रतिशत वोट खींच ले गए और जीत का अंतर 11 प्रतिशत रहा।
बीजेपी से विधायक दाताराम का टिकट काटकर धर्मपाल को दिया तो दाता राम बागी हो गए। उन्होंने 8 हजार 475 वोट का भचीड़ बीजेपी को दे डाला। निर्दलीय राम अवतार भी 6 हजार 135 और भागीरथसिंह भी 5 हजार 580 वोट ले गए। रामावतार मालपुरिया 2003 में बसपा के प्रत्याशी थे और 7774 वोट लाए थे।
इससे पहले के इतिहास की बात करें तो 1951 में इस सीट पर दो विधायक हुआ करते थे। खेतड़ी सामान्य पर रघुवीर सिंह बिसाऊ राम राज्य परिषद से और एससी सीट पर कांग्रेस के महादेव प्रसाद बंका यहां से विधायक जीते। 1957 में सामान्य सीट पर शीश राम ओला ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के ख्याली राम को और एससी खेतड़ी पर महादेव प्रसाद बंका ने निर्दलीय शिवनारायण छाछिया को हराया।
1962 के परिसीमन में खेतड़ी एक सामान्य सीट हो गई तो यहां कांटे की टक्कर में शीशराम ओला स्वतंत्र पार्टी के चुन्नीलाल से 64 वोटों से जीते। यहां भाकपा के जयसिंह 5 हजार 323, निर्दलीय तारकेश्वर 4 हजार 250 और मांगी लाल 1137 वोट पाकर ओला के चुनाव में अहम भूमिका निभा गए।
1967 में यहां स्वतंत्र पार्टी का फिर से प्रभाव आया तो ठाकुर रघुवीर सिंह बिसाऊ मंडावा विधानसभा छोड़कर खेतड़ी आए और शीशराम ओला को करीब साढ़े छह हजार वोटों से हराकर तीसरी बार विधायक बने।
रघुवीर सिंह जयपुर महाराजा के 6 वर्ष तक ए.डी.सी. रहे थे। वे स्वतंत्र पार्टी के अध्यक्ष थे। तीन बार विधायक रहने के बाद हारे शीश राम ओला को कुछ ही समय बाद उप चुनाव में पुन: खेतड़ी से मौका मिला, जब रघुवीर सिंह का 1971 में निधन हो गया। उप चुनाव में उन्होंने हेमराज को 21 हजार 812 वोटों से हराया।
1972 के चुनाव में ओला पिलानी की सीट पर चुनाव लड़ने चले गए और दो बार वहां से चुनाव जीते। 1972 में स्वतंत्र पार्टी के रामजीलाल 31.56 फीसदी वोट लाकर चुनाव जीते। कांग्रेस के प्रहलाद सिंह को 28.36 प्रतिशत वोट मिले। निर्दलीय सूरजकुमार ने 17.26, मूलचंद ने 10.9 तथा रामदयाल ने 6.22 फीसदी यानि कि विनिंग मार्जिन से अधिक वोट प्राप्त किए।
आपातकाल के बाद 1977 में जनता पार्टी की लहर में माला राम यहां से विधायक बने और सीधे सपाट चुनाव जीते और प्रहलाद सिंह को करीब करीब दस हजार वोट से हराया। मालाराम जनसंघ के टिकट पर नीम का थाना के विधायक हुआ करते थे। इस चुनाव में हालांकि 12 अन्य प्रत्याशी भी मैदान में थे, लेकिन वे कुछ खास अंतर वाले वोट नहीं पा सके।
मालाराम यहां की जनता को ऐसे रास आए कि लगातार तीन चुनाव वे जीते। 1980 में वे बीजेपी के टिकट पर लड़े और कांग्रेस के रणदीप को हराया। 1985 में कांग्रेस ने यहां से नरेशपाल सिंह को मैदान में उतारा। मालाराम 3 हजार 266 वोटों से फिर जीत गए। 23 मई 1987 को पद पर रहते हुए मालाराम का निधन हो गया।
उप चुनाव में जितेन्द्रसिंह का प्रादुर्भाव हुआ। कांग्रेस ने युवा चिकित्सक डॉ. जितेन्द्रसिंह को यहां गुर्जर वोटों की बहुलता का फायदा उठाते हुए मैदान में उतारा। उन्होंने हजारीलाल को 13 हजार 943 वोटों से हराया। हालांकि 1990 में बीजेपी की लहर में हुए चुनाव में डॉ. जितेन्द्रसिंह बहुत कम वोटों से चुनाव हार गए।
उन्हें निर्दलीय हजारी लाल ने एक प्रतिशत के कम अंतर यानि कि 619 वोटों से हराया। बीजेपी ने बजरंगलाल को टिकट दिया था वह 16 हजार 478 वोट लाए थे। निर्दलीय सागरमल ने भी यहां 15 हजार 364 वोट पाए थे। इस चुनाव में कुल 17 प्रत्याशी मैदान में थे, जिन्होंने मार्जिन वोट के बराबर तो वोट नहीं पाए, लेकिन जितेन्द्रसिंह के लिए चुनाव बिगाड़ दिया था।
1993 में डॉ. जितेन्द्रसिंह जीते, लेकिन अंतर बेहद कम रहा। बीजेपी के दाताराम गुर्जर 28 हजार 965 वोट लाए। हालांकि जितेन्द्रसिंह को 335 वोट अधिक मिले और वे मामूली अंतर से चुनाव जीत गए। निर्दलीय चिरंजीलाल और जनता दल के गजानंद मार्जिन वोटों से अधिक वोट लाकर माहौल बदल गए। निर्दलीय मोहम्मद रिजवान को 350 वोट आए। चार अन्य प्रत्याशी भी थे जो कुल मिलाकर 594 वोट लाए।
1998 में जितेन्द्रसिंह कांग्रेस लहर के चलते एक बार फिर से करीब पांच फीसदी वोटों के अंतर से चुनाव जीते। उन्होंने बीजेपी का टिकट कटने पर बागी हुए दाताराम गुर्जर को हराया। बीजेपी ने दाताराम का टिकट काटकर भागीरथ सिंह को दिया तो बीजेपी प्रत्याशी को 20 हजार 136 तथा निर्दलीय हजारी लाल को 8 हजार 509 वोट मिले।
2003 में दाताराम गुर्जर का भाग्य चमका। बीजेपी ने टिकट दिया तो जनता ने भी एक बार मौका दे डाला। 49 हजार 769 वोट लाकर उन्होंने डॉ. जितेन्द्रसिंह को 4 हजार 924 वोटों से हराया। हालांकि बड़ी भूमिका बसपा के रामावतार मालपुरिया की रही, जो 7 हजार 774 वोट ले गए।
खेतड़ी के लोग पढ़े लिखे समझदार प्रत्याशी अक्सर चुनते रहे हैं। यहां साक्षरता का प्रतिशत भी खूब है। यह इलाका उद्योगपतियों का है और तांबे की खान के लिए प्रसिद्ध है। डॉ. जितेन्द्रसिंह यहां बीते 34 साल से राजनीति में है और पांच बार विधायक रह लिए। यही नहीं वे अब 77 के उम्रदराज हो जाएंगे। कांग्रेस किसे अपना प्रत्याशी बनाएगी, बसपा का हाथी किसे अपनी पीठ पर बिठाएगा और बीजेपी किसे चुनेगी। यह दिसम्बर में तय होगा।
खेतड़ी विधानसभा सीट से अब तक रहे विधायक
वर्ष | चुने गये विधायक का नाम | पार्टी |
---|---|---|
1952 | रघुवीर सिंह | राम राज्य परिषद |
1957 | शीशराम ओला | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
1962 | शीशराम ओला | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
1967 | रघुवीर सिंह | स्वतंत्र पार्टी |
1972 | रामजीलाल गुर्जर | स्वतंत्र पार्टी |
1977 | मालाराम गुर्जर | जनता पार्टी |
1980 | मालाराम गुर्जर | भारतीय जनता पार्टी |
1985 | मालाराम गुर्जर | भारतीय जनता पार्टी |
1990 | हजारीलाल | निर्दलीय |
1993 | डॉ॰ जितेन्द्रसिंह | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
1998 | डॉ॰ जितेन्द्रसिंह | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
2003 | दाताराम गुर्जर | भारतीय जनता पार्टी |
2008 | डॉ॰ जितेन्द्रसिंह | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
2013 | पूर्णमल सैनी | बहुजन समाज पार्टी |
2018 | डॉ॰ जितेन्द्रसिंह | भारतीय राष्ट्रीय |
2018 में खेतड़ी का चुनाव परिणाम Khetri Vidhan Sabha Election Result in 2018
PARTY | कुल वोट मिले | % वोट | उम्मीदवार |
कांग्रेस | 57153 | 37.32% | जीतेन्द्र सिंह (जीते) |
बी जे पी | 56196 | 36.70% | धर्मपाल |
बसपा | 35166 | 22.96% | पूरणमल सैनी |
नोटा | 1373 | 0.90% | नोटा |
आरएलपी | 1314 | 0.86% | अमर सिंह |
आईएनडी | 610 | 0.40% | रिशाल सिंह |
आईएनडी | 507 | 0.33% | राजेश |
बीवीपी | 178 | 0.12% | ताराचंद |
आईएनडी | 171 | 0.11% | बजरंग |
AAAP | 165 | 0.11% |
उमराव सिंह कादयान
|
एआरपी | 154 | 0.10% | प्रियंका |
बीवाईएस | 149 | 0.10% | रामस्वरूप |
2013 में खेतड़ी का चुनाव परिणाम Khetri Vidhan Sabha Election Result in 2013
दल | वोट मिले | % वोट | उम्मीदवार |
बसपा | 42,432 | 32.3 |
पूरणमल सैनी (जीते)
|
कांग्रेस | 34,582 | 26.32 | जीतेन्द्र सिंह |
बी जे पी | 25,227 | 19.2 | दाताराम |
IND | 20,253 | 15.42 | धर्मपाल |
लोजपा | 3,940 | 3 | रणवीर सिंह गुढ़ा |
NOTA | 1,332 | 1.01 |
इनमे से कोई भी नहीं
|
जे.जी.पी | 812 | 0.62 | प्रदीप सिंह |
IND | 741 | 0.56 | राजपाल |
जेकेएनपीपी | 610 | 0.46 | सुरेंद्र |
IND | 470 | 0.36 | सत्यनारायण |
IND | 406 | 0.31 | नरपत सिंह |
एनपीईपी | 304 | 0.23 | विश्वंभर दयाल सिंह |
बीटीएस | 271 | 0.21 | राम अवतार |
2008 में खेतड़ी का चुनाव परिणाम Khetri Vidhan Sabha Election Result in 2008
दल
वोट मिले
% प्रतिशत
प्रत्याशी का नाम
कांग्रेस
33,639
33.8
जीतेन्द्र सिंह (जीते)
बी जे पी
22,572
22.68
धर्मपाल
बसपा
16,554
16.63
पूरन
IND
8,475
8.51
दाता राम
IND
6,148
6.18
रामअवतार
IND
5,580
5.61
भागीरथ सिंह
राकांपा
1,464
1.47
गायत्री
भाकपा
1,440
1.45
बिरदु राम
IND
1,027
1.03
सत्यनारायण
IND
685
0.69
विद्याधर
सपा
650
0.65
मुकेन्द्र सिंह
IND
302
0.3
नरपत सिंह
IND
293
0.29
बीर सिंह
IND
289
0.29
जले सिंह
लोजपा
238
0.24
महीपाल
IND
181
0.18
ओम प्रकाश