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राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी ;बीजेपीद्ध द्वारा हाल ही में की गई नियुक्तियों को राज्य में जातीय समीकरण सेट करने के रूप में देखा गया है।
विपक्ष के नेता के रूप में राजेंद्र राठौड़ और विपक्ष के उप नेता के रूप में डॉ. सतीश पूनिया की नियुक्तियों को ब्राह्मण, वैश्य और क्षत्रिय के पार्टी के मूल मतदाता आधार को बनाए रखने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
Jaipur | हनुमान बेनिवाल बीजेपी के लिए एक बड़ी असेट साबित हो सकते हैं, वे पहले भी साबित हुए हैं। लोकसभा चुनाव 2019 में उन्होंने बीजेपी के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा था और एक लोकसभा सीट हासिल की थी।
इससे पहले का विधानसभा चुनाव उन्होंने 2018 में अपने दम पर तीन सीटों पर जीत हासिल करते हुए पार्टी की अलग पहचान कायम की थी। राजेन्द्र राठौड़ उनके पुराने साथी रहे हैं और आज लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के यहां तीनों की मुलाकात कई मायने निकाल रही हैं।
इसी बीच वसुन्धरा राजे का खेमा खासा खुश है। दस दिन में उनके लिए एक और खुशखबरीआने वाली है।
वसुन्धरा राजे को चुनाव अभियान समिति का यदि प्रभारी बनाया जाता है तो निश्चित तौर पर बीजेपी बड़ा गेम कर जाएगी। राठौड़ ने दिल्ली में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी मुलाकात की और अपनी बात रखी।
इसी बीच सीपी जोशी और वसुन्धरा राजे की मुलाकात भी कई सवाल और जवाब तय कर रही हैं। इन सवाल जवाबों के बीच राजस्थान में राजनीतिक मौसम क्या रंग लाएगा, यह जानने के लिए देखते रहिए थिंक 360.
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी ;बीजेपीद्ध द्वारा हाल ही में की गई नियुक्तियों को राज्य में जातीय समीकरण सेट करने के रूप में देखा गया है। विपक्ष के नेता के रूप में राजेंद्र राठौड़ और विपक्ष के उप नेता के रूप में डॉ. सतीश पूनिया की नियुक्तियों को ब्राह्मण, वैश्य और क्षत्रिय के पार्टी के मूल मतदाता आधार को बनाए रखने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
प्रदेश अध्यक्ष के रूप में सीपी जोशी की नियुक्ति को ब्राह्मणों को आकर्षित करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा हैए जबकि राठौड़ की नियुक्ति का उद्देश्य राजपूत समाज में पार्टी का भरोसा बनाए रखना है। ओम बिरला और गुलाबचंद कटारिया की नियुक्तियों ने वैश्यों को पहले ही साध रखा है।
बीजेपी ने साफ संकेत दे दिया है कि हाईकमान जो चाहेगाए वही अंतिम फैसला होगा। जाट जैसा बड़ा वोट बैंक होने के बावजूद सतीश पूनिया की जगह सीपी जोशी की नियुक्ति इस बात के साफ संकेत हैं।
बीजेपी की नजर सिर्फ विधानसभा चुनाव पर नहीं है बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव पर भी हैण् पार्टी का लक्ष्य राजस्थान में अपने प्रदर्शन को बरकरार रखना है और हर वर्ग को साधने की कोशिश कर रही है।
बीजेपी ने जाटों को प्रभाव में लेने की कोशिश पहले से की है। उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ इसी समाज से आते हैं और केंद्रीय मंत्री के तौर पर कैलाश चौधरी राजस्थान में जाट समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
हालांकि, देखना होगा कि पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर उपनेता प्रतिपक्ष बनाने के फैसले का बीजेपी के नजरिए से चुनाव पर क्या असर पड़ेगा.
सीपी जोशी और घनश्याम तिवारी की नियुक्तियों को ब्राह्मण समाज को साधने के प्रयास के रूप में देखा गया हैए जबकि वैश्य समाज से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और असम के राज्यपाल के रूप में गुलाबचंद कटारिया की नियुक्ति अहम है।
हालांकि, बीजेपी में दलितों का प्रतिनिधित्व फिलहाल राजस्थान में नहीं दिख रहा है और जानकारों का मानना है कि पार्टी को इस पर ध्यान देने की जरूरत हैण् एसटी वर्ग से किरोड़ीलाल मीणा को पूनिया के हटाए जाने से राहत मिली है। यही नहीं मीणा को केन्द्र में मंत्री भी बनाया जा सकता है।
कुल मिलाकर राजस्थान में बीजेपी की ओर से की गई नियुक्तियां उसकी सोशल इंजीनियरिंग रणनीति का हिस्सा लगती हैं। पार्टी का लक्ष्य आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अपने प्रदर्शन को बनाए रखना है और अपने मूल मतदाताओं को लक्षित कर रही है।
राठौड़ और पूनिया की नियुक्तियों को अपना वोट बैंक बनाए रखने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है, जबकि सीपी जोशी और घनश्याम तिवारी की नियुक्ति का उद्देश्य ब्राह्मणों को आकर्षित करना है. बीजेपी राज्य में अपनी स्थिति बनाए रखने की कोशिश में कोई कसर नहीं छोड़ रही है.