Highlights
- उच्चतम न्यायालय ने मेहरानगढ़ भगदड़ मामले की ट्रांसफर याचिका खारिज की।
- न्यायालय ने राजस्थान उच्च न्यायालय को 17 साल पुराने मामले की तेजी से सुनवाई का निर्देश दिया।
- 2008 में हुई भगदड़ में 216 लोगों की मौत हुई थी।
- जांच रिपोर्ट 2011 में जमा होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई।
जोधपुर: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने 2008 के जोधपुर (Jodhpur) मेहरानगढ़ (Mehrangarh) भगदड़ मामले की जनहित याचिका को राजस्थान उच्च न्यायालय (Rajasthan High Court) से गुजरात उच्च न्यायालय (Gujarat High Court) में स्थानांतरित करने की याचिका खारिज कर दी है। न्यायालय ने राजस्थान उच्च न्यायालय की जोधपुर पीठ को 17 साल से लंबित इस मामले की सुनवाई तेजी से करने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने यह आदेश ईश्वर प्रसाद द्वारा दायर स्थानांतरण याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि मामले को गुजरात उच्च न्यायालय, अहमदाबाद में स्थानांतरित किया जाना चाहिए। हालांकि, न्यायालय ने राजस्थान उच्च न्यायालय से मामले को स्थानांतरित करने के लिए कोई कानूनी रूप से मान्य आधार नहीं पाया। उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि किसी भी मामले को एक उच्च न्यायालय से दूसरे में स्थानांतरित करने के लिए ठोस और असाधारण परिस्थितियां होनी चाहिए, जो इस प्रकरण में मौजूद नहीं थीं।
उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि स्थानांतरण याचिकाएं केवल असाधारण परिस्थितियों में ही स्वीकार की जाती हैं, और इस मामले में ऐसी कोई परिस्थिति नहीं दर्शाई गई थी। न्यायालय ने कहा कि यह मामला स्पष्ट रूप से राजस्थान उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है, जहां घटना हुई थी और जहां कार्यवाही पहले से ही चल रही है। याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए तर्क, जैसे कि मामले की संवेदनशीलता, न्यायालय की राय में स्थानांतरण के लिए पर्याप्त नहीं थे।
स्थानांतरण याचिका और उसके आधार
याचिकाकर्ता ईश्वर प्रसाद ने मेहरानगढ़ त्रासदी से संबंधित जनहित याचिका को गुजरात उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने का आग्रह किया था। उन्होंने इस अनुरोध के समर्थन में कई आधार प्रस्तुत किए, जिनमें मामले की गंभीरता और लंबे समय से न्याय न मिलना शामिल था। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इनमें से किसी भी कारण को वैध नहीं माना, यह कहते हुए कि न्याय प्रणाली के भीतर ही समाधान खोजना आवश्यक है।
न्यायालय ने टिप्पणी की कि मामले की गंभीरता या संवेदनशीलता अपने आप में स्थानांतरण का पर्याप्त कारण नहीं है, जब तक कि निष्पक्ष सुनवाई या न्याय की उपलब्धता पर कोई वास्तविक संदेह न हो। इस मामले में, राजस्थान उच्च न्यायालय में सुनवाई की निष्पक्षता पर कोई प्रश्नचिह्न नहीं उठाया गया था, और राज्य सरकार ने भी पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया था।
2008 की त्रासदी और 2011 की जांच रिपोर्ट: अब तक कोई कार्रवाई नहीं
न्यायालय ने त्रासदी के संबंध में अधिकारियों द्वारा लंबे समय से की जा रही निष्क्रियता पर गंभीर संज्ञान लिया। पीठ के समक्ष प्रस्तुत जानकारी के अनुसार, घातक भगदड़ की जांच के लिए 2008 में न्यायमूर्ति जसराज चोपड़ा की अध्यक्षता में एक न्यायिक जांच आयोग का गठन किया गया था। आयोग ने 222 पीड़ित परिवारों और 59 अधिकारियों के बयान दर्ज करते हुए एक व्यापक जांच पूरी की और मई 2011 में राज्य सरकार को 860 पृष्ठों की रिपोर्ट सौंपी। इस जांच पर लगभग 5 करोड़ रुपये का भारी खर्च आया था, जो सार्वजनिक धन का एक महत्वपूर्ण उपयोग था।
हालांकि, राज्य सरकार ने प्रक्रिया के अनुसार इस रिपोर्ट को विधानसभा में पेश नहीं किया है, और न ही इस पर कोई ठोस कार्रवाई की गई है। उच्चतम न्यायालय ने टिप्पणी की कि यह स्पष्ट देरी को दर्शाता है और 'प्रशासनिक जवाबदेही' के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा करता है, खासकर जब घटना को 17 साल बीत चुके हैं। यह स्थिति न्याय की प्रतीक्षा कर रहे पीड़ित परिवारों के लिए और भी निराशाजनक है, क्योंकि उन्हें आज तक इस त्रासदी के लिए किसी की जवाबदेही तय होते नहीं दिखी है। रिपोर्ट को सार्वजनिक न करना और उस पर कार्रवाई न करना, सरकार की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवालिया निशान खड़े करता है।
राज्य सरकार और याचिकाकर्ता का आश्वासन
राजस्थान सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए, अतिरिक्त महाधिवक्ता शिवमंगल शर्मा ने स्थानांतरण याचिका का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने निर्देश पर न्यायालय को आश्वस्त किया कि राज्य जनहित याचिका और संबंधित मामलों की सुनवाई में उच्च न्यायालय के साथ पूरा सहयोग करेगा, ताकि मामले का शीघ्र निपटारा हो सके। उच्चतम न्यायालय ने इस आश्वासन को दर्ज किया। याचिकाकर्ता ने भी न्यायालय को आश्वासन दिया कि वह मामले को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है और बिना किसी अनावश्यक स्थगन की मांग किए पूरी तरह सहयोग करेगा, जिससे सुनवाई में तेजी लाई जा सके।
दोनों पक्षों से मिले आश्वासनों पर विचार करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि मामले को स्थानांतरित करने का कोई कारण नहीं है। न्यायालय ने राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर पीठ को जल्द से जल्द मामले का निपटारा करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि उसने स्थानांतरण याचिका पर निर्णय लेते समय मामले के गुणों की जांच नहीं की है, बल्कि केवल स्थानांतरण के अनुरोध पर विचार किया था।
जोधपुर की सबसे बड़ी त्रासदी: 216 जानें गईं
यह दुखद भगदड़ 30 सितंबर 2008 को नवरात्रि के पहले दिन मेहरानगढ़ किले के अंदर स्थित चामुंडा माता मंदिर में हुई थी। सुबह के दर्शन के लिए भारी भीड़ जमा हुई थी, तभी अराजकता फैल गई, जिससे एक घातक भगदड़ मच गई। इस भयावह घटना में 216 लोगों की मौत हो गई, जो जोधपुर के इतिहास की सबसे बड़ी और दर्दनाक त्रासदी थी। यह घटना आज भी लोगों के जेहन में ताजा है और इसके जख्म अभी भी हरे हैं।
न्यायिक जांच 2011 में समाप्त होने के बावजूद, रिपोर्ट गोपनीय बनी हुई है और उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है, जिससे पीड़ित परिवार अभी भी न्याय और जवाबदेही का इंतजार कर रहे हैं। उच्चतम न्यायालय का यह निर्देश पीड़ित परिवारों के लिए एक उम्मीद की किरण लेकर आया है, जो लंबे समय से न्याय की उम्मीद कर रहे हैं। अब यह देखना होगा कि राजस्थान उच्च न्यायालय इस मामले में कितनी तेजी से कार्रवाई करता है और क्या अंततः इस 17 साल पुराने मामले में न्याय मिल पाता है। यह मामला न केवल पीड़ितों के लिए, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही और न्यायिक प्रक्रिया की दक्षता के लिए भी एक महत्वपूर्ण परीक्षा है।
राजनीति