सिरोही: सांड का आतंक, बुजुर्ग घायल सिरोही में सांड का हमला

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Highlights

  • सिरोही के सदर बाजार में सांड के हमले से 78 वर्षीय बुजुर्ग गंभीर घायल।
  • सीसीटीवी में कैद हुई घटना, स्थानीय व्यापारियों ने की मदद।
  • नगर परिषद की अर्बुदा गोशाला होने के बावजूद सड़कों पर लावारिस पशुओं का आतंक।
  • नागरिकों ने स्थाई समाधान और गोशाला जांच की मांग की।

सिरोही: सिरोही (Sirohi) शहर में शुक्रवार शाम सदर बाजार (Sadar Bazar) में एक विशालकाय सांड ने 78 वर्षीय मोहनलाल सोनी (Mohanlal Soni) पर हमला कर दिया, जिससे वे गंभीर रूप से घायल हो गए।

शहर में सांड का आतंक: एक दर्दनाक घटना

सिरोही शहर अपनी ऐतिहासिक गलियों और जीवंत बाजारों के लिए जाना जाता है।

लेकिन, शुक्रवार की वो सांझ इस शहर के माथे पर एक ऐसा बदनुमा दाग छोड़ गई, जिसने हर किसी को झकझोर कर रख दिया।

ये कहानी है 78 साल के मोहनलाल सोनी की, जो रोजमर्रा के काम निपटा रहे थे जब उन पर हमला हुआ।

शुक्रवार शाम, जब वे सदर बाजार की व्यस्त गलियों में थे, तभी एक विशालकाय सांड ने पीछे से उन पर हमला कर दिया।

ये हमला इतना भयानक था कि मोहनलाल जी हवा में पांच फीट की ऊंचाई तक उछल गए और फिर धड़ाम से सड़क पर गिरे।

वो जगह कोई सुनसान गली नहीं थी, बल्कि शहर का सबसे चहल-पहल वाला बाजार था, जहाँ हर दिन सैकड़ों लोग आते-जाते हैं।

इस क्रूर हमले ने उनके दोनों घुटनों और कूल्हे की हड्डियों को चूर-चूर कर दिया।

फ्रैक्चर इतने गंभीर थे कि उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाना पड़ा, जहाँ डॉक्टरों ने बताया कि उनके ठीक होने में लंबा समय लगेगा और इलाज भी बेहद मुश्किल होगा।

सीसीटीवी में कैद हुई घटना और स्थानीय लोगों की मदद

इस खौफनाक घटना का पूरा मंजर पास की एक दुकान के सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गया।

वीडियो में साफ दिख रहा है कि कैसे स्थानीय व्यापारियों ने जान की परवाह किए बिना उस बेकाबू सांड को भगाया और दर्द से कराह रहे मोहनलाल जी को संभाला।

लेकिन, सवाल ये है कि ये नौबत आई ही क्यों?

ये सिर्फ मोहनलाल सोनी के साथ हुई एक दुर्घटना नहीं है, ये एक व्यक्तिगत त्रासदी से कहीं ज़्यादा है।

यह सिरोही शहर की एक गहरी, पुरानी और लगातार बढ़ती समस्या का जीता-जागता उदाहरण है।

एक ऐसी समस्या, जिसकी अनदेखी ने आज एक बेकसूर बुज़ुर्ग को बिस्तर पर ला दिया है।

नगर परिषद की लापरवाही और लावारिस पशुओं का आतंक

हमारे शहरों की सड़कों पर आज भी लावारिस पशुओं का राज चलता है।

सिरोही में भी ये मंजर आम है, जहाँ हर रोज़ लोग इन बेजुबानों के बीच से होकर गुजरते हैं, और कई बार ये बेजुबान ही उनके लिए काल बन जाते हैं।

नगर परिषद के बड़े-बड़े दावों के बावजूद, शहर की हर गली, हर बाजार, यहाँ तक कि स्कूलों और अस्पतालों के पास भी सांड, गायें और बछड़े खुलेआम घूमते नजर आते हैं।

सुबह-शाम, ये पशुओं के झुंड न केवल यातायात को बाधित करते हैं, बल्कि अचानक सड़कों पर आ जाने से कई बार बड़े हादसे का कारण भी बनते हैं।

राहगीरों की जान हमेशा जोखिम में रहती है।

कितने ही लोग इन बेकाबू पशुओं के हमलों का शिकार हो चुके हैं, कितनी ही गाड़ियां क्षतिग्रस्त हुई हैं, लेकिन व्यवस्था आज भी गहरी नींद में सोई हुई है।

अर्बुदा गोशाला: कागजों पर या ज़मीन पर?

और सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि सिरोही नगर परिषद के पास अपनी 'अर्बुदा गोशाला' है।

पांच सौ बीघा से ज़्यादा की बेशकीमती सरकारी ज़मीन पर फैली हुई ये गोशाला क्या कर रही है?

क्या इसका अस्तित्व केवल कागजों पर है?

इतनी विशाल जगह, इतने संसाधन, करोड़ों का बजट, फिर भी सड़कों पर पशुओं का आतंक क्यों?

अगर नगर परिषद के पास इतनी सुविधाएं हैं, इतना बजट है, फिर भी लावारिस पशु सड़कों से नहीं हट रहे, तो ये सीधे-सीधे उनकी कार्यशैली पर एक बहुत बड़ा सवाल है।

ये सवाल है उनकी जवाबदेही का, कि क्या ये संसाधन सिर्फ कागजों पर हैं या उनका सही इस्तेमाल भी हो रहा है, पशुओं की सुरक्षा और नागरिकों की सुरक्षा के लिए?

नागरिकों की मांगें और आगे की राह

स्थानीय नागरिक कई बार नगर परिषद से शिकायतें कर चुके हैं, गुहार लगा चुके हैं, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला।

कुछ दिनों के लिए इक्का-दुक्का पशुओं को हटाया जाता है, शायद एक खानापूर्ति के तौर पर, और फिर वही सांड और वही झुंड कुछ ही समय बाद सड़कों पर वापस दिखाई देते हैं।

क्या प्रशासन लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहा है?

ऐसा लगता है मानो नागरिक सिर्फ शिकायतें करते रहें और अधिकारी सिर्फ आश्वासन देते रहें।

इस लापरवाही की कीमत अब मोहनलाल सोनी जैसे बेकसूर नागरिक चुका रहे हैं।

सामाजिक कार्यकर्ताओं की प्रमुख मांगें:

  • नगर परिषद तुरंत एक स्थायी और प्रभावी अभियान चलाकर सभी लावारिस पशुओं को सड़कों से हटाए और उन्हें सुरक्षित आश्रय दे।

  • अर्बुदा गोशाला के संचालन की एक निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच हो, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि वहां सच में कितने पशु रखे जा रहे हैं, बजट का इस्तेमाल कैसे हो रहा है, और क्या वहां की व्यवस्थाएं वाकई दुरुस्त हैं।

  • पशु आश्रयों के लिए पर्याप्त बजट और स्टाफ की व्यवस्था की जाए, साथ ही, इस पूरी व्यवस्था में लापरवाही बरतने वाले जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय हो।

एक चेतावनी: अगला शिकार कोई भी हो सकता है

मोहनलाल सोनी की घटना सिर्फ एक हादसा नहीं, ये एक भयानक चेतावनी है।

अगर नगर परिषद अब भी नहीं जागी, अगर ये लापरवाह रवैया जारी रहा, तो अगला शिकार कोई भी हो सकता है।

कोई बच्चा, कोई बुज़ुर्ग, कोई युवा, कोई भी!

जब नगर परिषद के पास ज़मीन है, संसाधन हैं, और सबसे बढ़कर लोगों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी है, तो फिर ये सांड सड़कों पर क्यों हैं?

ये सवाल सिर्फ मोहनलाल सोनी का नहीं है, ये सवाल हम सबका है।

क्या हम सिर्फ मूकदर्शक बने रहेंगे, या अपनी आवाज़ उठाएंगे?

इस सवाल का जवाब कौन देगा और कब?

ये खामोश सवाल आज भी हवा में गूँज रहा है।

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