Highlights
- गोरखनाथ जी महाराज की पाकिस्तान यात्रा भारत-पाक के बीच नाथ परंपरा का जीवंत सेतु है।
- रताकोट मठ (पाकिस्तान) और ख्याला मठ (भारत) नाथ परंपरा के इतिहास में विशेष स्थान रखते हैं।
- यह यात्रा राजनीतिक सीमाओं से परे आध्यात्मिक एकता और साझा संस्कृति को दर्शाती है।
- धर्म का सच्चा अर्थ प्रेम, एकता और लोककल्याण में निहित है, जिसे यह यात्रा प्रमाणित करती है।
गुलाबसिंह जैसलमेर...
जब दो देशों का विभाजन होता है तो सीमाएँ बनती हैं और नक्शे बदलते हैं,परंतु श्रद्धा नहीं बदलती है।भारत और पाकिस्तान के बीच की सरहदें चाहे कितनी भी ऊँची क्यों न हों,पर नाथ परंपरा जैसी प्राचीन आध्यात्मिक धारा आज भी दोनों देशों के लोगों के दिलों को जोड़ती है।इसी परंपरा के अग्रदूत, सिद्धपीठ ख्याला मठ(जैसलमेर) के मठाधीश पूज्य 1008 श्री गोरखनाथ जी महाराज इन दिनों पाकिस्तान की यात्रा पर हैं।गोरखनाथ जी दुबई के रास्ते पाकिस्तान पहुँचे है।यह यात्रा केवल एक धार्मिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि उस आध्यात्मिक एकता का प्रतीक है जो सीमाओं से परे है।पाकिस्तान पहुंचने पर गोरखनाथ जी महाराज का कराची,हैदराबाद,मीरपुर खास,सांगड,खिंपरो,रताकोट,रणाऊ के गांवों में भव्य स्वागत हुआ है यह इस बात का प्रमाण है कि भक्ति और आस्था की कोई सीमा नहीं होती।पाकिस्तान में बसे लाखों हिन्दू,सिंधी और मुस्लिम भी नाथ संप्रदाय के अनुयायी इस यात्रा को अपने हृदय से जोड़कर देख रहे हैं।

रताकोट और ख्यालामठ विशेष स्थान......।
नाथ परंपरा के इतिहास में रताकोट मठ (पाकिस्तान) और ख्याला मठ (भारत) का विशेष स्थान है।रताकोट मठ की स्थापना सन् 1604 में महंत वीरनाथ जी ने की थी,जबकि भारत में इसकी शाखा ख्याला मठ की स्थापना 1829 में महंत सहजनाथ जी द्वारा की गई थी।स्वतंत्रता के बाद मुख्य मठाधीश भारत में रह गए, किंतु दोनों मठों की परंपरा,साधना और श्रद्धा की डोर कभी टूटी नहीं है।
नाथ परंपरा सदा से योग,ध्यान,साधना और मानवता के सिद्धांतों की संवाहक रही है।इसका मर्म यह है कि सच्चा धर्म सीमाओं से परे होता है—वह जोड़ता है बल्कि तोड़ता नहीं है।गोरखनाथ जी महाराज की यह यात्रा उसी विचार का सशक्त उदाहरण है।आज जब विश्व अनेक विभाजनों,मतभेदों और असहिष्णुता की चुनौतियों से गुजर रहा है,तब गुरु गोरखनाथ की पाकिस्तान यात्रा एक गहरा संदेश देती है....
सीमाएँ नक्शों पर होती हैं,आस्था तो दिलों में बसती है.....।
भारत और पाकिस्तान के लोगों के लिए यह यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं,बल्कि साझा इतिहास,संस्कृति और आत्मीयता की पुनः पुष्टि है। यह बताती है कि राजनीतिक सीमाएँ भले स्थायी लगें, पर मानवता और अध्यात्म की धारा हमेशा उन्हें पार कर जाती है।
पूज्य गोरखनाथ जी महाराज का यह आध्यात्मिक प्रवास हमें स्मरण कराता है कि धर्म का सच्चा अर्थ पूजा या कर्मकांड से आगे बढ़कर प्रेम,एकता और लोककल्याण में निहित है।जब संत सीमाओं के पार संवाद स्थापित करते हैं तो वे केवल दो देशों को नहीं, बल्कि दो संस्कृतियों,दो आत्माओं और करोड़ों श्रद्धालुओं को जोड़ते हैं।
यह यात्रा नाथ परंपरा की उस अनंत मशाल का पुनर्प्रज्वलन है,जो सदी दर सदी मानवता का मार्ग आलोकित करती रही है।सीमाएँ मिट सकती हैं, पर आस्था नही,क्योंकि यह श्रद्धा का धागा किसी नक्शे में नहीं,दिलों में बुना हुआ होता है।
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