भागवत का विजयादशमी संबोधन: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत: पहलगाम हमले का ज़िक्र, आत्मनिर्भरता पर ज़ोर और पड़ोसी देशों पर चिंता

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत: पहलगाम हमले का ज़िक्र, आत्मनिर्भरता पर ज़ोर और पड़ोसी देशों पर चिंता
Mohan Bhagwat Speech
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Highlights

  • आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी उत्सव पर पहलगाम हमले का ज़िक्र किया।
  • उन्होंने भारत को अपनी सुरक्षा के लिए सतर्क और आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
  • भागवत ने अमेरिकी टैरिफ़ नीतियों और पड़ोसी देशों की राजनीतिक अस्थिरता पर चिंता व्यक्त की।
  • पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संघ में जातिगत भेदभाव न होने की बात कही।

Nagpur | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने विजयादशमी के पावन अवसर पर नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में अपने वार्षिक संबोधन में देश की सुरक्षा, आत्मनिर्भरता और पड़ोसी देशों की स्थिति सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला। इस वर्ष संघ अपनी स्थापना के 100 साल मना रहा है, जिससे यह विजयादशमी उत्सव और भी विशेष बन गया। कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे।

पहलगाम हमला और सुरक्षा की आवश्यकता

अपने संबोधन की शुरुआत गुरु तेगबहादुर और महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मोहन भागवत ने हाल ही में हुए पहलगाम हमले का ज़िक्र किया। उन्होंने कहा, "कुछ महीनों पहले पहलगाम में दुर्घटना हुई, धर्म पूछकर उनकी हत्या की गई। उसके चलते पूरे देश में क्रोध और दुख था। सेना और सरकार ने पूरी तैयारी से जवाब दिया। सारे प्रकरण में हमारे नेतृत्व की दृढ़ता का चित्र प्रकाशित हुआ।" भागवत ने इस घटना को एक सबक बताते हुए कहा कि भले ही भारत सभी के साथ मित्रता का भाव रखता है, लेकिन अपनी सुरक्षा के लिए उसे और अधिक सजग और समर्थ रहना होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि हमें अंतरराष्ट्रीय संबंधों में समझ रखनी होगी और दोस्त तथा दुश्मन का पता होना चाहिए।

अमेरिकी टैरिफ़ और आत्मनिर्भरता पर ज़ोर

संघ प्रमुख ने वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर भी बात की और अमेरिका द्वारा अपनाई गई नई टैरिफ़ नीति का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि इस नीति की मार सभी पर पड़ रही है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि दुनिया में आपसी संबंध बनाना कितना आवश्यक है क्योंकि कोई भी देश अकेले नहीं जी सकता। हालांकि, भागवत ने चेतावनी दी कि यह निर्भरता मजबूरी में नहीं बदलनी चाहिए। उन्होंने भारत को आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए कहा, "हमें स्वदेशी पर भरोसा करने और आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।" उनका मानना था कि अमेरिकी टैरिफ़ नीति उनके अपने हितों को ध्यान में रखकर बनाई गई है, लेकिन इसका प्रभाव वैश्विक है, और ऐसे में भारत को अपनी आर्थिक संप्रभुता बनाए रखनी होगी।

पड़ोसी देशों की स्थिति और हिंसक प्रदर्शनों की आलोचना

मोहन भागवत ने नेपाल और बांग्लादेश सहित भारत के कुछ पड़ोसी देशों में चल रहे विरोध प्रदर्शनों और आंदोलनों पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जब सरकार जनता से दूर हो जाती है तो लोगों में असंतोष पैदा होता है। हालांकि, उन्होंने हिंसक प्रदर्शनों के तरीके की कड़ी आलोचना की। भागवत ने कहा, "अगर हम अब तक की राजनीतिक क्रांतियों का इतिहास देखें तो उनमें से किसी ने भी अपना उद्देश्य कभी हासिल नहीं किया। हिंसक प्रदर्शनों से कोई उद्देश्य हासिल नहीं होता, बल्कि देश के बाहर बैठी शक्तियों को अपना खेल खेलने का मंच मिल जाता है।" उन्होंने जोर दिया कि लोकतांत्रिक तरीके से बदलाव आता है और हिंसक परिवर्तनों से अराजकता की स्थिति बनती है, जो किसी भी देश के लिए हितकारी नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि पड़ोसी देशों में ऐसी उथल-पुथल भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि वे पहले हमारे लोग ही थे।

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का संबोधन

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी सभा को संबोधित किया। उन्होंने महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। कोविंद ने आरएसएस की शताब्दी का ज़िक्र करते हुए कहा कि नागपुर की पावन भूमि डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और डॉ. भीमराव आंबेडकर जैसी महान विभूतियों की स्मृतियों से जुड़ी है। उन्होंने संघ में अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, "संघ में किसी प्रकार का कोई जाति भेदभाव नहीं है। इस तरह का मेरा पहला एक्सपीरियंस भी संघ में ही था। जहां पूरा सम्मान और कोई भेदभाव नहीं मिला।" यह टिप्पणी संघ की समावेशी प्रकृति को रेखांकित करती है।

सरसंघचालक मोहन भागवत के संबोधन ने भारत को वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति मज़बूत करने, आंतरिक सुरक्षा को प्राथमिकता देने और आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ने का स्पष्ट संदेश दिया। उन्होंने समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीकों पर बल दिया, जबकि हिंसक आंदोलनों से उत्पन्न होने वाली अराजकता के प्रति आगाह किया।

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