Highlights
- सुप्रीम कोर्ट ने गोडावण संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी।
- राजस्थान और गुजरात में बड़े सोलर व पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट्स पर रोक।
- कोर्ट ने कंपनियों को 'रेगिस्तान का मालिक नहीं, सिर्फ मेहमान' बताया।
- जैसलमेर-बाड़मेर में 250 किमी बिजली लाइनें भूमिगत होंगी।
जैसलमेर: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राज्य पक्षी गोडावण (Great Indian Bustard) को बचाने के लिए राजस्थान (Rajasthan) और गुजरात (Gujarat) के 14,753 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बड़े सोलर व पवन ऊर्जा परियोजनाओं पर रोक लगाई है। कोर्ट ने कंपनियों को 'रेगिस्तान का मेहमान' बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने गोडावण (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड) को विलुप्त होने से बचाने के लिए एक ऐतिहासिक और सख्त फैसला सुनाया है। यह फैसला वन्यजीव संरक्षण के प्रति देश की सर्वोच्च न्यायपालिका की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस अतुल चांडूरकर की पीठ ने गोडावण संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। इस फैसले का सबसे ज्यादा असर जैसलमेर और बाड़मेर जिलों पर पड़ेगा, जो सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं के केंद्र बनते जा रहे हैं।
कोर्ट ने राजस्थान और गुजरात के कुल 14,753 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बड़े सोलर पार्क, पवन ऊर्जा परियोजनाओं और हाईटेंशन ओवरहेड बिजली लाइनों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। यह कदम गोडावण के प्राकृतिक आवास को सुरक्षित रखने के लिए उठाया गया है।
'गोडावण राजस्थान की आत्मा, कंपनियां सिर्फ मेहमान'
यह ऐतिहासिक फैसला पूर्व आईएएस अधिकारी और पर्यावरणविद् एम.के. रंजीत सिंह द्वारा दायर याचिका पर सुनाया गया है। कोर्ट ने अपने फैसले में बेहद महत्वपूर्ण और भावनात्मक टिप्पणी की।
पीठ ने कहा, "गोडावण राजस्थान की आत्मा है। अगर यह पक्षी खत्म हुआ, तो यह हमारी पीढ़ी की सबसे बड़ी पर्यावरणीय विफलता होगी।" यह टिप्पणी इस दुर्लभ पक्षी के अस्तित्व के गहरे संकट को दर्शाती है।
कोर्ट ने जैसलमेर-बाड़मेर में काम कर रही ऊर्जा कंपनियों को भी कड़ा संदेश दिया। पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा, "कंपनियां रेगिस्तान की मालिक नहीं, बल्कि यहां मेहमान हैं।"
अदालत ने इन कंपनियों को अपनी CSR (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) राशि गोडावण और पर्यावरण संरक्षण पर खर्च करने का भी निर्देश दिया है। यह कंपनियों की सामाजिक जिम्मेदारी को रेखांकित करता है।
संरक्षित क्षेत्र का विस्तार और नए प्रोजेक्ट्स पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान में गोडावण के लिए संरक्षित क्षेत्र को बढ़ाकर 14,013 वर्ग किलोमीटर कर दिया है। यह एक बड़ा कदम है, जो गोडावण के विचरण क्षेत्र को कानूनी सुरक्षा प्रदान करेगा।
इस विस्तारित क्षेत्र में जैसलमेर के सम, पोकरण, लाठी, धोलीया, चाचा, ओढ़ाणिया और बाड़मेर से सटे कई इलाके शामिल हैं। इन संवेदनशील क्षेत्रों में अब 2 मेगावाट से बड़े नए सोलर प्रोजेक्ट, नई पवन चक्कियां और हाईटेंशन ओवरहेड बिजली लाइनें नहीं लगाई जा सकेंगी।
याचिका में बताया गया था कि गोडावण के विचरण क्षेत्र में तेजी से फैल रही सोलर और विंड परियोजनाएं तथा बिजली लाइनें इस दुर्लभ पक्षी के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुकी हैं। यह फैसला इस खतरे को कम करने में मदद करेगा।
बिजली लाइनें बनीं गोडावण की दुश्मन: समाधान का आदेश
पीठ ने अपने आदेश में इस बात को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि जैसलमेर-बाड़मेर क्षेत्र में गोडावण की मौत का सबसे बड़ा कारण हाईटेंशन बिजली लाइनों से टकराव है। गोडावण जैसे बड़े पक्षी खुले रेगिस्तानी इलाकों में उड़ते समय इन तारों को देख नहीं पाते और उनसे टकराकर उनकी मौत हो जाती है।
इसी गंभीर खतरे को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 33 केवी, 66 केवी और कई जगह 400 केवी तक की मौजूदा बिजली लाइनों को भूमिगत करने या दूसरी जगह शिफ्ट करने का आदेश दिया है। यह एक महंगा लेकिन आवश्यक कदम है।
250 किमी बिजली लाइनें होंगी भूमिगत
अदालत ने लगभग 250 किलोमीटर लंबी बिजली लाइनों को अगले दो वर्षों में भूमिगत करने के निर्देश दिए हैं। यह कार्य गोडावण की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्राथमिकता के आधार पर किया जाएगा।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अब गोडावण क्षेत्र में बिजली लाइनें बेतरतीब तरीके से नहीं बिछेंगी। संवेदनशील इलाकों में केवल निर्धारित पावर कॉरिडोर से ही ट्रांसमिशन लाइनें गुजरेंगी, ताकि पक्षियों के प्राकृतिक आवागमन में कोई बाधा न आए।
जैसलमेर में एक गोडावण प्रजनन केंद्र भी बनाया गया है, जहां इनके अंडों से निकले बच्चों को पाला जाता है। इन प्रयासों को भी कोर्ट के फैसले से बल मिलेगा।
सौर और पवन ऊर्जा उद्योग पर असर और संतुलन की चुनौती
जैसलमेर और बाड़मेर देश के सबसे बड़े सोलर और विंड एनर्जी हब माने जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यहां चल रही और प्रस्तावित कई बड़ी परियोजनाओं पर सीधा असर पड़ेगा।
हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि स्थानीय जरूरतों के लिए 2 मेगावाट तक के छोटे सोलर प्रोजेक्ट्स को अनुमति दी जा सकती है। यह फैसला पर्यावरण संरक्षण और अक्षय ऊर्जा विकास के बीच संतुलन बनाने की कोशिश है।
यह निर्णय दर्शाता है कि विकास परियोजनाओं को पर्यावरण और वन्यजीवों की कीमत पर नहीं चलाया जा सकता। अक्षय ऊर्जा महत्वपूर्ण है, लेकिन इसका विस्तार संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाए बिना होना चाहिए।
'प्रोजेक्ट गोडावण' को मिलेगी मजबूती और भविष्य की राह
पीठ ने केंद्र और राज्य सरकार को 'प्रोजेक्ट गोडावण' के दूसरे चरण को तेजी से लागू करने के निर्देश दिए हैं। इस परियोजना का उद्देश्य गोडावण की आबादी को बढ़ाना और उसके आवास को सुरक्षित रखना है।
इसके तहत घास के मैदानों का संरक्षण, अवैध शिकार पर सख्ती से रोक, आवारा कुत्तों और शिकारी जानवरों की निगरानी तथा गोडावण के प्रजनन कार्यक्रम को तेज किया जाएगा। ये सभी कदम इस पक्षी के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण हैं।
राजस्थान में बचे सिर्फ 150 गोडावण: अति संकटग्रस्त स्थिति
राजस्थान में गोडावण (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड) की स्थिति बेहद चिंताजनक हो चुकी है। विशेषज्ञों के अनुसार, राज्य में अब सिर्फ 150 से 175 गोडावण ही शेष बचे हैं। इनमें से अधिकांश पक्षी जैसलमेर के डेजर्ट नेशनल पार्क और उससे सटे इलाकों में पाए जाते हैं।
अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने गोडावण को पहले ही अति संकटग्रस्त श्रेणी (Critically Endangered) में रखा है। इसका मतलब है कि यह पक्षी विलुप्त होने के कगार पर है।
वन्यजीव विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है कि अगर तत्काल और सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले कुछ वर्षों में गोडावण पूरी तरह विलुप्त हो सकता है। बिजली की हाईटेंशन लाइनों से टकराव, घटते घास के मैदान और मानवीय गतिविधियां इसके अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा बनी हुई हैं।
सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक और दूरगामी फैसला इस दुर्लभ पक्षी को बचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण और निर्णायक कदम है। यह भारत की समृद्ध जैव विविधता को संरक्षित करने की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।
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