Highlights
- दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का प्रयास कम आर्द्रता के कारण विफल रहा।
- राजस्थान में भी क्लाउड सीडिंग के कई प्रयास पहले असफल हो चुके हैं।
- यह तकनीक केवल विशिष्ट मौसमी परिस्थितियों में ही प्रभावी हो सकती है।
- प्रदूषण और जल संकट के लिए दीर्घकालिक समाधानों पर ध्यान देना चाहिए।
नई दिल्ली: दिल्ली (Delhi) में प्रदूषण कम करने के लिए क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) का प्रयास विफल रहा। आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) ने कम आर्द्रता को कारण बताया। राजस्थान (Rajasthan) की असफलताओं से सीख मिलती है कि यह तकनीक विशिष्ट परिस्थितियों में ही प्रभावी है।
दिल्ली का नाकाम प्रयास
भारत में वायु प्रदूषण, विशेषकर दिल्ली जैसे बड़े शहरों में, एक गंभीर पर्यावरणीय और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन चुका है।
दिवाली के बाद दिल्ली में प्रदूषण में रिकॉर्ड बढ़ोतरी दर्ज की गई, जिसके चलते सरकार ने 'क्लाउड सीडिंग' (कृत्रिम बारिश) के ज़रिए इस समस्या से लड़ने की कोशिश की।
हालांकि, यह प्रयास भी नाकाम रहा, जिसने इस तकनीक की व्यवहार्यता और चुनौतियों पर फिर से बहस छेड़ दी है।
मंगलवार को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण के मक़सद से कृत्रिम बारिश कराने की कोशिश की गई, लेकिन यह प्रयास विफल रहा।
आईआईटी कानपुर की टीम ने सेसना विमानों का इस्तेमाल कर खेकड़ा, बुराड़ी, उत्तरी करोल बाग़, मयूर विहार, सादकपुर, भोजपुर और अन्य इलाक़ों में क्लाउड सीडिंग के लिए हाइग्रोस्कोपिक नमक के फ्लेयर छोड़े।
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने इन प्रयासों की पुष्टि करते हुए बताया कि अलग-अलग आर्द्रता की स्थिति में बारिश की संभावना के लिए जानकारी इकट्ठा करने के लिए प्रयोग किए गए।
उन्होंने कहा कि वातावरण में आर्द्रता बारिश होने के लिए ज़रूरी मात्रा से काफ़ी कम थी।
सिरसा ने इसे शहरी इलाक़ों में हवा की गुणवत्ता को सुधारने की दिशा में विज्ञान आधारित क़दम बताया, और भविष्य में भी ऐसे प्रयासों की बात कही।
दिल्ली सरकार ने इसके लिए 3.21 करोड़ रुपये का बजट भी मंज़ूर किया था।
विफलता के मुख्य कारण
क्लाउड सीडिंग के प्रयासों की विफलता का मुख्य कारण वातावरण में आर्द्रता की कमी को बताया जा रहा है।
आईआईटी कानपुर के निदेशक मणींद्र अग्रवाल ने स्पष्ट किया कि अगर बारिश होने को सफलता का पैमाना माना जाए तो दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का प्रयास विफल रहा है।
उन्होंने कहा कि बादलों में आर्द्रता बहुत कम थी, जिससे क्लाउड सीडिंग के नतीजे उम्मीद के मुताबिक़ नहीं रहे।
भले ही दिल्ली सरकार ने जिन क्षेत्रों में क्लाउड सीडिंग की गई थी, वहां पार्टिकुलेट मैटर (प्रदूषण तत्वों) में कमी का दावा किया, लेकिन 28 अक्तूबर के सीपीसीबी के रियल टाइम डेटा के मुताबिक़ इसमें कोई उल्लेखनीय गिरावट नहीं आई थी।
आईआईटी कानपुर की टीम ने प्रदूषण नियंत्रण के मक़सद से यह पहला घरेलू प्रयास बताया।
इससे पहले सूखे नियंत्रण के लिए क्लाउड सीडिंग की गई थी, लेकिन तब एक निजी कंपनी ने ठेका लिया था और उपकरण विदेश से मंगवाए गए थे।
वैज्ञानिक पृष्ठभूमि
वैज्ञानिक दृष्टि से, क्लाउड सीडिंग में सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड और नमक जैसे पदार्थों के बेहद सूक्ष्म कण वातावरण में छोड़े जाते हैं।
ये कण बादलों में पर्याप्त आर्द्रता होने पर संघनन (कंडेनसेशन) की प्रक्रिया को तेज करके बारिश करवा सकते हैं।
राजस्थान की असफलता से सीख
दिल्ली की असफलता कोई नई बात नहीं है।
भारत में क्लाउड सीडिंग के प्रयास पहले भी किए गए हैं, और उनमें से कई असफल रहे हैं।
राजस्थान में भी क्लाउड सीडिंग की कोशिशें नाकाम रही थीं।
राजस्थान जैसे शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में, जहां प्राकृतिक रूप से बादल और पर्याप्त आर्द्रता कम होती है, क्लाउड सीडिंग की सफलता दर हमेशा से एक बड़ी चुनौती रही है।
इन क्षेत्रों में, अक्सर पर्याप्त घने और आर्द्र बादल मौजूद ही नहीं होते जिन पर सीडिंग प्रभावी हो सके।
जिस तरह दिल्ली में 'कम आर्द्रता' विफलता का कारण बनी, उसी तरह राजस्थान में भी उपयुक्त बादलों की कमी के कारण ये प्रयोग अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाए थे।
राजस्थान की विफलताएं यह दर्शाती हैं कि क्लाउड सीडिंग केवल तभी प्रभावी हो सकती है जब कुछ विशिष्ट मौसमी और वायुमंडलीय परिस्थितियाँ मौजूद हों।
बिना पर्याप्त आर्द्रता और उपयुक्त बादल संरचना के, रसायनों का छिड़काव मात्र महंगे और व्यर्थ के प्रयास साबित होते हैं।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य और चुनौतियाँ
दुनिया भर में क्लाउड सीडिंग को लेकर मिश्रित परिणाम देखने को मिले हैं।
चीन इस क्षेत्र में सबसे आगे है और वहां लाखों वर्ग किलोमीटर इलाक़े में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस तकनीक का उपयोग करके क्लाउड सीडिंग की जाती है।
संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका के सूखाग्रस्त राज्यों में भी कृषि और अन्य उद्देश्यों के लिए बड़े पैमाने पर क्लाउड सीडिंग होती है।
चीन ने 2008 के बीजिंग ओलंपिक खेलों के दौरान भी हवा साफ़ करने के लिए इसका इस्तेमाल किया था।
हालांकि, कुछ देशों में सफलता के बावजूद, क्लाउड सीडिंग की प्रभावशीलता पर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं।
इसराइल ने 1960 के दशक से क्लाउड सीडिंग पर काम किया, लेकिन 2014 में शुरू किए गए एक बड़े कार्यक्रम को 2021 में उत्साहजनक नतीजे न मिलने के बाद निलंबित कर दिया।
शोध में पाया गया कि बारिश की मात्रा में कोई ख़ास बढ़ोतरी नहीं हुई और यह एक महंगा कार्यक्रम साबित हुआ।
आलोचनात्मक विश्लेषण
दिल्ली में क्लाउड सीडिंग की विफलता और राजस्थान के पूर्व अनुभवों से पता चलता है कि यह तकनीक भारत जैसे देशों के लिए प्रदूषण या सूखे से लड़ने का कोई जादुई समाधान नहीं है।
पर्याप्त आर्द्रता की कमी
दिल्ली और राजस्थान दोनों ही मामलों में, पर्याप्त आर्द्रता और उपयुक्त बादलों की कमी सबसे बड़ी बाधा रही है।
क्लाउड सीडिंग तब तक प्रभावी नहीं हो सकती जब तक कि प्राकृतिक रूप से वर्षा-उत्पादक बादल मौजूद न हों।
लागत-लाभ विश्लेषण
इसराइल के अनुभव से पता चलता है कि क्लाउड सीडिंग एक महंगा कार्यक्रम हो सकता है और यदि परिणाम उम्मीद के मुताबिक़ न हों, तो यह वित्तीय रूप से अव्यवहारिक हो जाता है।
3.21 करोड़ रुपये का बजट दिल्ली के लिए एक बड़ा निवेश है, और यदि परिणाम शून्य हैं, तो यह संसाधनों की बर्बादी है।
दीर्घकालिक समाधान नहीं
क्लाउड सीडिंग प्रदूषण या जल संकट का दीर्घकालिक समाधान नहीं है।
प्रदूषण से लड़ने के लिए स्रोत पर नियंत्रण, हरित ऊर्जा को बढ़ावा देना, सार्वजनिक परिवहन में सुधार और कचरा प्रबंधन जैसे उपाय कहीं अधिक प्रभावी हैं।
इसी तरह, जल संकट के लिए वर्षा जल संचयन, जल संरक्षण और कुशल जल प्रबंधन अधिक टिकाऊ समाधान हैं।
पारिस्थितिक प्रभाव
रसायनों के उपयोग से संभावित पर्यावरणीय प्रभावों पर भी विचार किया जाना चाहिए, हालांकि इस पर अभी और शोध की आवश्यकता है।
वैज्ञानिक अनिश्चितता
क्लाउड सीडिंग की सफलता बहुत हद तक प्राकृतिक मौसम की परिस्थितियों पर निर्भर करती है, और इसके परिणामों की सटीक भविष्यवाणी करना अभी भी चुनौतीपूर्ण है।
निष्कर्ष
दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का असफल प्रयोग और राजस्थान के पिछले अनुभव इस बात का प्रमाण हैं कि कृत्रिम बारिश कराना एक जटिल और अनिश्चित प्रक्रिया है।
यह तकनीक केवल विशिष्ट परिस्थितियों में ही प्रभावी हो सकती है और इसे प्रदूषण या सूखे के लिए अंतिम समाधान के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
भारत को प्रदूषण और जल संकट जैसी समस्याओं से निपटने के लिए वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित, लागत प्रभावी और दीर्घकालिक टिकाऊ समाधानों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, बजाय इसके कि महंगी और अक्सर असफल रहने वाली क्लाउड सीडिंग जैसी तकनीकों पर अधिक निर्भर रहा जाए।
असली चुनौती प्रदूषण के मूल कारणों को दूर करना और प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण प्रबंधन करना है।
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