Highlights
- जैसलमेर के सनावड़ा गांव में पूजा कंवर ने हिरण के बच्चे को पाला।
- मादा हिरण को आवारा कुत्तों ने मार डाला था, जिसके बाद पूजा ने बच्चे की परवरिश की।
- पूजा ने 4 महीने तक हिरण के बच्चे को गाय व बकरी का दूध पिलाकर पाला।
- वन विभाग को सौंपते समय पूजा की आंखों से आंसू निकल आए, जो उनके गहरे लगाव को दर्शाता है।
जैसलमेर: जैसलमेर (Jaisalmer) के सनावड़ा गांव (Sanawada village) में पूजा कंवर (Pooja Kanwar) ने 4 माह तक हिरण के बच्चे को अपने छोटे भाई की तरह पाला। आवारा कुत्तों ने उसकी मां को मार डाला था। वन विभाग को सौंपते समय पूजा भावुक हो गईं।
पशु प्रेम की अनूठी मिसाल
जैसलमेर जिले के लाठी क्षेत्र के सनावड़ा गांव निवासी एक परिवार ने पशु प्रेम की एक अनूठी मिसाल पेश की है।
खेत के पास एक मादा हिरण को आवारा कुत्तों ने मार डाला था।
इसके बाद उसके बच्चे की पूजा कंवर ने चार महीने तक अपने छोटे भाई की तरह परवरिश की।
उन्होंने गाय व बकरी का दूध पिलाकर उसका पालन-पोषण किया और उसका नाम 'मुनकी' रखा।
जब उसे वन विभाग को सौंपा गया, तो पूजा का दिल भर आया और उनकी आंखों से आंसू निकल आए।
इस रिश्ते की खासियत यह भी है कि हिरण इंसानों के पास आना तो दूर, आहट सुनते ही भाग जाता है।
लेकिन जन्म के करीब पांच दिन बाद से ही हिरण का बच्चा अपनी मां से बिछड़ गया था।

हिरण से पूजा का गहरा लगाव
सनावाड़ा गांव निवासी भगवान सिंह की पुत्री पूजा का कहना है कि जब से हिरण उसको मिला है, तब से वह स्कूल तक नहीं गई।
वह सारा दिन हिरण के पास उसके पालन-पोषण में ध्यान रखती थीं।
इस कारण उनकी स्कूल छूट गई।
पूजा को हिरण से इतना लगाव हो गया कि वह एक पल भी उससे दूर नहीं रहती थीं।
यह अद्भुत बंधन इंसानों और वन्यजीवों के बीच एक विशेष रिश्ते को दर्शाता है।
पूजा ने हिरण के बच्चे को अपने परिवार का एक अभिन्न अंग मान लिया था।
वन विभाग को सूचना और सुपुर्दगी
भगवानसिंह ने बताया कि उनकी बच्ची पूजा ने हिरण के बच्चे को अपने छोटे भाई की तरह बोतल से दूध पिला-पिलाकर जिंदा रखा।
हिरण का बच्चा इतना चंचल है कि कुछ ही दिनों में वह उनसे घुलमिल गया और उसका डर खत्म हो गया।
अब आवारा कुत्तों के हमले होने का डर सताता रहता था, लिहाजा इसको देखते हुए वन विभाग को सूचित कर दिया गया।
वन्य जीव प्रेमी धर्मेंद्र विश्नोई और वनपाल कमलेश विश्नोई की मौजूदगी में हिरण के बच्चे को वन विभाग को सुपुर्द किया गया है।
यह कदम हिरण के बच्चे की सुरक्षा और उसके प्राकृतिक आवास में वापसी के लिए उठाया गया।
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