Why PK Fail in Bihar: किंगमेकर प्रशांत किशोर की बिहार में करारी हार: दावे और हकीकत

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Highlights

  • प्रशांत किशोर के बड़े-बड़े दावे और चुनावी नतीजों का चौंकाने वाला विरोधाभास।
  • जनसुराज पार्टी के 98% प्रत्याशियों की जमानत जब्त, वोट शेयर मात्र 2%।
  • अपने गृह जिले रोहतास में भी पार्टी का खराब प्रदर्शन, करगहर में सिर्फ 3% वोट।
  • स्वच्छ राजनीति के दावों के बावजूद कई प्रत्याशियों पर गंभीर आपराधिक मामले।

नई दिल्ली: राजनीति के जादूगर प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने बिहार (Bihar) में अपनी पार्टी जनसुराज (Jan Suraaj) के साथ चुनावी मैदान में उतरकर बड़े-बड़े दावे किए थे। लेकिन, नतीजे उनकी उम्मीदों से बिल्कुल उलट रहे। 1 करोड़ सदस्यों का दावा करने वाली जनसुराज को 10 लाख से भी कम वोट मिले, और 98% प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। यह कहानी एक किंगमेकर (Kingmaker) के खुद किंग बनने की कोशिश में मिली करारी हार की है।

नमस्कार दोस्तों! आज हम आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसे सुनकर शायद आप हंसते-हंसते लोटपोट हो जाएं, या फिर सिर पकड़कर कहें, "अरे भाई, ये क्या हो गया!" एक ऐसा शख्स, जिसे राजनीति का जादूगर माना जाता है, जिसने बड़े-बड़े सूरमाओं को गद्दी दिलाई, जिसने पिछले 6 सालों में 6 मुख्यमंत्रियों की तकदीर लिखी, वो जब खुद अपने लिए मैदान में उतरा, तो क्या हुआ? क्या उसने इतिहास रच दिया? या फिर... इतिहास ने उसे ही एक मजेदार सबक सिखा दिया?

कल्पना कीजिए, एक शतरंज का खिलाड़ी, जो बड़े-बड़े धुरंधरों को मात देता आया है, अचानक अपनी चाल में खुद ही फंस जाए! आज हम उस "किंगमेकर" की कहानी लेकर आए हैं, जो राजा बनाने निकला था, लेकिन खुद अपनी ही जंग में, एक ऐसी हार से दो-चार हुआ, जिसे सुनकर आपको लगेगा... ये स्क्रिप्ट हॉलीवुड की कॉमेडी फिल्म से कम नहीं! तैयार हो जाइए, क्योंकि अब पर्दा उठने वाला है उस धमाकेदार सियासी ड्रामे से, जिसमें दांव पर थी एक शख्स की साख, और नतीजे में मिली... बस ढेर सारी हंसी!

किंगमेकर प्रशांत किशोर के बड़े-बड़े दावे और हकीकत

तो जनाब, कहानी शुरू होती है एक ऐसे शख्स से, जिसका नाम है प्रशांत किशोर, जिन्हें लोग प्यार से पीके बुलाते हैं। ये वो शख्स हैं, जो चुनाव से पहले ऐसे-ऐसे बयान देते थे, मानो उन्हें भविष्य पता हो। बीते 6 महीने में, पीके ने 100 से ज़्यादा बार कुछ ऐसे बयान दिए, जिन्हें सुनकर लगता था, "वाह! क्या कॉन्फिडेंस है!" कभी लिखकर, कभी बोलकर, उन्होंने बड़े-बड़े दावे किए थे।

दावा नंबर 1: "जेडीयू 25 से कम सीटें जीतेगी, नीतीश कुमार अब सीएम नहीं बनेंगे!"

पीके ने 9 नवंबर को एक इंटरव्यू में कहा था, "नीतीश सरकार जा रही है, 14 नवंबर के बाद नई सरकार आएगी!" 7 अक्टूबर को तो ये तक कह दिया था, "जेडीयू 25 से कम सीटें जीतेगी, अगर ज़्यादा आईं तो राजनीति छोड़ दूंगा!"

हकीकत: अरे भाई! हकीकत तो ये है कि एनडीए न सिर्फ सरकार में लौटी, बल्कि पिछली बार से भी अच्छा प्रदर्शन करते हुए 200 से ज़्यादा सीटें जीत गई! और जेडीयू? जेडीयू तो 80 सीटें जीतकर विधानसभा में नंबर-3 से नंबर-2 की पोजीशन पर पहुंच गई! अब प्रशांत जी, क्या आप राजनीति छोड़ेंगे? या कहेंगे, "अरे, ये तो सिर्फ मेरी रणनीति का हिस्सा था, सबको गुमराह करने का!"

दावा नंबर 2: "अगर जनसुराज को 130 सीटें भी मिलीं, तो भी मैं अपनी हार मानूंगा!"

सितंबर में पीके ने कई बार कहा कि 2025 में बिहार इतिहास रचेगा, जनसुराज की सरकार बनेगी! उन्होंने तो यहां तक कहा था कि अगर उनकी पार्टी को 125-130 सीटें भी मिलीं, तो उसे भी वो अपनी हार मानेंगे!

हकीकत: भाई साहब! हकीकत तो ये है कि जनसुराज का खाता भी नहीं खुला! 98% प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई! अब जब खाता ही नहीं खुला, तो हार मानने या ना मानने का सवाल ही कहां उठता है? ये तो ऐसा हुआ, जैसे आपने कहा हो कि अगर मैं ओलंपिक में गोल्ड मेडल नहीं जीता, तो अपनी हार मानूंगा, और आप ट्रैक पर पहुंचे ही ना!

दावा नंबर 3: "महागठबंधन लड़ाई में नहीं है, एनडीए-जनसुराज मेन प्लेयर है!"

चुनाव से 3 महीने पहले से पीके लगातार यही दावा कर रहे थे कि इस बार की लड़ाई तो एनडीए और जनसुराज के बीच है, महागठबंधन कहीं है ही नहीं!

हकीकत: चुनाव नतीजे देखें तो लड़ाई में जनसुराज दूर-दूर तक दिखी ही नहीं! वो तो एनडीए और महागठबंधन के बीच ही जोरदार कुश्ती हुई, और जीत एनडीए की हुई! जनसुराज तो दर्शक दीर्घा में बैठकर तालियां बजाती रह गई!

जनसुराज का चुनावी प्रदर्शन: आंकड़ों की जुबानी

जिस शख्स ने पिछले 6 सालों में 6 मुख्यमंत्रियों को कुर्सी तक पहुंचाया, वो जब खुद बिहार जीतने निकले, तो क्या हुआ? उनकी पार्टी, जनसुराज, जिसने दावा किया था कि उनके साथ 1 करोड़ से ज़्यादा सदस्य जुड़े हैं, पता है उन्हें कितने वोट मिले? 10 लाख भी नहीं! जी हाँ, आपने सही सुना! 1 करोड़ का दावा और 10 लाख से भी कम वोट! ये तो ऐसा हुआ, जैसे आपने बिरयानी बनाने के लिए पूरा शहर बुलाया हो और प्लेट में सिर्फ एक दाना चावल बचा हो!

जनसुराज पार्टी ने कुल 238 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। इतने सारे कैंडिडेट, मतलब ऐसा लगा कि पूरी फौज उतार दी हो! लेकिन, इस फौज का क्या हुआ? पता है क्या? उनमें से 233 सीटों पर, मतलब 98% सीटों पर, उनकी जमानत जब्त हो गई! अरे भाई, जमानत ज़ब्त! मतलब, अपनी एंट्री फीस भी वापस नहीं ले पाए! हद तो तब हो गई, जब मढ़ौरा सीट पर, जहां एनडीए के प्रत्याशी का नामांकन ही खारिज हो गया था, वहां भी जनसुराज दूसरे नंबर पर भी नहीं पहुंच पाई! ये तो बिल्कुल जले पर नमक छिड़कने वाली बात हो गई!

जनसुराज को कुल वोट मिले सिर्फ 2% के करीब। अब इस आंकड़े को जरा ओवैसी और मायावती की पार्टियों से कंपेयर कीजिए। AIMIM ने सिर्फ 28 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे 2% वोट शेयर के साथ 5 सीटें मिल गईं! वहीं, बीएसपी ने 181 सीटों पर चुनाव लड़ा और 1.5% वोट शेयर के साथ एक सीट जीत ली! मतलब, इन पार्टियों ने कम संसाधनों और कम सीटों के साथ भी पीके की जनसुराज से बेहतर प्रदर्शन किया! इसे कहते हैं – 'छोटे मियां तो छोटे मियां, बड़े मियां सुभान अल्लाह!'

अपने गृह जिले में भी नहीं बचा पाए साख

अब जरा प्रशांत किशोर के अपने गृह जिले, रोहतास की बात करते हैं। रोहतास में विधानसभा की कुल 7 सीटें हैं। एक व्यक्ति जो पूरे बिहार को बदलने का दम भर रहा था, वो अपने ही घर की, अपने ही जिले की किसी भी सीट पर अपनी पार्टी की जमानत नहीं बचा पाया! उनकी अपनी विधानसभा, करगहर में, जनसुराज को सिर्फ 3% वोट मिले! 3%... मतलब, अपने ही मोहल्ले में इज्जत नहीं बचा पाए! ये तो ऐसा हुआ, जैसे कोई विश्व चैंपियन बॉक्सर अपने घर में ही गली के छोकरों से हार जाए!

स्वच्छ राजनीति का दावा और आपराधिक रिकॉर्ड

दावा नंबर 4: "हम साफ-सुथरी राजनीति करने आए हैं, समाज के अच्छे लोगों को टिकट देंगे!"

पीके बड़े-बड़े दावे करते थे कि वो स्वच्छ राजनीति करने आए हैं, और उनकी पार्टी सिर्फ अच्छे, साफ-सुथरे लोगों को ही टिकट देगी।

हकीकत: लेकिन एडीआर (ADR) की रिपोर्ट ने तो पोल ही खोल दी! जनसुराज के 231 प्रत्याशियों में से 108 पर आपराधिक मामले दर्ज थे! इसमें से 100 पर गंभीर आपराधिक मामले थे! 25 प्रत्याशियों पर हत्या के प्रयास का केस! 12 प्रत्याशियों पर हत्या का आरोप! और 14 प्रत्याशियों पर महिलाओं के खिलाफ अत्याचार का केस! अब आप ही बताइए, क्या ये 'अच्छे लोग' थे? ये तो ऐसा हुआ, जैसे कोई कहे कि हम सिर्फ शुद्ध देसी घी बेच रहे हैं, और डिब्बे में डालडा निकले! इसी बीच, प्रशांत किशोर ने चुनाव के दौरान गृह मंत्री अमित शाह पर अपने प्रत्याशियों पर दबाव डालने का आरोप भी लगाया था। शायद इसी दबाव के चलते, 'अच्छे लोग' मजबूरन टिकट ले लिए होंगे!

पदयात्रा, फंडिंग और प्रोफेशनल टीम: सब बेअसर

अब जरा पीके की 'पदयात्रा' पर आते हैं। जनसुराज पार्टी का दावा है कि पार्टी बनाने से पहले प्रशांत किशोर ने 5 मई 2022 से 2 अक्टूबर 2024 तक, पूरे 1280 दिन, 6 हज़ार किलोमीटर की पैदल यात्रा की! 5 हज़ार गांवों तक पहुंचे! 5 हज़ार सभाएं की! खूब प्रचार-प्रसार किया! बिहार की खाक छानी! लेकिन नतीजा? वही ढाक के तीन पात! सिफर! ज़ीरो! इतनी लंबी यात्रा, इतनी मेहनत... और हाथ में आया बाबा जी का ठुल्लू! पीके ने बताया कि उन्होंने अपना पूरा चुनावी कैंपेन सड़क मार्ग से किया, कोई हवाई यात्रा, मतलब हेलिकॉप्टर से प्रचार करने नहीं गए। शायद उन्हें लगा होगा कि जमीन से जुड़ा रहना ज्यादा अच्छा है, लेकिन भैया, कभी-कभी उड़ान भरना भी जरूरी होता है! शायद हेलिकॉप्टर में कुछ ऐसी जादुई शक्ति होती है, प्रशांत जी को नहीं पता था!

और हां, पैसे की तो कोई कमी थी ही नहीं! 29 सितंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके प्रशांत किशोर ने अपनी और अपनी पार्टी की फंडिंग के बारे में जानकारी दी थी। उन्होंने बताया, "2021 से 2023 के बीच जिसने भी हमसे सलाह ली है, उससे हमने पैसा लिया है। पिछले 3 साल में फीस के तौर पर 241 करोड़ रुपये लिए हैं!" 241 करोड़! सुनने में ही मुंह खुला रह जाता है! इस पर उन्होंने सरकार को 18% जीएसटी भी दिया और करीब 20 करोड़ इनकम टैक्स भी भरा! फिर पीके ने कहा, "मैं जो भी फीस लेता हूं, उसमें अपना खर्च काटकर जो बचता है, उसे पार्टी के नाम डोनेट कर देता हूं।" और पता है, उन्होंने अपने अकाउंट से जनसुराज को कितना डोनेट किया? पूरे 98 करोड़ रुपये! मतलब, 98 करोड़ रुपये लगाए और बदले में मिले... 98% सीटों पर जमानत ज़ब्त! ये तो ऐसा हुआ, जैसे आपने सोने का हार खरीदने के लिए हीरे बेच दिए हों और बदले में पीतल का लॉकेट मिला हो!

2 अक्टूबर 2024 को पटना के वेटरनरी ग्राउंड में प्रशांत किशोर ने अपनी पार्टी जनसुराज को लॉन्च किया था। उसी सभा में मनोज भारती को कार्यवाहक अध्यक्ष भी चुना गया था।

प्रशांत किशोर ने तो राजनीति के लिए एक मजबूत प्रोफेशनल टीम भी बनाई थी! अक्टूबर 2022 से उनकी टीम लगातार बिहार का दौरा कर रही थी। इस टीम में आईटी प्रोफेशनल्स, पूर्व पत्रकार, सोशल वर्कर... मतलब हर तरह के धुरंधर मौजूद थे! 1300 प्रोफेशनल्स की 25 अलग-अलग टीमें पटना से लेकर सभी 38 जिलों में काम कर रही थीं! डिस्ट्रिक्ट इंचार्ज, डिस्ट्रिक्ट प्वाइंट ऑफ कांटेक्ट, विधानसभा लेवल पर डिस्ट्रिक्ट रिसोर्स पर्सन... पूरा जाल बिछा दिया था! इतनी बड़ी, इतनी प्रोफेशनल टीम, इतना सारा तामझाम, इतना पैसा... और नतीजा? वही ढाक के तीन पात!

किंगमेकर और किंग बनने का फर्क

तो दोस्तों, ये थी उस कहानी की हकीकत, जहां एक रणनीतिकार ने सोचा था कि वो राजनीति के सारे समीकरण बदल देगा। जिसने दूसरों को कुर्सी दिलाई, उसने सोचा कि वो खुद भी अपनी कुर्सी बना लेगा। लेकिन राजनीति का मैदान, साहब, कोई शतरंज का खेल नहीं, जहाँ हर चाल सोची-समझी हो। यहाँ तो कभी-कभी किस्मत भी ऐसी चाल चल जाती है कि बड़े-बड़े धुरंधर चित हो जाते हैं।

यह कहानी हमें सिखाती है कि राजनीति में सिर्फ दावे करने से कुछ नहीं होता, और ना ही सिर्फ आंकड़ों के दम पर महल खड़े होते हैं। जनता का मिजाज समझना और उसके भरोसे को जीतना, ये एक ऐसी कला है, जिसे शायद दुनिया का कोई भी "किंगमेकर" किसी किताब या पावरपॉइंट प्रेजेंटेशन से नहीं सीख सकता। प्रशांत किशोर की ये यात्रा हमें याद दिलाती है कि किंगमेकर होना और खुद किंग बनना, इन दोनों के बीच जमीन-आसमान का फर्क होता है।

तो अगली बार जब कोई कहे, "मैं तो किंगमेकर हूँ!", तो याद रखिएगा... कभी-कभी किंगमेकर भी खाली हाथ घर लौट आता है, और जनता हंसते हुए उसे विदा करती है! इस मजेदार सियासी कहानी पर आपकी क्या राय है, हमें कमेंट्स में ज़रूर बताइएगा! अगर आपको यह वीडियो पसंद आया हो, तो इसे लाइक करें, शेयर करें और हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें, ताकि हम ऐसी ही मज़ेदार कहानियाँ आप तक पहुँचाते रहें!

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