Highlights
- अस्थायी कर्मचारियों की 40 साल की सेवा को हाईकोर्ट ने नियमित माना।
- संविदा पर लगे कर्मचारियों को अब पेंशन और सभी सेवानिवृत्ति लाभ मिलेंगे।
- जोधपुर बेंच के जस्टिस रेखा बोराणा ने दिया महत्वपूर्ण फैसला।
- सत्यनारायण शर्मा सहित कुल 11 कर्मचारियों को मिलेगा इस आदेश का लाभ।
जोधपुर: राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) की जोधपुर बेंच (Jodhpur Bench) ने 40 साल की अस्थायी सेवा को नियमित मानते हुए संविदा कर्मचारियों को पेंशन (pension) व अन्य लाभ देने का आदेश दिया है। इस फैसले से सत्यनारायण शर्मा (Satyanarayan Sharma) समेत 11 कर्मचारियों को फायदा होगा।
राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर बेंच ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि दशकों तक दी गई सेवा को केवल अस्थायी कहकर किसी कर्मचारी को नियमितीकरण के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। जस्टिस रेखा बोराणा की सिंगल बेंच ने भीलवाड़ा के सत्यनारायण शर्मा और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह महत्वपूर्ण आदेश जारी किया।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को उनकी शुरुआती नियुक्ति की तारीख से ही नियमित चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी माना जाए। उन्हें पेंशन सहित सभी सेवानिवृत्ति लाभ प्रदान किए जाएं।
40 साल की सेवा, फिर भी नियमित नहीं
याचिकाकर्ताओं ने विभाग में लगभग 40 साल तक अपनी सेवाएं दी थीं। हालांकि, सरकार ने उन्हें नियमित नहीं किया था, जिसके कारण उन्हें नियमित कर्मचारियों के समान लाभ नहीं मिल रहे थे।
सत्यनारायण शर्मा को 5 अगस्त 1981 को पंचायत समिति लूणकरणसर में गेट कीपर के पद पर अस्थायी रूप से नियुक्त किया गया था। बाद में 1992 में उन्हें चुंगी नाका रक्षक बनाया गया।
चुंगी खत्म होने के बाद भी जारी रही सेवा
राज्य में चुंगी (ऑक्ट्रॉय) व्यवस्था खत्म होने के बाद ऐसे कर्मचारी अधिशेष (सरप्लस) हो गए थे। 6 अगस्त 1998 को राज्य सरकार ने एक आदेश जारी किया कि चुंगी से जुड़े कर्मचारियों की छंटनी नहीं की जाएगी।
इसके बाद सत्यनारायण शर्मा ने अपनी नियुक्ति की तारीख 14 अगस्त 1981 से लगातार ग्राम पंचायत लूणकरणसर में काम किया। जिला परिषद बीकानेर ने 23 नवंबर 2007 को अधिशेष कर्मचारियों को अन्य पदों पर समायोजित करने के लिए एक लिस्ट भेजी थी।
ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग ने 27 नवंबर 2016 को आदेश दिया कि ऐसे कर्मचारियों को चतुर्थ श्रेणी का न्यूनतम वेतनमान दिया जाए। हालांकि, याचिकाकर्ता सत्यनारायण शर्मा का नाम इस सूची में शामिल नहीं था।
याचिकाकर्ता और सरकार के तर्क
याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि सत्यनारायण शर्मा ने लगभग 40 साल तक एक नियमित कर्मचारी की तरह सेवा दी है। इसके बावजूद उन्हें नियमित नहीं किया गया, जो उनके अधिकारों का उल्लंघन है।
दूसरी ओर, अतिरिक्त महाधिवक्ता और सरकारी वकीलों ने सुनवाई के दौरान तर्क दिया। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति चौथी श्रेणी के लिए नियमित प्रक्रिया से नहीं हुई थी।
वकीलों ने बताया कि उन्हें अस्थायी आधार पर रखा गया था। चुंगी खत्म होने के बाद मानवीय आधार पर उन्हें सेवा में बनाए रखा गया था।
इसलिए, रिटायरमेंट के बाद वे नियमितीकरण का दावा नहीं कर सकते, यह सरकार का पक्ष था।
हाईकोर्ट का अहम फैसला
जस्टिस रेखा बोराणा ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि यह निर्विवाद है कि याचिकाकर्ता ने विभाग में लगातार 40 साल तक सेवा दी है।
कोर्ट ने कन्हैयालाल नाई और लालाराम सैनी व अन्य पुराने फैसलों का हवाला दिया। इन फैसलों में भी लंबी सेवा को अस्थायी नहीं माना गया था।
कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि इतनी लंबी सेवा को मूल सेवा माना जाना चाहिए। राज्य या उसके अधिकारियों की किसी भी कार्रवाई से किसी व्यक्ति को उस सेवा के मूल अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता, जो उसने उन्हें प्रदान की है।
पेंशन मिलेगी, एरियर नहीं
हाईकोर्ट ने कन्हैयालाल नाई मामले के सिद्धांतों को लागू करते हुए आदेश दिया। याचिकाकर्ताओं को उनकी शुरुआती नियुक्ति से नियमित मानकर पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ दिए जाएंगे।
हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि याचिकाकर्ता को वेतनमान में वेतन निर्धारण (Pay-fixation) के अनुसार किसी भी एरियर (बकाया राशि) का दावा करने का हक नहीं होगा। यह एक महत्वपूर्ण शर्त है।
कुल 11 कर्मचारियों को मिलेगा लाभ
इस महत्वपूर्ण फैसले से मुख्य याचिकाकर्ता सत्यनारायण शर्मा के अलावा दो अन्य जुड़ी हुई याचिकाओं में शामिल कुल 10 कर्मचारियों को भी लाभ मिलेगा। यह फैसला कई परिवारों के लिए राहत लेकर आया है।
इनमें पाली जिले (सोजत रोड क्षेत्र) के 7 कर्मचारी शामिल हैं। इनके नाम परमानंद शर्मा, सोहन सिंह चौहान, कल्याण सिंह, शांतिलाल सेन, महेंद्र कुमार, श्रीमती सुंदर और ढगलाराम प्रजापत हैं।
वहीं, भीलवाड़ा जिले (मांडल और कोटड़ी क्षेत्र) के 3 अन्य कर्मचारी भी इस आदेश के दायरे में आएंगे। इनमें रमेश चंद्र भट्ट, छोटूसिंह राजपूत और ललितशंकर भट्ट शामिल हैं।
यह फैसला उन सभी अस्थायी और संविदा कर्मचारियों के लिए एक मिसाल कायम करेगा, जिन्होंने दशकों तक सरकारी विभागों में अपनी सेवाएं दी हैं। यह उनके भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।
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