शहनाई में खोयी गोलियों की आवाज: आनंद मोहन और पप्पू यादव में दोस्ती का नया आगाज़

आनंद मोहन और पप्पू यादव में दोस्ती का नया आगाज़
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Highlights

  • यह वह दौर था जब तर्क या तथ्यों पर बहस की बजाय राजेश रंजन  और आनंदमोहन के धड़े गोलियां बरसाते और एक दूसरे को ललकारते। मंडल -कमंडल की राजनीति आगे बढ़ी तो आनंद मोहन और पप्पू यादव के नेतृत्व में नौजवानों की भीड़ एक दूसरे के खिलाफ सड़कों पर थी और कोशी का इलाका गोलीबारी से थर्रा रहा था।
  • 15 फरवरी की रात दोनों मिले तो सारी  रंजिशें मानों काफूर सी हो गयी। ऐसी रंजिशें जिनके चलते न जाने नब्बे के दशक में कितनी गोलियां चली और कितनी ही लाशें गिरी। दरअसल ,दोनों ही नेता जवानी के उस दौर में अपने अपने तबके के रॉबिनहुड बने हुए थे।
  • रंजिश काफूर होने का बहाना बनी सालों से जेल में बंद बिहार के बाहुबली आनंदमोहन सिंह की बेटी सुरभि आनंद की शादी । पप्पू यादव शादी में आये और सारी रंजिश भूल आनंद मोहन से बतियाते रहे। 

"राजनीति  में न दोस्ती स्थायी होती हैं , न दुश्मनी।" राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और देश के पूर्व उपराष्ट्रपति स्वर्गीय भैरों सिंह शेखावत का राजनीति को लेकर यह बयान बरसों बाद एक बार फिर  बिहार में सच होता दिखाई पड़ा।

मौका था सालों से जेल में बंद बिहार के बाहुबली आनंदमोहन सिंह की बेटी सुरभि आनंद की शादी का।  

15 फरवरी की रात हुई इस शादी में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार समेत कई बड़े राजनेता शरीक हुए ,लेकिन चर्चा हुई तो एक दुसरे के जानी दुश्मन रहे आनंद मोहन और पप्पू यादव के मिलन  की।

रंजिशें  काफूर हो गयी !

दोनों मिले तो सारी  रंजिशें मानों काफूर सी हो गयी। ऐसी रंजिशें जिनके चलते न जाने नब्बे के दशक में कितनी गोलियां चली और कितनी ही लाशें गिरी। दरअसल, दोनों ही नेता जवानी के उस दौर में अपने अपने तबके के रॉबिनहुड बने हुए थे।

पप्पू यादव यानीं राजेश रंजन अति पिछड़ों के नेता थे और आनंदमोहन अगड़ों के। यह वह दौर था जब लालू यादव की सामाजिक नये के नाम पर जातीय राजनीति उफान पर थी और पिछड़ों के आरक्षण का मसला जीने-मरने का सवाल था।

पक्ष विपक्ष में  तर्क या तथ्यों पर बहस की बजाय दोनों के धड़े गोलियां बरसाते और एक दूसरे को ललकारते। मंडल -कमंडल की राजनीति आगे बढ़ी तो आनंद मोहन और पप्पू यादव के नेतृत्व में नौजवानों की भीड़ एक दूसरे के खिलाफ सड़कों पर थी और कोशी का इलाका गोलीबारी से थर्रा रहा था। 

कई दफा दोनों के बीच मुठभेड़ हुई और न जाने कितने लोगों की इस वर्चस्व की लड़ाई में जान तक चली गयी। 

दोनों ऐसे भिड़े कि गोलियां चली ,कई जान चली गयी !

शहनाई की गूँज के बीच सुरभि आनंद की शादी में जब दोनों ने गलबहियां की तो अपराध के न जाने कितने खाते बही लोगों को याद आ गये। सहरसा के पामा और पूर्णिया के भंगरा कांड में तो दोनों जातीय सेनाओं के जरिये एक दूसरे को मात देने कुछ ऐसे भिड़े कि कई गोलियां चली ,कई जान चली गयी। बहरहाल ,अपने अपने अंदाज़ में दोनों सियासत की सीढ़ियां चढ़े और कभी पास -कभी दूर नजर आते रहे।

सुरभि आनंद और राजहंस सिंह की शादी से पहले पप्पू यादव सुरभि की सगाई के अवसर पर भी पहुंचे ,लेकिन तब लोग सीमित थे और शादी में लोगों की भीड़ सीमा से बाहर चली जा रही थी।  दोनों को गलबहियां करते देख कोई खुश था तो किसी को नब्बे की दशक की वह मुठभेड़ें याद आये जा रही थी।

दोनों सांसद बने ,सियासत की सीढ़ियां चढ़े !

जातीय सेनाओं के जरिये एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा बांधे राजनीति करने वाले राजेश रंजन उर्फ़ पप्पू यादव लग अलग पार्टियों के झंडे के नीचे पांच बार सांसद चुने गए तो पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन भी लोकसभा और राज्यसभा में सांसद चुनी गयी।

निर्दलीय ,समाजवादी पार्टी ,लोक जनता पार्ट और राष्ट्रीय जनता दल से क्रमश:1991, 1996, 1999, 2004 और  2014 में सांसद चुने गए पप्पू यादव ने एक ज़माने में अपनी जन अधिकार पार्टी का भी गठन किया था। 
 बिहार पीपुल्स पार्टी का गठन कर अपनी सियासत  चमकाने वाले आनंद  मोहन सिंह भी 1990 में बिहार विधानसभा में विधायक और 1996 में लोकसभा सांसद चुने गए थे। इन दिनों एक हत्या के मामले में सजा काट रहे आनंद मोहन सिंह की पत्नी लवली आनंद भी दसवीं लोकसभा के लिए चुनी गयी थी।

आनंद  मोहन के जेल चले जाने के बाद पत्नी लवली आनंद और बेटे चेतन आनंद राजनीति में हैं। चेतन आनंद 2020 में बिहार विधान सभा चुनाव में विधायक के बतौर जीत आनंद मोहन सिंह की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।

पप्पू यादव और आनंद मोहन सिंह के बीच बदले रिश्ते यह बताने के लिए काफी है कि बिहार की राजनीति ने अब नयी करवट ले ली है और कल के दुश्मन आज दोस्त बन नए तराने गुनगुना रहे हैं। 

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