Highlights
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ब्लूमबर्ग: “ट्रेड वॉर ने भारत–चीन को करीब ला दिया।”
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न्यूयॉर्क टाइम्स: “भारत तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था की राह पर, लेकिन ट्रम्प की नीति ने झटका दिया।”
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फॉरेन पॉलिसी: “भारत को सतर्क रहना होगा, चीन–रूस की चाल उलटी भी पड़ सकती है।”
नई दिल्ली/बीजिंग। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 7 साल बाद चीन दौरा महज़ एक कूटनीतिक यात्रा नहीं, बल्कि भारत की विदेश नीति और वैश्विक स्थिति का असली इम्तिहान साबित हुआ। बीजिंग से तियानजिन तक चली बैठकों और शिखर सम्मेलनों ने साफ कर दिया कि भारत अब केवल दर्शक नहीं, बल्कि वैश्विक फैसलों में निर्णायक भूमिका निभाने वाला खिलाड़ी है।
रेड कार्पेट वेलकम और मोदी–जिनपिंग मुलाकात
चीन पहुंचने पर प्रधानमंत्री मोदी को रेड कार्पेट वेलकम, गार्ड ऑफ ऑनर और राष्ट्रगान से सम्मानित किया गया। विशेष महत्व का संकेत देते हुए चीन ने उन्हें वही Hongqi L5 कार दी, जिसमें राष्ट्रपति शी जिनपिंग खुद सफर करते हैं।
मोदी और जिनपिंग के बीच करीब 50 मिनट लंबी बातचीत हुई, जिसमें BRICS 2026 के लिए औपचारिक निमंत्रण भी शामिल रहा। जिनपिंग ने बयान दिया – “ड्रैगन और हाथी साथ चलें।”
पुतिन–मोदी की गहरी केमिस्ट्री
1 सितंबर को राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी की गर्मजोशी भरी मुलाकात चर्चा का केंद्र रही। दोनों नेताओं के साथ बैठने के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ अलग-थलग नज़र आए।
एक तस्वीर जिसने दुनिया का ध्यान खींचा – मोदी और पुतिन का एक ही कार में रवाना होना। SCO मंच पर मोदी, पुतिन और जिनपिंग का साथ दिखना अमेरिका के लिए साफ संदेश था। ये तीनों देश मिलकर दुनिया की 32% GDP और 9 गुना अधिक आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
SCO समिट में भारत की गूंज
तियानजिन में हुए SCO समिट में मोदी ने संगठन की नई परिभाषा दी:
S – Security, C – Connectivity, O – Opportunity।
उन्होंने आतंकवाद को मानवता के खिलाफ सबसे बड़ी चुनौती बताया और हाल ही में हुए पहलगाम हमले का जिक्र किया। मोदी ने सवाल उठाया – “क्या कुछ देशों का खुलेआम आतंकवाद को समर्थन देना स्वीकार्य है?”
तियानजिन डिक्लेरेशन में सभी देशों ने पहलगाम हमले की निंदा कर भारत को समर्थन दिया। साथ ही, RATS (Regional Anti-Terrorist Structure) को मजबूत करने पर सहमति बनी।
भारत–चीन रिश्तों में नई शुरुआत
भारत और चीन ने सीधी फ्लाइट्स दोबारा शुरू करने और सीमा विवाद सुलझाने के लिए नए संवाद तंत्र पर सहमति जताई।
जिनपिंग ने रिश्तों को सुधारने के लिए 4 सुझाव दिए:
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कूटनीतिक संवाद बढ़ाना
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आपसी भरोसा मजबूत करना
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सहयोग व आदान-प्रदान बढ़ाना
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वैश्विक मंचों पर साझा हितों की रक्षा करना
गौर करने वाली बात यह रही कि चीन ने SCO से पहले ही फर्टिलाइज़र, टनल बोरिंग मशीन और मैग्नेट्स पर लगाए प्रतिबंध हटा लिए।
अमेरिका की टैरिफ़ चुनौती
इसी बीच अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ़ लगा दिया, जिससे करीब 7 लाख करोड़ रुपये का व्यापार प्रभावित हुआ। पंजाब की इंडस्ट्री को ही 30 हजार करोड़ का नुकसान होने का अनुमान है।
मोदी–जिनपिंग ने घोषणा की – “Partners not Rivals”, और वैश्विक व्यापार स्थिर करने का संकल्प लिया।
विशेषज्ञ शरद कोहली का मानना है कि भारत को चीन पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए, बल्कि आयात घटाकर निर्यात बढ़ाने की दिशा में कदम उठाने होंगे।
अमेरिका की बेचैनी और वैश्विक प्रतिक्रियाएँ
SCO समिट के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सोशल मीडिया पोस्ट भारत को लेकर तंज से भरी रही। पहले चुप्पी और फिर गुस्से से जाहिर हुआ कि SCO का असर वॉशिंगटन तक पहुंचा।
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ब्लूमबर्ग: “ट्रेड वॉर ने भारत–चीन को करीब ला दिया।”
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न्यूयॉर्क टाइम्स: “भारत तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था की राह पर, लेकिन ट्रम्प की नीति ने झटका दिया।”
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फॉरेन पॉलिसी: “भारत को सतर्क रहना होगा, चीन–रूस की चाल उलटी भी पड़ सकती है।”
जर्मन मीडिया ने रिपोर्ट किया कि मोदी ने ट्रम्प का फोन तक नहीं उठाया।
बड़ी तस्वीर: भारत का उभरता चेहरा
भारत ने इस समिट में अपनी विदेश नीति का स्पष्ट खाका पेश किया – Multi-Alignment।
यानी भारत अमेरिका, रूस और चीन – तीनों से संबंध बनाए रखेगा और अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखेगा।
बीजिंग से तियानजिन तक की यह यात्रा दुनिया को यह संदेश दे गई कि भारत अब किसी का मोहरा नहीं, बल्कि वैश्विक मंच पर निर्णायक शक्ति है।