Highlights
- पके अमरूदों को अब 12-20 रुपये प्रति किलो का भाव मिल रहा है।
- आईआईटीयन सुधांशु गुप्ता ने सवाई माधोपुर में प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित की।
- यह यूनिट एक घंटे में 500 किलो अमरूद का पल्प तैयार करती है।
- इस पहल से 100 से अधिक स्थानीय लोगों को रोजगार मिला है।
सवाई माधोपुर: सवाई माधोपुर (Sawai Madhopur) में पके अमरूदों की बर्बादी अब कमाई में बदल गई है। एक आईआईटीयन (IITian) ने प्रोसेसिंग यूनिट (processing unit) लगाकर किसानों को 12-20 रुपये प्रति किलो का भाव दिलाना शुरू किया है, जिससे 1 घंटे में 500 किलो पल्प (pulp) बन रहा है और यह बेंगलुरु (Bengaluru), हैदराबाद (Hyderabad) व जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) तक भेजा जा रहा है।
अब तक किसानों को पके हुए अमरूदों से नुकसान होता था। या तो इनकी खरीद नहीं हो पाती थी या फिर इन्हें खराब हो जाने पर फेंकना पड़ता था।
लेकिन अब इन पके हुए अमरूदों के भी किसानों को 12-20 रुपए किलो का भाव मिल रहा है। यह बदलाव एक युवा आईआईटीयन की दूरदर्शिता का परिणाम है।
यूरोप से मिला आइडिया, बदली किसानों की तकदीर
जयपुर के रहने वाले सुधांशु गुप्ता (41) ने आईआईटी बॉम्बे से बीटेक किया। अपनी आगे की पढ़ाई के लिए वे जर्मनी चले गए, जहां उन्होंने एफएयू न्यूरेमबर्ग यूनिवर्सिटी से एम.एससी. (एडवांस्ड मटेरियल एंड प्रोसेस) किया।
सुधांशु ने बताया कि यूरोप में छोटे-छोटे गांवों में भी विकेंद्रीकृत (डिसेंट्रलाइज्ड) प्रोसेसिंग यूनिट्स हैं। इससे किसानों को खराब होते फलों से भी अच्छी कमाई होती है।
भारत में समस्या ठीक इसके उलट है, जहां फैक्ट्रियां दूर और खेत दूर होते हैं। इस कारण फल समय पर प्रोसेस नहीं हो पाते और खराब हो जाते हैं।
इस गैप को भरने का यह सही समय था, ऐसा सुधांशु ने महसूस किया। इसी सोच के साथ उन्होंने एक कॉम्पैक्ट, ऑन-फॉर्म प्रोसेसिंग यूनिट डिजाइन की।
यह यूनिट खेतों के पास ही कुछ घंटों में फल को पल्प में बदलकर किसानों को बड़े नुकसान से बचाती है।
सवाई माधोपुर में शुरू हुई क्रांति
लगभग 6 साल पहले सुधांशु ने सवाई माधोपुर में अपने मामा के खेत में एक छोटी यूनिट लगाई। इस यूनिट में एक घंटे में 100 किलो अमरूद प्रोसेस होता था।
दिसंबर 2024 में राइजिंग राजस्थान समिट में एक एमओयू (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए। इसके बाद कुस्तला गांव में 500 किलो प्रति घंटा उत्पादन क्षमता वाली अमरूद प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित की गई।
सुधांशु बताते हैं कि वे किसान के खेत से ही ढीले और पके अमरूद 10-12 रुपए प्रति किलो के भाव से खरीद रहे हैं। इससे किसानों की बर्बादी रुक रही है और उनकी सीधी कमाई बढ़ रही है।
इस पहल से महिलाओं समेत 100 से ज्यादा स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिला है। यह यूनिट ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा सहारा बन गई है।
ऑटोमैटिक यूनिट, हाइजीनिक पल्प
यह प्रोसेसिंग यूनिट पूरी तरह से ऑटोमैटिक है। इसमें अमरूदों की धुलाई से लेकर पल्प निकालने तक का सारा काम मशीनों द्वारा किया जाता है।
अमरूद का पल्प ऑटोमैटिक और हाइजीनिक तरीके से पैक किया जाता है। बाद में इसे बाजार में 35 से 40 रुपए प्रति किलो तक बेचा जाता है।
सवाई माधोपुर में करीब 15 हजार हेक्टेयर में अमरूद की खेती होती है। पहले समस्या यह थी कि केवल हरे और टाइट फल ही बाजार में बिक पाते थे।
ज्यादा पके अमरूद किसानों को अक्सर फेंकने पड़ते थे, जिससे उन्हें भारी नुकसान होता था। अब यह यूनिट इन्हीं पके अमरूदों को खरीदकर उन्हें मूल्यवान उत्पाद में बदल रही है।
सवाई माधोपुर के अमरूद की पहचान और उत्पादन
सवाई माधोपुर का अमरूद पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान रखता है। राजस्थान में अमरूद की सर्वाधिक खेती इसी जिले में होती है।
वर्तमान में लगभग 15 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में अमरूद की बागवानी की जा रही है। सवाई माधोपुर राजस्थान का सबसे बड़ा अमरूद उत्पादक जिला है।
यहां हर साल लगभग ढाई लाख मीट्रिक टन अमरूद का उत्पादन होता है। यहां की पैदावार मुख्य रूप से दिल्ली और उत्तर प्रदेश की मंडियों में सप्लाई होती है।
कई वर्षों से जिले में अमरूद प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना की मांग उठ रही थी। अब इस पहली प्रोसेसिंग यूनिट के शुरू होने के साथ यह मांग पूरी हो गई है।
स्थानीय अर्थव्यवस्था को मिला बढ़ावा
इस यूनिट के माध्यम से न केवल किसानों को उनके पके हुए अमरूदों का उचित मूल्य मिल रहा है, बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर भी पैदा हुए हैं।
यह पहल ग्रामीण विकास और कृषि-आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण कदम है। सुधांशु गुप्ता का यह मॉडल अन्य कृषि प्रधान क्षेत्रों के लिए भी प्रेरणा बन सकता है।
यह दिखाता है कि कैसे नवाचार और सही दृष्टिकोण से कृषि क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों का समाधान किया जा सकता है।
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