Highlights
राजसी अंदाज में निकली गणगौर माता की शाही सवारी के साथ हाथी, घोड़े, ऊंट, बैंड-बाजे, रथ, छोटी तोपें, कालबेलियां नृतक, राजस्थानी लोक कलाकारों ने भी प्रस्तुतियां दी। जयपुर में गणगौर माता की सवारी दो दिन निकाली जाती है। ऐसे में आज शनिवार को बूढ़ी गणगौर की सवारी निकाली जाएगी।
जयपुर । सुहागिन महिलाओं और कुंवारी कन्याओं का सबसे प्रिय त्योहार गणगौर बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। राजस्थान में तो गणगौर पर्व का विशेष महत्व है।
प्रदेश के लगभग सभी जिलों में लोक संस्कृति के पर्व पर गणगौर माता की सवारी भी निकाली जाती है। जिसमें वहां के राजसी ठाठ-बाट का अंदाज भी देखने को मिलता है।
राजधानी जयपुर में भी गणगौर के पर्व पर भव्य मेले का आयोजन होता है। ये मेला दो दिन चलता है।
जयपुर में गणगौर के मौके पर जनाना ड्योढ़ी से राजसी ठाठ-बाट के साथ माता की सवारी निकाली गई।
सिटी पैलेस प्रबंधन के अनुसार, गणगौर माता 200 किलो सोने-चांदी व लकड़ी से निर्मित पालकी पर सवार होकर आई।
रियासत काल से चली आ रही इस परंपरा को जयपुर के पूर्व राज परिवार के सदस्य निरंतर निभाते आ रहे हैं।
1727 में जयपुर शहर की स्थापना से ही गणगौर माता की सवारी निकाली जा रही है।
गोविंद देव जी मंदिर के पीछे बने तालकटोरा पर पहुंच कर माता को घेवर का भोग लगाया जाता है।
जयपुर में गणगौर माता की सवारी का ये क्रम 296 साल से ऐसे ही चला आ रहा है।
राजसी अंदाज में निकली गणगौर माता की शाही सवारी के साथ हाथी, घोड़े, ऊंट, बैंड-बाजे, रथ, छोटी तोपें, कालबेलियां नृतक, राजस्थानी लोक कलाकारों ने भी प्रस्तुतियां दी।
सबसे आगे हाथी पूर्व राजपरिवार का पंचरंगी झंडा थामे निकला। राजस्थान की इस रंग रंगीली संस्कृति को देखने के लिए बड़ी संख्या में विदेशी सैलानी भी मौजूद रहे।
माता की सवारी के साथ 100 से भी ज्यादा कलाकारों ने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।
जहां कालबेलिया डांसर अपने डांस से लोगों को लुभा रही थी वहीं, कच्छी घोड़ी नृत्य विदेशी पावणों के लिए काफी अचरज भरा था।
जयपुर में गणगौर माता की सवारी दो दिन निकाली जाती है। ऐसे में आज शनिवार को बूढ़ी गणगौर की सवारी निकाली जाएगी।