एसएमएस ट्रॉमा: जयपुर एसएमएस ट्रॉमा सेंटर में अब सिर्फ दुर्घटनाग्रस्त मरीजों को प्राथमिकता

जयपुर एसएमएस ट्रॉमा सेंटर में अब सिर्फ दुर्घटनाग्रस्त मरीजों को प्राथमिकता
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Highlights

  • एसएमएस ट्रॉमा सेंटर में अब केवल दुर्घटनाग्रस्त मरीजों को प्राथमिकता मिलेगी।
  • उत्तर भारत का सबसे बड़ा ट्रॉमा सेंटर अब अपनी व्यवस्थाओं में बदलाव करेगा।
  • ओपीडी से भर्ती होने वाले मरीजों को अब ट्रॉमा सेंटर में जगह नहीं मिलेगी।
  • बढ़ते एक्सीडेंट केसों के कारण यह निर्णय लिया गया है।

जयपुर |  जयपुर (Jaipur) के एसएमएस ट्रॉमा सेंटर (SMS Trauma Center) में अब सिर्फ दुर्घटना (Trauma) वाले मरीजों को ही प्राथमिकता दी जाएगी। एसएमएस प्रशासन (SMS Administration) यहां संचालित होने वाली दूसरी यूनिट्स (Units) को बंद करने पर विचार कर रहा है।

ट्रॉमा मरीजों को मिलेगी प्राथमिकता

एसएमएस ट्रॉमा सेंटर के बेड पर कई मरीज ओपीडी से आकर भर्ती होते हैं और लंबे समय तक रहते हैं।

इन मरीजों को अब एसएमएस ट्रॉमा सेंटर में भर्ती नहीं किया जाएगा।

यह निर्णय बढ़ते एक्सीडेंट केस और घायलों की संख्या को देखते हुए लिया गया है।

उत्तर भारत का सबसे बड़ा ट्रॉमा सेंटर

जयपुर का एसएमएस ट्रॉमा सेंटर वर्तमान में उत्तर भारत का सबसे बड़ा ट्रॉमा सेंटर है।

यहां एक साथ 240 से ज्यादा बेड और 7 ऑपरेशन थिएटर की व्यवस्था है।

लेकिन इस सेंटर में ट्रॉमा के अलावा दूसरे डिपार्टमेंट की यूनिट भी संचालित हो रही हैं।

कई शहरों से आते हैं रेफर मरीज

वर्तमान में इस ट्रॉमा सेंटर में जयपुर, भरतपुर संभाग के जिलों के अलावा यूपी से आगरा, मथुरा और मध्य प्रदेश से ग्वालियर समेत अन्य शहरों के केस भी रेफर हो रहे हैं।

इसके कारण यहां मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

कई बार इन ट्रॉमा मरीजों को वार्ड में बेड नहीं मिलते, जिससे उन्हें परेशानी होती है।

इसे देखते हुए अब एसएमएस प्रशासन यहां संचालित होने वाली दूसरी यूनिट्स को बंद करने पर विचार कर रहा है।

बेड की मौजूदा स्थिति

ट्रॉमा सेंटर में चल रही तीन यूनिट्स में करीब 140 बेड हैं।

इन पर कई मरीज ओपीडी से आकर भर्ती होते हैं और लंबे समय तक भर्ती रहते हैं।

जबकि पोली ट्रॉमा वार्ड के लिए महज 50 बेड और मास केज्युअल्टी वालों के लिए 18 बेड हैं।

वहीं 16 बेड ऑब्जर्वेशन के लिए रखे गए हैं।

2016 के बाद शुरू हुई थीं अन्य यूनिट्स

एसएमएस के डॉक्टरों के मुताबिक जब यह ट्रॉमा सेंटर बना था, तब यहां सभी बेड केवल ट्रॉमा मरीजों के लिए ही थे।

साल 2016 के बाद यहां धीरे-धीरे दूसरी यूनिट्स के वार्ड संचालित होने शुरू हो गए।

नोडल अधिकारी डॉ. बी.एल. यादव ने बताया कि जल्द ही ट्रॉमा सुविधाओं में जरूरत के हिसाब से सुधार किए जाएंगे।

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