सांसों पर संकट: राजस्थान में AQI 500; टोंक, भिवाड़ी में हवा 'गंभीर', सीओपीडी का खतरा

राजस्थान में AQI 500; टोंक, भिवाड़ी में हवा 'गंभीर', सीओपीडी का खतरा
राजस्थान में AQI 500
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Highlights

  • टोंक में AQI 500, भिवाड़ी में 431, जयपुर में 372 तक पहुंचा।
  • प्रदूषण से श्वसन रोगों का खतरा बढ़ा, बच्चों और बुजुर्ग सबसे अधिक प्रभावित।
  • राजस्थान में सीओपीडी से होने वाली मौतें राष्ट्रीय औसत से अधिक।
  • अगले कुछ दिनों तक हवा की सेहत में सुधार की उम्मीद नहीं।

जयपुर: राजस्थान में हवा की सेहत गंभीर स्तर पर है, टोंक में AQI 500, भिवाड़ी में 431 और जयपुर में 372 तक पहुंच गया है। प्रदूषण से श्वसन रोगों का खतरा बढ़ा है, जिससे बच्चों और बुजुर्ग सबसे अधिक प्रभावित हैं। अगले दिनों राहत की संभावना नहीं है।

राजस्थान में हवा की सेहत लगातार बिगड़ती जा रही है, जिससे प्रदेशवासियों के लिए खुले में सांस लेना मुश्किल होता जा रहा है। हाल ही में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों ने चिंताजनक तस्वीर पेश की है। शनिवार को राज्य के कई शहरों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 'गंभीर' स्तर तक पहुंच गया, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक माना जाता है।

राजस्थान में हवा की बिगड़ती सेहत

सोमवार को टोंक जिले में वायु गुणवत्ता सबसे खराब दर्ज की गई, जहां पीएम 2.5 का स्तर 496 और पीएम 10 का स्तर 500 तक पहुंच गया। यह 'गंभीर' श्रेणी में आता है, जिसका अर्थ है कि हवा में मौजूद प्रदूषक कण इतने अधिक हैं कि वे स्वस्थ व्यक्तियों को भी बीमार कर सकते हैं, और पहले से बीमार लोगों की स्थिति को और बिगाड़ सकते हैं। भिवाड़ी में भी AQI 400 से ऊपर दर्ज हुआ, जो 'बहुत खराब' श्रेणी में आता है। जयपुर, श्रीगंगानगर और टोंक जैसे अन्य प्रमुख शहर भी 'खराब' और 'बहुत खराब' श्रेणी में बने रहे।

मौसम विभाग के अनुसार, अगले कुछ दिनों तक मौसम शुष्क रहेगा और हवाएं इसी तरह चलती रहेंगी। इसका मतलब है कि फिलहाल वायु प्रदूषण से राहत की कोई उम्मीद नहीं है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो राजस्थान में भी दिल्ली-एनसीआर जैसे श्वास और फेफड़ों संबंधी बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ सकता है।

प्रमुख शहरों में वायु गुणवत्ता की स्थिति

राज्य के कई शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। यहां कुछ प्रमुख शहरों का AQI स्तर दिया गया है:

  • टोंक: 500 (गंभीर)
  • भिवाड़ी: 431 (बहुत खराब)
  • श्रीगंगानगर: 416 (बहुत खराब)
  • जयपुर: 372 (बहुत खराब)
  • बीकानेर: 328 (बहुत खराब)
  • भरतपुर: 327 (बहुत खराब)
  • सीकर: 321 (बहुत खराब)
  • झालावाड़: 308 (बहुत खराब)
  • कोटा: 302 (बहुत खराब)
  • डूंगरपुर: 300 (बहुत खराब)
  • हनुमानगढ़: 277 (खराब)

यह आंकड़े दर्शाते हैं कि राजस्थान के अधिकांश प्रमुख शहरी क्षेत्र वायु प्रदूषण की गंभीर चपेट में हैं, जिससे नागरिकों के स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ रहा है।

श्वसन रोगों का बढ़ता खतरा और सीओपीडी से मौतें

बढ़ते वायु प्रदूषण और धूल के कणों के कारण इंसानी फेफड़े बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। लोगों को सांस लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है और श्वसन संबंधी बीमारियों में लगातार वृद्धि देखी जा रही है। हाल ही में इंडियन चेस्ट सोसाइटी (ICS) के तत्वावधान में जयपुर में आयोजित श्वसन रोग सम्मेलन में यह महत्वपूर्ण जानकारी सामने आई कि देश में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतें दूसरे नंबर पर हैं।

डॉ. नितिन जैन ने इस बात पर जोर दिया कि प्रदूषण का सबसे अधिक असर बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ता है। इसका मुख्य कारण उनकी कमजोर रोग-प्रतिरोधक क्षमता है। बच्चों में फेफड़ों का विकास रुक सकता है, जबकि बुजुर्ग समय से पहले विभिन्न बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। वायु प्रदूषण हृदय रोग, स्ट्रोक, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी कई गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ाता है और व्यक्ति की समग्र स्वास्थ्य क्षमता तथा औसत आयु को कम करता है।

सीओपीडी और टीबी: राजस्थान में स्थिति

राजस्थान और पूरे भारत में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) और टीबी जैसी श्वसन बीमारियाँ आम हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर सीओपीडी मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है, जबकि टीबी बारहवां प्रमुख कारण है। चिंताजनक बात यह है कि राजस्थान में सीओपीडी से होने वाली मौतों की दर राष्ट्रीय औसत से भी अधिक है।

विशेषज्ञों का मानना है कि वाहनों से निकलने वाला धुआं, सामान्य वायु प्रदूषण, धूल और युवाओं में धूम्रपान की बढ़ती प्रवृत्ति इन श्वसन रोगों के तेजी से फैलने में प्रमुख योगदानकर्ता हैं। इन कारकों पर नियंत्रण पाना और जन जागरूकता बढ़ाना ही इस गंभीर स्वास्थ्य संकट से निपटने का एकमात्र रास्ता है।

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