रेगिस्तान बना रेनिस्तान: राजस्थान: मौसम बदलेगा, रेगिस्तान में हरियाली का नया दौर

राजस्थान: मौसम बदलेगा, रेगिस्तान में हरियाली का नया दौर
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Highlights

  • 25 अक्टूबर से राजस्थान में नया वेदर सिस्टम सक्रिय होगा।
  • दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में 25 से 28 अक्टूबर के बीच बारिश की संभावना।
  • पिछले 10 सालों में 9 बार औसत से ज्यादा बारिश हुई है।
  • थार रेगिस्तान अब दुनिया के सबसे हरे-भरे रेगिस्तानों में से एक बन रहा है।

जयपुर: राजस्थान (Rajasthan) के मौसम में 25 अक्टूबर से बदलाव की संभावना है, जिससे दक्षिण-पूर्वी हिस्सों में बारिश हो सकती है। न्यूनतम तापमान में गिरावट आएगी। पिछले कुछ सालों में मानसून के बदलते पैटर्न से रेगिस्तान (Desert) अब 'रेनिस्तान' (Rainistan) में बदल रहा है।

आगामी मौसम का पूर्वानुमान

राजस्थान के मौसम में एक बार फिर से बदलाव होने की संभावना है।

मौसम केंद्र के अनुसार 25 अक्टूबर से एक वेदर सिस्टम सक्रिय हो सकता है।

मौसम केन्द्र जयपुर के निदेशक राधेश्याम शर्मा ने दक्षिण-पूर्वी राजस्थान के कोटा, उदयपुर संभाग में बादल छाने और बारिश की संभावना जताई है।

यह स्थिति 25 से 28 अक्टूबर के दौरान बनी रह सकती है, जबकि शेष अधिकांश भागों में मौसम साफ रहने की उम्मीद है।

आगामी दिनों में राज्य के अधिकांश भागों में न्यूनतम तापमान में 1-2 डिग्री की गिरावट हो सकती है।

बीते 24 घंटे का मौसम

पिछले 24 घंटे में राजस्थान के लगभग सभी शहरों में मौसम साफ रहा था।

जयपुर, सीकर और अलवर के आसपास कुछ जगहों पर आंशिक बादल छाए रहे।

आसमान में दोपहर से लेकर देर शाम तक हल्की धुंध भी देखी गई।

उत्तरी राजस्थान के बीकानेर संभाग के जिलों गंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू और बीकानेर में भी यही स्थिति रही।

रात और दिन के तापमान में गिरावट

पश्चिमी विक्षोभ से 21 अक्टूबर को हुई बारिश के बाद बुधवार को मौसम साफ रहा।

आसमान में बादल नहीं छाने से रात के तापमान में 4 डिग्री सेल्सियस तक गिरावट हुई।

सबसे कम न्यूनतम तापमान सिरोही में 15.9 डिग्री और सीकर में 16 डिग्री सेल्सियस दर्ज हुआ।

पिलानी में पारा 4 डिग्री गिरकर न्यूनतम तापमान 16.7 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया।

राजस्थान में बुधवार को कुछ शहरों में दिन में भी हल्की ठंडक रही।

यहां दिन का अधिकतम तापमान 32 डिग्री सेल्सियस तक भी नहीं पहुंचा।

सबसे ज्यादा तापमान प्रतापगढ़, झुंझुनूं और उदयपुर में 31.8-31.8 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड हुआ।

रेगिस्तान से रेनिस्तान तक का सफर

राजस्थान मतलब रेगिस्तान! ये मिथक अब टूट रहा है।

टूटने की वजह पिछले कुछ सालों में बदला मानसून का पैटर्न है।

कभी पश्चिमी राजस्थान के जिलों जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर में सिर्फ रेत के टीले नजर आते थे, लेकिन आज तस्वीर बदल गई है।

जोधपुर के धोरों में गाजर, मूंगफली की खेती की जा रही है।

बाड़मेर में गोवा के समुद्र तट जैसा नजारा रेडाणा रण में देखने को मिलता है।

जैसलमेर में पिछले साल इतना पानी बरसा कि बाढ़ के हालात हो गए थे।

पश्चिमी राजस्थान में हरियाली का बढ़ता दायरा

जोधपुर और फलोदी के इलाके, जहां कभी पीने के पानी को तरसना पड़ता था, आज वहां हरियाली है।

मूंगफली-गाजर की खेती हो रही है, जो बारिश के बदले पैटर्न के कारण संभव हो पाया है।

रेतीले इलाकों में लगातार बढ़ रही हरियाली में बारिश और भूजल दोहन का योगदान है।

रिसर्च के अनुसार मानसून के दौरान खेती में 66 प्रतिशत योगदान बारिश का तो 34% भूजल का रहता है।

पश्चिमी राजस्थान में 2005 से 2024 तक के दो दशकों में केवल तीन साल ही ऐसे रहे, जब सामान्य से कम बारिश हुई है।

वहीं, साल 2019 से 2024 तक लगातार छह साल सामान्य से अधिक बारिश हुई।

भविष्य में और बढ़ेगी हरियाली

मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट द्वारा वर्ष 2013 में की गई रिसर्च के अनुसार, 2020-2049 के बीच पश्चिमी राजस्थान में वर्षा 20-35% तक बढ़ सकती है।

आईआईटी गांधीनगर के एक रिसर्च में भी सामने आया है कि दुनिया के 14 रेगिस्तानों में से केवल चार लगातार हरे-भरे हो रहे हैं, जिनमें थार रेगिस्तान का स्थान सबसे ऊपर है।

घेवड़ा शिवनगर में किसान पाबूराम और चैनाराम जैसे लोग 150-200 फीट ऊंचे रेत के टीलों पर भी खेती कर रहे हैं, जहां मूंगफली जैसी फसलें अच्छी गुणवत्ता में मिलती हैं।

जैसलमेर में बाढ़ के हालात

पिछले साल जैसलमेर में औसत बारिश से तीन गुना से भी ज्यादा यानी 590 एमएम पानी बरसा।

नतीजा- रेगिस्तान में बाढ़ आ गई और भारत-पाक बॉर्डर के 80 गांवों का संपर्क टूट गया।

ग्रिड सब स्टेशन पानी में डूबने से इलाके में बिजली सप्लाई ठप हो गई।

पानी के बीच फंसे लोगों को ट्रैक्टर से सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया और कई कच्चे मकान ढह गए।

लोगों का कहना था, ऐसी बरसात 25 साल बाद देखी।

बाड़मेर का 'मिनी गोवा' रेडाणा रण

बाड़मेर में हर तरफ रेत के धोरों के बीच है रेडाणा रण, जिसे मिनी गोवा भी कहते हैं।

यह हर मानसून में पानी से लबालब हो जाता है और 5 किमी. एरिया में दूर तक पानी ही पानी नजर आता है।

यह रण लोगों के लिए एक लोकप्रिय पिकनिक स्पॉट बन गया है।

पानी के बीच ऊंट और घोड़े की सवारी का लुत्फ उठाने आसपास के जिलों से भी लोग यहां पहुंचते हैं।

रण करीब 5 किलोमीटर लंबा और 3 किलोमीटर चौड़ा है।

चिकनी मिट्टी के चलते पानी लंबे समय तक टिका रहता है।

पिछले 5 साल में यह इलाका पिकनिक स्पॉट के रूप में विकसित हुआ है।

मानसून पैटर्न में बदलाव की मुख्य वजहें

एंट्री-एग्जिट में देरी

करीब 10 साल पहले तक राजस्थान में 15 जून तक मानसून की एंट्री हो जाती थी, जो अब बढ़कर 25 जून हो गई है।

इसी तरह 1 सितंबर से मानसून की विदाई की शुरुआत होती थी, जो अब 17 सितंबर से होती है।

ट्रफ लाइन खिसकना

मानसून के पैटर्न में बदलाव की दूसरी बड़ी वजह ट्रफ का खिसकना है।

कुछ समय ट्रफ लाइन नॉर्थ की तरफ ज्यादा समय तक एक्टिव रहती है, फिर यह सेंट्रल या दक्षिण की तरफ शिफ्ट हो जाती है।

क्लाइमेट चेंज

ग्लोबल वार्मिंग का पेसिफिक ओशन और इंडियन ओशन पर देखने को मिल रहा है, जो भारत में मानसून के सिस्टम को नियंत्रित करते हैं।

पिछले 25 साल का मानसून रिकॉर्ड

साल 2000 से लेकर 2015 तक की रिपोर्ट देखें तो इन 15 सालों में राजस्थान में मानसून ज्यादातर समय औसत से कमजोर रहा।

9 सीजन ऐसे रहे जब औसत से कम बारिश हुई और 2002 तथा 2009 में अकाल जैसी स्थिति बन गई थी।

साल 2015 के बाद मानसून के पैटर्न में धीरे-धीरे बदलाव शुरू हुआ और बारिश में इजाफा होने लगा।

पिछले 10 साल में केवल एकमात्र सीजन (साल 2018) ऐसा रहा जब औसत से कम बारिश हुई है, जबकि शेष सभी 9 सीजन में बारिश औसत से ज्यादा दर्ज हुई।

मानसून को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक

ला-नीना और अल-नीनो

ला-नीना कंडीशन होती है तो अच्छी बारिश होती है, जबकि अल-नीनो कंडीशन बनने पर भारत समेत एशिया में मानसून कमजोर रहने की आशंका होती है।

इंडियन ओशन डाइपोल (IOD)

हिंद महासागर में IOD निगेटिव होता है तो ये अच्छे मानसून का संकेत है, जबकि IOD की पॉजिटिव कंडीशन भारत के मानसून के लिए अनुकूल नहीं होती।

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