अरावली बचाओ आंदोलन का माउंट आबू से आगाज : अरावली संरक्षण आंदोलन का माउंट आबू से आगाज, निर्मल चौधरी ने 1000 किमी पदयात्रा का किया आह्वान

अरावली संरक्षण आंदोलन का माउंट आबू से आगाज, निर्मल चौधरी ने 1000 किमी पदयात्रा का किया आह्वान
अरावली बचाओ आंदोलन का माउंट आबू से आगाज
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Highlights

निर्मल चौधरी ने माउंट आबू के अर्बुदा देवी मंदिर से 1000 किमी पदयात्रा का शुभारंभ किया।

आबूराज संत मंडल के संतों ने अरावली संरक्षण के लिए इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया।

पूर्व विधायक संयम लोढ़ा ने अरावली के विनाश से बढ़ते रेगिस्तान के खतरे पर चिंता जताई।

पर्यावरण मंत्री पर सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने के आरोप लगाते हुए आंदोलन को तेज करने की चेतावनी दी गई।

सिरोही | राजस्थान की प्राकृतिक धरोहर और पारिस्थितिक तंत्र की रीढ़ मानी जाने वाली अरावली पर्वतमाला को बचाने के लिए आज माउंट आबू से एक ऐतिहासिक जनआंदोलन की शुरुआत हुई है। युवा नेता निर्मल चौधरी के नेतृत्व में "अरावली बचाओ आंदोलन" का आगाज किया गया, जिसका मुख्य उद्देश्य अरावली के अंधाधुंध दोहन को रोकना और इसके प्रति जन-जागरूकता फैलाना है। निर्मल चौधरी ने अरावली के सबसे ऊंचे शिखर पर स्थित शक्ति पीठ मां अर्बुदा देवी मंदिर में पूजा-अर्चना कर 1000 किलोमीटर लंबी 'अरावली पर्वतमाला संरक्षण पदयात्रा' का शुभारंभ किया। यह पदयात्रा राजस्थान के विभिन्न जिलों से होकर गुजरेगी, जिसमें हजारों युवाओं और पर्यावरण प्रेमियों के जुड़ने की उम्मीद है।

निर्मल चौधरी ने इस अवसर पर प्रदेश के युवाओं से भावुक अपील करते हुए कहा कि अरावली केवल एक पर्वत श्रृंखला नहीं है, बल्कि यह राजस्थान के पर्यावरण, जल संरक्षण और लाखों जीव-जंतुओं के जीवन का आधार है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि आज हमने अरावली के अस्तित्व को बचाने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए, तो आने वाली पीढ़ियों को एक गंभीर पर्यावरणीय संकट और जल की भारी कमी का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि अरावली का विनाश सीधे तौर पर राजस्थान के मरुस्थलीकरण को बढ़ावा दे रहा है, जिसे रोकने के लिए यह आंदोलन अब रुकने वाला नहीं है।

अरावली का संरक्षण और रेगिस्तान का बढ़ता खतरा

पदयात्रा के शुभारंभ के बाद आयोजित सभा को संबोधित करते हुए पूर्व विधायक संयम लोढ़ा ने अरावली की वर्तमान स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि आज राजस्थान के हर घर तक यह संदेश पहुंच चुका है कि अरावली अब नष्ट होने की कगार पर है। लोढ़ा ने बताया कि अरावली के पहाड़ों के कटने से थार का रेगिस्तान तेजी से आगे बढ़ रहा है, जो पूरे राज्य के कृषि और जनजीवन के लिए एक बड़ा खतरा है। उन्होंने यह भी साझा किया कि आबूराज संत मंडल ने इस गंभीर मुद्दे पर एक विशेष प्रस्ताव पारित किया है और हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों के खिलाफ अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया है।

संतों का मिला आशीर्वाद और पूर्ण समर्थन

अरावली बचाओ आंदोलन को उस समय और अधिक बल मिला जब आबूराज संत मंडल के संतों ने खुद मंदिर परिसर पहुंचकर पदयात्रा को अपना समर्थन दिया। संत निरंजन गिरी जी महाराज ने निर्मल चौधरी और उनके साथियों को आशीर्वाद देते हुए कहा कि अरावली पर्वतमाला हमारी जीवनदायिनी है और इसकी रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का नैतिक और धार्मिक कर्तव्य है। संतों ने स्पष्ट किया कि उनका इस आंदोलन से जुड़ने का उद्देश्य पूरी तरह से गैर-राजनीतिक है। उन्होंने कहा कि हम किसी दल विशेष के लिए नहीं, बल्कि प्रकृति और जंगलों की रक्षा के लिए इस अभियान का हिस्सा बने हैं। संतों ने समाज के सभी वर्गों से इस पुनीत कार्य में सहयोग करने का आह्वान किया।

कानूनी लड़ाई और सरकार पर गंभीर आरोप

आंदोलन के दौरान युवा नेता निर्मल गहलोत ने पर्यावरण मंत्रालय और संबंधित विभागों पर गंभीर आरोप लगाते हुए हलचल मचा दी। उन्होंने दावा किया कि विभाग द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष गलत दस्तावेज और भ्रामक आंकड़े पेश किए गए हैं, जिससे अदालत को गुमराह करने की कोशिश की गई है। गहलोत ने कहा कि प्रकृति के संरक्षण के लिए गठित सीईसी (CEC) कमेटी भी मौजूदा खनन निर्णयों के पक्ष में नहीं है। उन्होंने संकल्प लिया कि मां अर्बुदा के मंदिर से शुरू हुई यह 1000 किलोमीटर की पदयात्रा सरकार को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करेगी।

जनसैलाब और भविष्य की कार्ययोजना

माउंट आबू के मुख्य मार्गों से होते हुए जब यह पदयात्रा आबूरोड की ओर रवाना हुई, तो स्थानीय निवासियों ने पुष्प वर्षा कर यात्रियों का भव्य स्वागत किया। इस दौरान पीसीसी महासचिव हरीश चौधरी, ब्लॉक अध्यक्ष राकेश रबारी, जिलाध्यक्ष लीलाराम गरासिया, हिमपाल सिंह देवल, नारायण सिंह भाटी, निकेश रावल और निखिल जोशी सहित सैकड़ों कार्यकर्ता और आमजन मौजूद रहे। जिलाध्यक्ष लीलाराम गरासिया ने जोर देकर कहा कि अरावली हमारी मां के समान है और युवाओं की यह एकजुटता सरकार को झुकने पर मजबूर कर देगी। यह आंदोलन आने वाले दिनों में राजस्थान की राजनीति और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक नया मोड़ साबित हो सकता है। यात्रा का अगला पड़ाव आबूरोड होगा, जहां से यह अन्य तहसीलों की ओर प्रस्थान करेगी।

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