राजस्थान कांग्रेस अपने ही पूर्व प्रदेशाध्यक्ष द्वारा दिए गए झटकों से उबरने की कवायद में जुटी है। पार्टी के प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ,पार्टी के मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा और मुक्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ मिलकर विधायकों से वन -टू -वन फीडबैक ले रहे हैं।
वन -टू -वन मतलब एक-एक MLA से मुलाक़ात। बहाना है -गहलोत सरकार की जनोन्मुखी योजनाओं पर जनता की नब्ज को समझना।
जब सत्ता और संगठन की मौजूदगी में इस तरह के फीडबैक लिए जाते हैं तो वह सच शायद ही निकलकर सामने आता है ,जो जनता महसूस कर रही हो। ठकुर सुहाती बात सुनना ,हर पार्टी नेतृत्व को अच्छा लगता है।
कोई उनकी सोच से परे जाकर सच कह दे तो न सिंबल की गारंटी बचती है न पार्टी टिकिट की। ऐसे में कोई कितना सच इस तरह के वन -टू -वन में बोल सकता है ,समझ से परे की बात नहीं।
25 सितंबर 2022 राजस्थान कांग्रेस के इतिहास में हमेशा याद किये जाने वाली एक तारीख है। इसी दिन कांग्रेस हाईकमान ने मल्लिकार्जुन खड़गे को पर्यवेक्षक बना ,प्रभारी महासचिव अजय माकन के साथ जयपुर भेजा था।
वजह एक ही थी वन-टू-वन बैठक कर विधायकों की राय जानना। इस बैठक के लिए जगह भी मुख्यमंत्री का सरकारी आवास ही तय की गयी। लेकिन वह वन-टू-वन बैठक होना तो दूर,काबीना मंत्री शांति धारीवाल और महेश जोशी के नेतृत्व में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खेमे ने कांग्रेस के इतिहास में एक ऐसी घटना जोड़ दी ,जो कमजोर हाईकमान और मजबूत क्षत्रप की कहानी कांग्रेस के इतिहास में हमेशा दर्ज रहेगी।
तब सत्ता -सीएम अशोक गहलोत और संगठन -प्रदेश अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा को वन-टू-वन बैठक और उससे आने वाले फीडबैक पर एतबार नहीं था।
वन-टू-वन बैठक का पुराना प्रयोग फ़ैल हुआ तो कांग्रेस को  नए तरीके पर बैठक बुलाने का नुस्खा समझ आ गया। 
यह बैठक उस वक्त की गयी है ,जब पिछली सरकार के बहाने ही सही सीएम पद के प्रबल दावेदार रहे सचिन पायलट ने भ्रष्टाचार का मुद्दा बना ,सीएम गहलोत की मंशा को सार्वजनिक कर दिया है।
इसी मुद्दे पर एक दिन के अनशन के बाद पायलट की रहस्य्मयी चुप्पी कांग्रेस ,खासकर सीएम गहलोत के सलाहकारों को इतना डरा रही है कि वन-टू-वन अब आपस में ही हो रहा है। न इस वन-टू-वन में पारी का कोई पर्यवेक्षक है, न ही कई मुद्दों पर मुखर सचिन पायलट।
ऐसे में सवाल यही उठ रहे हैं कि पायलट समर्थकों के निशाने पर आयी गहलोत -ृरंधावा -डोटासरा की तिकड़ी वन-टू-वन के जरिये उन मुद्दों से पार पा पाएगी कि नहीं ,जो पायलट उठा रहे हैं ? कहीं यह कवायद राजस्थान कांग्रेस में तूफ़ान से पहले की शान्ति तो नहीं ?
क्योंकि ,कांग्रेस किसी न किसी बहाने पायलट की चाहत को नजरअंदाज तो कर सकती है ,लेकिन जनता में उनकी पकड़ को नकार नहीं सकती।
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