Highlights
- सांसद राव राजेंद्र ने इंडिया का नाम बदलकर भारत करने का निजी विधेयक पेश किया।
- उनका तर्क है कि 'भारत' हमारी संस्कृति और सभ्यता के स्वरूप में अधिक उपयुक्त है।
- उन्होंने संविधान के अनुच्छेद एक का हवाला दिया जिसमें 'INDIA that is bharat' का उल्लेख है।
- शहरों के नाम बदलने का उदाहरण देते हुए उन्होंने 'भारत' नाम की पैरवी की।
नई दिल्ली: जयपुर ग्रामीण (Jaipur Rural) से बीजेपी सांसद राव राजेंद्र (Rao Rajendra) ने देश का नाम इंडिया से बदलकर भारत करने का एक निजी विधेयक (Private Member Bill) पेश किया है। उनका तर्क है कि भारत नाम हमारी संस्कृति और सभ्यता के लिए अधिक उपयुक्त है।
सांसद राव राजेंद्र ने अपने निजी विधेयक में कहा कि जिस भूमि पर हम निवास करते हैं और जिसे हम वर्षों से मां भारती कहते हैं, उसका वास्तविक नाम भारत ही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि उपनिवेश काल में अंग्रेजी साम्राज्य ने इसे 'इंडिया' जैसे शब्द से संबोधित किया, जो हमारी मूल पहचान से अलग था। यह प्रस्ताव देश की सदियों पुरानी सांस्कृतिक पहचान को पुनर्स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जो उपनिवेशवादी मानसिकता से मुक्ति का प्रतीक है।
उन्होंने संविधान के अनुच्छेद एक का भी हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट रूप से 'INDIA that is bharat' का उल्लेख है। राव राजेंद्र ने बताया कि हिंदी साहित्य में भी हमने 'भारत' शब्द को स्वीकार किया है और संविधान का अलंकरण भी 'भारत' शब्द से ही होता है। यह दर्शाता है कि 'भारत' शब्द का संवैधानिक और साहित्यिक दोनों स्तरों पर गहरा महत्व है, और यह हमारी राष्ट्रीय चेतना का अभिन्न अंग है।
संस्कृति-सभ्यता के स्वरूप में भारत शब्द उपयुक्त
बीजेपी सांसद ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा कि संविधान के स्वरूप या उसके अनुवाद में यदि कोई दिक्कत आती है तो अंग्रेजी अनुवाद को ही माना जाता है। ऐसे में, जब अंग्रेजी अनुवाद में 'भारत' का शब्द 'इंडिया' होगा, तो भारत जैसे राष्ट्र की संस्कृति और सभ्यता के स्वरूप में 'भारत' जैसे शब्द का होना अधिक उपयुक्त रहेगा। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति और साहित्य हमसे यही अपेक्षा करते हैं कि इस राष्ट्र का अलंकरण 'भारत' के नाम से हो, जो हमारी गौरवशाली विरासत का सच्चा प्रतिबिंब है।
हमने शहरों के नाम बदले तो भारत क्यों नहीं - राव
राव राजेंद्र ने तर्क दिया कि जब भारत की न्याय संहिता भी 'भारतीय न्याय संहिता' हो गई है, तो देश का नाम क्यों नहीं बदला जा सकता। उन्होंने शहरों के नाम बदलने के कई उदाहरण भी दिए, जैसे बम्बई को मुंबई, मद्रास को चेन्नई, कलकत्ता को कोलकाता और गुड़गांव को गुरुग्राम किया गया। उन्होंने कहा कि हम शुद्ध नाम के प्रयोग की ओर बढ़ रहे हैं, जो हमारी स्थानीय पहचान और भाषाई शुद्धता को दर्शाता है।
सांसद ने आगे कहा कि भारत की संस्कृति जिस नाम से सदैव संसार को सभ्यता का बोध कराती है, वह 'भारत' ही है। उनका उद्देश्य है कि देश को इसी नाम से संबोधित किया जाए, जो हमारी गौरवशाली परंपरा और पहचान का प्रतीक है। यह कदम राष्ट्रीय स्वाभिमान को बढ़ाने और औपनिवेशिक अतीत से पूरी तरह मुक्त होने की दिशा में महत्वपूर्ण है।
जर्मनी का जिक्र कर दिया ये उदाहरण
राव राजेंद्र ने ऐतिहासिक उदाहरण देते हुए बताया कि जर्मनी जैसे राष्ट्र ने भी 1800 ईस्वी में ही यह स्वीकार कर लिया था कि 'भारत उदय होने की कगार में है', जबकि उस समय ऐसी परिस्थितियां नजर नहीं आ रही थीं। उन्होंने कहा कि एक बार नहीं, अनेक बार, हमारे और अंतरराष्ट्रीय साहित्यकारों ने हमारे राष्ट्र को 'भारत' के नाम से संबोधित किया है, जो इसकी सार्वभौमिक पहचान को पुष्ट करता है।
एक स्वतंत्र भारत में, हम यह मानते हैं कि संविधान की मान्यता प्राप्त होने के बाद 'भारत' जैसे नाम का विमोचन होना चाहिए और हमारा देश केवल एक ही नाम 'भारत' से कहलाना चाहिए। यह हमारी राष्ट्रीय अस्मिता और स्वाभिमान का प्रश्न है, जिसे संबोधित करना अत्यंत आवश्यक है।
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