Highlights
- शेख हसीना को 2024 के छात्र आंदोलन के दौरान हुई हत्याओं के लिए दोषी ठहराया गया।
- भारत ने हसीना के प्रत्यर्पण पर अभी तक कोई ठोस प्रतिबद्धता नहीं जताई है।
- प्रत्यर्पण संधि में "राजनीतिक प्रकृति" के अपराधों के लिए प्रत्यर्पण से इनकार का प्रावधान है।
- संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने मौत की सजा पर खेद व्यक्त किया।
नई दिल्ली: बांग्लादेश (Bangladesh) की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना (Sheikh Hasina) को 17 नवंबर 2025 को मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (International Crimes Tribunal - ICT) ने मौत की सजा सुनाई है। यह फैसला 2024 के छात्र विरोध प्रदर्शनों पर हुई हिंसक कार्रवाई से संबंधित है। भारत (India) में निर्वासन में रह रहीं हसीना के प्रत्यर्पण का बांग्लादेश ने आग्रह किया है, लेकिन भारत ने अभी तक कोई ठोस प्रतिबद्धता नहीं जताई है, खासकर प्रत्यर्पण संधि में "राजनीतिक प्रकृति" के अपराधों वाले खंड के कारण।
बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) ने सोमवार, 17 नवंबर 2025 को एक महत्वपूर्ण फैसले में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मानवता के खिलाफ अपराधों का दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई है। यह ऐतिहासिक निर्णय पिछले साल 2024 में हुए छात्र-नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों पर उनकी सरकार द्वारा की गई हिंसक कार्रवाई से जुड़ा है, जिसमें कई निर्दोष लोगों की जान गई थी। हसीना को उनकी अनुपस्थिति में यह सजा सुनाई गई, क्योंकि वह अगस्त 2024 में सत्ता से बेदखल होने के बाद से भारत में निर्वासन में रह रही हैं।
शेख हसीना पर लगे आरोप और न्यायाधिकरण का फैसला
न्यायाधिकरण ने शेख हसीना को 2024 के छात्र आंदोलन के दौरान हुई हत्याओं और अन्य अमानवीय कृत्यों के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया है। यह फैसला उन गंभीर आरोपों पर आधारित है जिनमें उनकी सरकार पर प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अत्यधिक बल प्रयोग करने और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था। इस मामले में, हसीना के साथ, उनके पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल को भी मौत की सजा सुनाई गई है, जो इस बात का संकेत है कि सरकार में उच्च पदों पर बैठे लोगों को उनके कृत्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जा रहा है।
इसी मामले में, तत्कालीन पुलिस प्रमुख चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून को सरकारी गवाह बनने के बाद पांच साल की कैद हुई है। यह दर्शाता है कि न्यायाधिकरण ने मामले की गहराई से जांच की और विभिन्न स्तरों पर शामिल व्यक्तियों की भूमिकाओं का मूल्यांकन किया। शेख हसीना ने इस फैसले को तुरंत खारिज कर दिया है। उन्होंने इसे "धांधली से भरा न्यायाधिकरण" और "राजनीति से प्रेरित" बताया है, आरोप लगाया है कि अंतरिम सरकार के चरमपंथी तत्व उन्हें और उनकी अवामी लीग पार्टी को राजनीतिक परिदृश्य से खत्म करना चाहते हैं।
भारत का प्रत्यर्पण पर रुख और कूटनीतिक चुनौतियाँ
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत से शेख हसीना के प्रत्यर्पण का औपचारिक रूप से आग्रह किया है। इस आग्रह के पीछे भारत और बांग्लादेश के बीच 2013 में हुई प्रत्यर्पण संधि का हवाला दिया गया है, जो दोनों देशों को अपराधियों के आदान-प्रदान की अनुमति देती है। हालांकि, भारत ने इस संवेदनशील मामले पर अभी तक कोई ठोस प्रतिबद्धता नहीं जताई है। नई दिल्ली इस अनुरोध पर जल्दबाजी में कोई कार्रवाई करने की संभावना नहीं रखता है, क्योंकि इसमें कई कूटनीतिक और कानूनी पेचीदगियां शामिल हैं।
भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि में एक महत्वपूर्ण खंड है जिसके अनुसार यदि अपराध "राजनीतिक प्रकृति" का हो, तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है। हालांकि, हत्या, आतंकवाद और अपहरण जैसे गंभीर अपराधों को आमतौर पर राजनीतिक अपराध नहीं माना जाता है। इसके बावजूद, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि भारत, बांग्लादेश की वर्तमान सरकार के भारत विरोधी रुख और शेख हसीना के भारत के सुरक्षा हितों में पूर्व योगदान को देखते हुए उन्हें प्रत्यर्पित करने से इनकार कर सकता है। शेख हसीना वर्तमान में भारत में सुरक्षा के तहत रह रही हैं, जो इस मुद्दे को और भी जटिल बना देता है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया और बांग्लादेश में राजनीतिक निहितार्थ
शेख हसीना ने जुलाई-अगस्त 2024 में व्यापक छात्र विरोध प्रदर्शनों के बाद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था और देश छोड़कर भारत आ गई थीं। उनके इस्तीफे के बाद से बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बना हुआ है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) ने शेख हसीना को मौत की सजा दिए जाने पर गहरा खेद व्यक्त किया है। OHCHR ने निष्पक्ष सुनवाई के अंतर्राष्ट्रीय मानकों और मानवाधिकारों के सम्मान पर जोर दिया है, जो इस तरह के गंभीर न्यायिक फैसलों में महत्वपूर्ण हैं।
यह फैसला बांग्लादेश में आगामी संसदीय चुनावों से कुछ महीने पहले आया है। इस फैसले के परिणामस्वरूप, हसीना की अवामी लीग पार्टी को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया है, जिससे बांग्लादेश के राजनीतिक भविष्य पर गहरा असर पड़ सकता है। इस फैसले से देश में नई अशांति फैलने की आशंका है, क्योंकि हसीना के समर्थक और विपक्षी दल इस निर्णय पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दे सकते हैं। यह बांग्लादेश के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय है, जहां न्याय, राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का जटिल मिश्रण सामने आ रहा है।
राजनीति