आस्था और अरबों का चढ़ावा: श्री सांवलियाजी मंदिर: 30 साल में 65 लाख से 225 करोड़ का चढ़ावा

श्री सांवलियाजी मंदिर: 30 साल में 65 लाख से 225 करोड़ का चढ़ावा
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Highlights

  • 30 साल में चढ़ावे में 340 गुना से अधिक की वृद्धि।
  • भक्त भगवान को व्यापार में साझेदार मानते हैं।
  • कोरोना काल के बाद लोकप्रियता तेजी से बढ़ी।
  • दान पात्र गिनने में लगते हैं कई दिन।

चित्तौड़गढ़ |  चित्तौड़गढ़ (Chittorgarh) के श्री सांवलियाजी मंदिर (Shri Sanwaliyaji Temple) का वार्षिक चढ़ावा 30 साल में 65 लाख से बढ़कर 225 करोड़ रुपए पार कर गया है, जो भक्तों की अटूट आस्था को दर्शाता है।

आस्था का बढ़ता केंद्र

श्री सांवलियाजी मंदिर अब देशभर में आस्था का प्रमुख केंद्र बन गया है।

यहां आने वाले भक्त भगवान को अपना साझेदार मानकर अपनी आय का हिस्सा चढ़ाते हैं।

इस श्रद्धा का असर मंदिर के चढ़ावे में साफ दिखाई देता है।

इस साल वार्षिक चढ़ावा 225 करोड़ रुपए पार कर गया है, जो 30 साल पहले केवल 65 लाख रुपए था।

इस प्रकार चढ़ावे में 340 गुना से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है।

दानपात्र और भक्तों की साझेदारी

साल 1991 में पहली बार दानपात्र खोला गया था, तब आय 65.45 लाख रुपए थी।

अब भक्त अपनी कमाई का एक हिस्सा 'सांवरा सेठ' के नाम पर चढ़ाते हैं।

कई लोग अपने व्यापार में भगवान को "पार्टनर" बनाकर नियमित रूप से हिस्सा देते हैं।

कुछ भक्त तो इस साझेदारी को स्टांप पेपर पर लिखकर भी मंदिर को सौंपते हैं।

हर महीने अमावस्या से पहले चतुर्दशी को दानपात्र खोले जाते हैं, जिन्हें गिनने में कई दिन लग जाते हैं।

नकद के अलावा मनी ऑर्डर, चेक, ऑनलाइन और विदेशी मुद्रा में भी दान आता है।

सोने-चांदी के गहने, सिक्के और ऐंटीक आइटम्स भी चढ़ावे में शामिल होते हैं।

लोकप्रियता और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

कोरोना काल के बाद से मंदिर की लोकप्रियता और भी तेजी से बढ़ी है।

माना जाता है कि लगभग 250 से 300 साल पहले ग्वाला भोलीराम गुर्जर को सपने में भगवान सांवलिया सेठ ने दर्शन दिए थे।

खुदाई करने पर तीन एक जैसी मूर्तियां मिलीं, जिन्हें 'सांवलिया सेठ' नाम दिया गया।

इनमें से एक मूर्ति मंडफिया में स्थापित की गई, जो आज भव्य मंदिर का रूप ले चुकी है।

मंदिर की आय का उपयोग सामाजिक और धार्मिक कार्यों में भी किया जाता है।

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