फिर गर्माया भारत-चीन सीमा विवाद: एक जांबाज सिपाही जिसने चीन को उसकी औकात बता दी

एक जांबाज सिपाही जिसने चीन को उसकी औकात बता दी
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भारत चीन सीमा विवाद को लेकर एक बार फिर से माहौल गर्म है और इस गर्म माहौल के बीच बहस में फिर से भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को भी लाया जा रहा है। तवांग में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हुई झड़प पर एक तरफ विपक्ष लगातार सरकार पर हमलावर है तो दूसरी तरफ भाजपा नेता चीन से चल रहे विवाद को नेहरू की देन बता रहे है। अमित शाह के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी इस बहस में जोरदार एंट्री कर ली है। बीच बहस में अनेक ऐसे गढ़े मुर्दे भी उखाड़े जा रहे हैं जो देश की पिछली सरकारों को कठघरे में खड़ा कर रही है।

लेकिन राजनीति से इतर आज हम बात करेंगे एक ऐसे जाबांज फौजी की जिसकी वजह से भारत चीन सीमा पर स्थित नाथुला का दर्जा महफूज है। नेहरू मेनन से अलग यह जांबाज सिपाही अगर उस समय अपनी बेहतरीन सैन्य समझ और कूटनीतिक चतुराई का परिचय नही देता तो शायद नाथुला दर्जे को आज भारत भूल चुका होता।

एक जांबाज जिससे सहम गया था चीन

इस जांबाज सिपाही का नाम सगत सिंह राठौड़ था। जो की मूलत राजस्थान की बीकानेर रियासत से जुड़े थे। देश आजाद होने के बाद सगत सिंह भारतीय सेना में शामिल हो गए और उन्होंने सबसे पहले ऑपरेशन विजय में अपनी अद्वितीय बहादुरी का परिचय देकर गोवा को पुर्तगाली चंगुल से मुक्त करवा लिया। गोवा अभियान के बाद सगत सिंह को अगला मोर्चा भारत चीन सीमा पर मिला। और वहां उन्होंने ऐसा कुछ कर दिखाया जैसा आज तक कोई नही कर पाया।

नाथुला की लड़ाई भारत के सैन्य इतिहास में एक ऐसा मोर्चा था जिसने 1962 के दाग धो दिए। इस लड़ाई ने न केवल भारतीय सेना की टूटी हिम्मत को लौटा दिया बल्कि उसके बाद अब तक चीन को भी एक सबक मिल चुका है। 

नाथुला की इस लड़ाई के आसपास की घटनाओं की पड़ताल करेंगे तो मालूम चलता है कि यह लड़ाई न केवल ब्रिगेडियर सगत सिंह के इर्द गिर्द रही बल्कि इस लड़ाई के असली नायक ही सगत सिंह थे।जुलाई 1965 में सगत सिंह को पदोन्नति मिली और बतौर मेजर जनरल जीओसी 17 माउंटेन डिविजन की कमान संभाली। जिस डिविजन की कमान सगत सिंह संभाल रहे थे वह उस वक्त सिक्किम में तैनात थी और सगत सिंह के कमान संभालते ही वहां एक समस्या खड़ी हो गई।

चीन लगातार नाथुला और जेलेप ला दर्जे से भारत को अपनी चौकियां हटाने के लिए धमकी दे रहा था। जब स्थिति बिगड़ने की संभावना बनी डिविजन कमांडरर्स को यह अधिकार भी था कि वे चौकियों को खाली करके मुख्य रक्षा स्थानों पर चले जाए। जेलेप ला पर कमांड दे रहे मेजर ने चीन की धमकियों के कारण चौकी खाली कर दी लेकिन नाथुला चौकी को संभाल रहे ब्रिगेडियर सगत सिंह राठौड़ किसी भी तरह के आदेशों में बंधने वाले नही थे और सभी आदेशों की परवाह किए बगैर उन्होंने नाथुला खाली करके से मना कर दिया।

1967 में भारत चीन युद्द का महायोद्दा, नाथू ला पर हुई भारत-चीन जंग की कहानी

जब सगत नाथुला से पीछे नहीं हटे तो चीन ने वहां बड़े - बड़े लाउडस्पीकर लगवा दिए और नाथुला खाली करने की धमकी भरे संदेश देने लगे। सगत चीन के इस मनोवैज्ञानिक युद्ध को भली भांति जानते थे और मोर्चे पर डटे रहे। आगे सगत सिंह ने एक कूटनीति से काम।किया और चीन के इरादे परखने के लिए कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जे एस अरोड़ा के साथ स्पष्ट रूप से सीमा को अंकित करने का निर्णय लिया। जब लेफ्टिनेंट अरोड़ा ने सगत सिंह का सुझाव मान लिया तो अरोड़ा और सगत सिंह ने साथ-साथ सीमा पर चलना शुरू किया।

उनके साथ एक फोटोग्राफर भी चल रहा था जिसने वहां की फोटोज उतारी। सीमा को अंकित कर देने के बाद सगत सिंह ने वहां कांटेदार बाढ़ लगाने का निर्णय लिया।लेकिन जब बाढ़ का कार्य प्रारंभ हुआ तो चीनी सैनिक अचानक भड़क गए और भारतीय जवानों को काम रोकने को कहा। स्थिति देख सगत सिंह ने अगले दिन सुबह जल्दी बाढ़ का काम शुरू करके की योजना बना ली और 18 राजपूतों की एक अतिरिक्त टुकड़ी को बुलाकर काम शुरू कर दिया। जब चीनी सैनिकों को इसका पता चला तो वहां भारतीय कर्नल राय सिंह की चीनियों से तीखी बहस हो गई। जब बहस ज्यादा बढ़ने लगी तो गुस्साए चीनियों ने फायरिंग कर दी जिसमे कर्नल राय सिंह हताहत हो गए।

अपने अधिकारी को गिरता देख भारतीय जवानों का धैर्य जवाब दे गया और भारतीय जवानों ने चीनी चौकियों पर हमला कर दिया। वहां तैनात कैप्टन पीएस डागर और मेजर हरभजन सिंह दोनो तरफ से हुई इस मुठभेड़ में अपनी जान गंवा बैठे। इस छोटी सी मुठभेड़ ने एक युद्ध का रूप ले लिया। हालातों को समझते हुए सगत सिंह ने दर्रे की ऊंचाई पर ग्रेनेड और मशीन गन तैनात करवा दी और चीनियों पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर अपनी मजबूत मोर्चेबंदी का एहसाह करवा दिया। 

इस कार्यवाही में भारत को कुल 65 जवानों का नुकसान हुआ लेकिन चीन को इससे कही ज्यादा जवान गंवाने पड़े। बाद जब जेएस अरोड़ा ने नाथुला का दौरा किया तो सगत सिंह से कहा की अब इस तरह की फायरिंग नही होनी चाहिए। 65 जवानों का नुकसान होने के बाद भी इस लड़ाई ने चीन को यह एहसाह करवा दिया कि भारत की तरफ से भी मजबूत जवाब दिया जा सकता है। अगर नाथुला चौकी की कमान संभाल रहे ब्रिगेडियर सगत सिंह आदेशों को मानकर चौकी खाली कर देते तो आज शायद नाथुला भारत के पास नही होता।

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