Highlights
- वायु प्रदूषण कोविड-19 के बाद भारत का सबसे बड़ा स्वास्थ्य संकट बनकर उभरा है।
- डॉक्टरों के अनुसार प्रदूषण के सूक्ष्म कणों से हृदय रोगों और हार्ट अटैक का खतरा बढ़ा।
- 2022 में भारत में प्रदूषण के कारण 17 लाख से अधिक मौतें दर्ज की गई हैं।
- दिल्ली के अस्पतालों में सांस के मरीजों की संख्या में 30 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई।
नई दिल्ली | भारत में वायु प्रदूषण अब केवल एक पर्यावरणीय समस्या नहीं रह गया है, बल्कि यह कोविड-19 महामारी के बाद देश के सामने सबसे बड़े स्वास्थ्य संकट के रूप में उभरकर सामने आया है। ब्रिटेन में कार्यरत भारतीय मूल के कई वरिष्ठ डॉक्टरों और चिकित्सा विशेषज्ञों ने न्यूज एजेंसी पीटीआई के साथ बातचीत में दावा किया है कि आने वाले वर्षों में प्रदूषण का असर न केवल लोगों की सेहत पर, बल्कि देश की पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था पर लंबे समय तक बना रहेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस दिशा में तुरंत और ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह समस्या हर साल और अधिक भयावह होती जाएगी। डॉक्टरों ने आगाह किया है कि जहरीली हवा अब धीरे-धीरे लोगों के जीवन को कम कर रही है।
हृदय रोगों और प्रदूषण के बीच गहरा संबंध
पिछले एक दशक में भारत में हृदय रोगों के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई है। अक्सर इन बीमारियों को खराब जीवनशैली, खान-पान, तनाव और मोटापे से जोड़कर देखा जाता रहा है। हालांकि, डॉक्टरों का नया शोध और अनुभव यह बताते हैं कि कारों, विमानों और औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले जहरीले तत्वों की इसमें बहुत बड़ी भूमिका है। लंदन के सेंट जॉर्ज यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में कार्डियोलॉजिस्ट राजय नारायण के अनुसार, वायु प्रदूषण और हृदय, श्वसन, न्यूरोलॉजिकल और अन्य गंभीर बीमारियों के बीच के संबंध को साबित करने के लिए अब पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि कार्रवाई में देरी से न केवल स्वास्थ्य संकट बढ़ेगा, बल्कि देश पर आर्थिक बोझ भी असहनीय हो जाएगा।
पार्टिकुलेट मैटर: एक अदृश्य हत्यारा
बर्मिंघम के मिडलैंड मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के कंसल्टेंट कार्डियोलॉजिस्ट प्रोफेसर डेरेक कॉनॉली ने बताया कि प्रदूषित शहरों में मौसम साफ होने पर भी लोगों में प्रदूषण के छोटे कणों (पार्टिकुलेट मैटर) के कारण दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा बना रहता है। उनके मुताबिक, हृदय रोग एक धीमी प्रक्रिया है, जिसमें अचानक हालात बिगड़ जाते हैं। पार्टिकुलेट मैटर (PM) इतने छोटे होते हैं कि वे आंखों से नहीं दिखते, लेकिन वे सीधे फेफड़ों से होते हुए रक्त प्रवाह में मिल जाते हैं। इसे ब्लड प्रेशर या कोलेस्ट्रॉल की तरह आसानी से मापा नहीं जा सकता, इसलिए आम लोग इसके वास्तविक खतरे को नहीं समझ पाते और समय पर इलाज नहीं लेते।
देरी से उठाए गए कदम और उनका प्रभाव
भारत सरकार की कोविड-19 एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्य और अनुभवी पल्मोनोलॉजिस्ट मनीष गौतम ने कहा कि वायु प्रदूषण पर सरकार का नया फोकस जरूरी है, लेकिन इसमें काफी देरी हो चुकी है। उत्तर भारत में रहने वाले लाखों लोगों में इसका नुकसान पहले ही हो चुका है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत में प्रदूषण नियंत्रण और रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण कदम पहले से कागजों पर मौजूद हैं, लेकिन वे अब इस समस्या को रोकने के लिए अपने आप में पर्याप्त नहीं हैं। जो इलाज वर्तमान में हो रहा है, वह समस्या का केवल एक छोटा सा हिस्सा है, जबकि जड़ें बहुत गहरी हो चुकी हैं।
शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज करना भारी
डॉक्टरों ने आगाह किया है कि लोग अक्सर सिरदर्द, थकान, हल्की खांसी, गले में जलन, पाचन संबंधी दिक्कत, आंखों में सूखापन, और त्वचा पर रैश जैसे शुरुआती लक्षणों को मामूली समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। डॉ. नारायण के मुताबिक, ये लक्षण वास्तव में गंभीर बीमारियों के संकेत हो सकते हैं। यदि इन पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तो ये आगे चलकर क्रोनिक बीमारियों का रूप ले लेते हैं। विशेष रूप से युवाओं में पहली बार इलाज कराने वालों की संख्या बढ़ रही है, जो एक चिंताजनक संकेत है।
आंकड़ों की भयावह तस्वीर
'लैंसेट काउंटडाउन ऑन हेल्थ एंड क्लाइमेट चेंज 2025' की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में भारत में PM2.5 प्रदूषण से 17 लाख से ज्यादा मौतें हुईं। इनमें से 2.69 लाख मौतें सड़क परिवहन में पेट्रोल और डीजल के इस्तेमाल से जुड़ी थीं। मई में इंटरनेशनल काउंसिल ऑन क्लीन ट्रांसपोर्टेशन की एक वैश्विक स्टडी में कहा गया कि गाड़ियों से निकलने वाली जहरीली गैसों को कंट्रोल करने वाली नीतियां 2040 तक दुनियाभर में 19 लाख जानें बचा सकती हैं। केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने भी स्वीकार किया है कि राजधानी दिल्ली में करीब 40% प्रदूषण परिवहन क्षेत्र से आता है, जो जीवाश्म ईंधन पर अत्यधिक निर्भरता का नतीजा है। अब समय आ गया है कि बायोफ्यूल और स्वच्छ ऊर्जा के विकल्पों को युद्ध स्तर पर अपनाया जाए।
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