Highlights
- अमराराम ने केंद्र सरकार पर ग्रामीण मजदूरों का हक छीनने का आरोप लगाया।
- सांसद ने कहा कि सरकार महात्मा गांधी नहीं, गोडसे की तपस्या कर रही है।
- मनरेगा के बजट में कटौती और 60:40 अनुपात पर सवाल उठाए गए।
- केवल 5% मनरेगा मजदूरों को ही 100 दिन का काम मिला।
JAIPUR | लोकसभा (Lok Sabha) में मनरेगा (MNREGA) बिल पर बहस के दौरान, सीकर सांसद अमराराम (Sikar MP Amraram) ने केंद्र सरकार पर ग्रामीण मजदूरों का हक छीनने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि सरकार महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) नहीं, गोडसे (Godse) की तपस्या कर रही है।
केंद्र पर मनरेगा के मूल प्रावधानों से भटकने का आरोप
सीकर सांसद अमराराम ने संसद में नरेगा संशोधन विधेयक-2025 पर बहस के दौरान केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने ग्रामीण मजदूरों का हक छीनने की बात कही।
सीपीआई(एम) पार्टी के सांसद अमराराम ने मांग की कि मनरेगा को बदलने के लिए सरकार जो 'जी-राम-जी का बिल' लेकर आई है, उसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।
सांसद ने केंद्र सरकार को घेरते हुए कहा कि खेती में बुवाई से कटाई तक मशीनीकरण प्रभावी हो गया है। ऐसे में मजदूरों के लिए एक बड़ा संकट खड़ा हो गया है।
उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने ऐसे समय में गरीबों का रोजगार तक छीन लिया है।
गांधी नहीं, गोडसे की तपस्या कर रही सरकार
अमराराम ने केंद्र सरकार की नीतियों पर तीखा हमला बोलते हुए एक विवादास्पद बयान दिया। उन्होंने कहा कि यह सरकार महात्मा गांधी नहीं, गोडसे की तपस्या कर रही है।
यह टिप्पणी सरकार द्वारा ग्रामीण मजदूरों के अधिकारों को कथित तौर पर छीनने और मनरेगा के प्रावधानों में बदलाव के संदर्भ में की गई।
भाजपा की कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर
सांसद अमराराम ने भाजपा पर कथनी और करनी में जमीन-आसमान का अंतर होने का आरोप लगाया। उन्होंने यूपीए-1 के समय को याद किया।
उन्होंने बताया कि जब मजदूरी कम हुई थी, तब ग्रामीण मजदूर को न्यूनतम 100 दिन के रोजगार की गारंटी का कानून (नरेगा) बना था।
अमराराम ने कहा कि भाजपा नरेगा के मूल प्रावधानों से दूर भागने का काम कर रही है। पहले मनरेगा के मजदूर की पूरी मजदूरी केंद्र सरकार देती थी।
लेकिन अब मजदूरी देने में केंद्र और राज्य का हिस्सा 60:40 के अनुपात में करने की तैयारी की जा रही है। यह ग्रामीण मजदूरों के लिए एक बड़ा झटका है।
कम मजदूरों को मिला 100 दिन का काम
सांसद अमराराम ने लोकसभा में चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए। उन्होंने बताया कि 2024-25 के बजट में कुल नरेगा मजदूरों में से सिर्फ 5% को ही 100 दिन काम दिया गया।
उन्होंने केरल सरकार का उदाहरण दिया, जिसने मजदूरों के लिए कल्याण बोर्ड बनाया है। अमराराम ने सवाल उठाया कि भाजपा और उसकी समर्थित सरकारें विभिन्न राज्यों में कल्याण बोर्ड बनाने का काम क्यों नहीं करती हैं?
उन्होंने आरोप लगाया कि 125 दिन काम देने का ढकोसला किया जा रहा है, जबकि वास्तव में काम भी नहीं दिया जा रहा है।
गरीबों के साथ विश्वासघात और बजट कटौती
अमराराम ने कहा कि भाजपा ने गरीबों के साथ विश्वासघात करने का काम किया है। उन्होंने मनरेगा के बजट में कटौती पर भी सवाल उठाए।
पहले नरेगा के लिए 1 लाख 20 हजार करोड़ के बजट का प्रावधान था। लेकिन महंगाई बढ़ने के बावजूद मनरेगा के लिए बजट घटाकर 68 हजार करोड़ कर दिया गया है।
सांसद ने जोर दिया कि नरेगा को समृद्ध करने और मजदूरी बढ़ाने की जरूरत थी। इसके उलट, जो कुछ मजदूरों को मिल रहा था, उसे भी छीनने का काम हो रहा है।
केंद्र सरकार से विधेयक वापस लेने की मांग
लोकसभा में सांसद अमराराम ने पुरजोर मांग की कि केंद्र सरकार को नरेगा संशोधन विधेयक-2025 वापस लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह ग्रामीण गरीब मजदूरों का हक छीनने का काम कर रहा है।
वैकल्पिक रूप से, उन्होंने सुझाव दिया कि विधेयक को सलेक्टिव कमेटी को भेजा जाना चाहिए ताकि इस पर गहन विचार-विमर्श हो सके।
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