Highlights
- अंता उपचुनाव में कांग्रेस ने भाजपा से सीट वापस छीनी, प्रमोद जैन भाया विजयी।
- जनता ने एक बार फिर बदलाव के ट्रेंड को दोहराया, हर चुनाव में सत्ता परिवर्तन।
- भाजपा की हार के प्रमुख कारण: स्थानीय नेताओं की अनदेखी, कमजोर प्रत्याशी और गलत चुनावी रणनीति।
- कांग्रेस की जीत में एकजुटता और नरेश मीणा फैक्टर की अहम भूमिका।
कोटा: राजस्थान (Rajasthan) की अंता विधानसभा (Anta Assembly) सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस (Congress) ने इतिहास दोहराते हुए जीत दर्ज की है। प्रमोद जैन भाया (Pramod Jain Bhaya) ने भाजपा (BJP) के मोरपाल सुमन (Morpal Suman) को हराकर सीट वापस ली। जनता ने बदलाव के ट्रेंड को फॉलो किया।
अंता विधानसभा सीट के गठन के बाद से हुए चार चुनावों में हर बार सत्ता परिवर्तन का इतिहास रहा है। दो बार भाजपा और दो बार कांग्रेस को जीत मिली है, और इस बार भी जनता ने इसी परंपरा को कायम रखा। 2023 में यह सीट भाजपा के पास थी, जिसे कांग्रेस ने 2025 के उपचुनाव में वापस हासिल कर लिया।
इस चुनाव में कांग्रेस ने स्पष्ट जनादेश प्राप्त किया और थर्ड फ्रंट को नकार दिया। हालांकि, निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा ने मुकाबले को काफी मजबूत बनाया और जनता के बीच अपनी जगह बनाई, लेकिन अंततः जनादेश कांग्रेस के पक्ष में रहा। इस परिणाम में साइलेंट वोटर की भूमिका को निर्णायक माना जा रहा है।
भाजपा के लिए बड़ी चेतावनी
अंता उपचुनाव के परिणाम भाजपा सरकार और संगठन के लिए एक 'अलार्मिंग' संकेत माने जा रहे हैं। पूरी ताकत झोंक देने के बावजूद भाजपा अपने उम्मीदवार को आगे नहीं बढ़ा पाई, बल्कि परिणाम दूसरे और तीसरे स्थान के बीच उलझकर रह गए। कांग्रेस ने भाजपा के वोट बैंक में करीब 5% की सेंध लगाई, जिससे हार-जीत का अंतर 8% तक पहुंच गया।
भाजपा की हार के 3 प्रमुख कारण
- स्थानीय नेताओं की अनदेखी: राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण स्थानीय नेताओं को महत्व न देना था। नंदलाल सुमन, आनंद गर्ग और प्रखर कौशल जैसे मजबूत चेहरों के बावजूद, टिकट मोरपाल सुमन को दिया गया, जो जनता के बीच उतने लोकप्रिय नहीं थे। टिकट वितरण में देरी ने भी गलत संदेश दिया।
- प्रधान रहते हुए क्षेत्रीय काम न करवा पाने की छवि: मोरपाल सुमन तिसाया के प्रधान थे, लेकिन ग्रामीणों का कहना था कि वे अपने क्षेत्र के जरूरी काम नहीं करवा पाए। जनता में यह सवाल था कि जो प्रधान रहते हुए काम नहीं करवा पाया, वह विधायक बनकर क्या परिवर्तन लाएगा?
- चुनाव को नेताओं के चेहरे पर लड़ना: मोरपाल ने स्वयं प्रचार में विशेष सक्रियता नहीं दिखाई। पूरा चुनाव मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और अन्य वरिष्ठ नेताओं के चेहरे पर लड़ा गया। हाड़ौती के स्थानीय मंत्रियों को भी प्रचार में प्रमुखता नहीं मिली, जिससे स्थानीय स्तर पर ऊर्जा और जुड़ाव कमजोर रहा।
भाजपा ने स्थानीय मुद्दों पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया। चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने सीएम भजनलाल शर्मा के सामने अंता के अधूरे विकास कार्यों को उठाया, जिसका जनता पर विपरीत असर पड़ा। इससे यह संदेश गया कि सरकार स्थानीय मुद्दों से अनजान है, जिसका लाभ कांग्रेस ने उठाया।
कांग्रेस की जीत के प्रमुख कारण
रणनीतिक नैरेटिव सेट करना
उपचुनाव की घोषणा होते ही कांग्रेस ने भाजपा को नजरअंदाज करते हुए मुकाबला 'कांग्रेस बनाम नरेश मीणा' का बना दिया। इससे भाजपा का वोटर भ्रमित हुआ और कांग्रेस की यह रणनीति सफल रही। हालांकि, कांग्रेस को मुस्लिम वोटों में 10-15% और एससी वोटों में कुछ नुकसान हुआ, फिर भी सामाजिक समीकरण उनके पक्ष में रहे।
नरेश मीणा बने 'किंगमेकर टाइप' फैक्टर
निर्दलीय नरेश मीणा ने आरएलपी, AAP, SDPI और अन्य समूहों के समर्थन से मजबूती से चुनाव लड़ा। उन्हें लगभग 30% वोट मिले। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, वे भाजपा के वोट बैंक में अधिक सेंध लगाने में सफल रहे। यानी थर्ड फ्रंट सीधे-सीधे भाजपा के लिए सबसे बड़ा नुकसान साबित हुआ। नरेश मीणा को भाजपा ने खतरे के तौर पर नहीं माना, जो उनकी हार का एक बड़ा कारण बना।
कांग्रेस की एकजुटता
कांग्रेस की जीत में नेताओं की एकजुटता ने अहम भूमिका निभाई। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने अपने बीच की दूरियां भुलाकर प्रमोद जैन भाया के लिए पूरी ताकत झोंक दी। प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा भी गांव-गांव घूमे। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने भी जमकर प्रचार किया और भाजपा सरकार को घेरा।
भाजपा का चुनावी मैनेजमेंट कैसे फेल हुआ?
सत्ता में होने के बावजूद भाजपा की हार के पीछे उसका कमजोर चुनावी मैनेजमेंट भी एक बड़ा कारण रहा।
पहली पसंद वाला प्रत्याशी नहीं
भाजपा में अंता सीट पर टिकट को लेकर काफी खींचतान रही। सूत्रों के अनुसार, मोरपाल सुमन पहली पसंद नहीं थे। वसुंधरा राजे कंवर लाल मीणा की पत्नी या प्रभुलाल सैनी को टिकट दिलवाना चाह रही थीं, लेकिन पार्टी में सहमति नहीं बन पाई। हालांकि, शुरुआती असमंजस के बाद वसुंधरा राजे ने मोरपाल के साथ प्रचार में पूरा जोर लगाया, और इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ा। सीएम भजनलाल शर्मा और दुष्यंत सिंह ने भी प्रचार किया, लेकिन जनता ने उनकी झोली नहीं भरी।
स्थानीय मंत्रियों को रखा दूर
प्रचार का पूरा जिम्मा वसुंधरा राजे के इर्द-गिर्द रहा। अंता के स्थानीय वोटर्स में पैठ रखने वाले हाड़ौती के दो दिग्गज नेताओं, कैबिनेट मंत्री हीरालाल नागर और मदन दिलावर को चुनावी मैदान से दूर रखा गया। बारां जिले के ही सात बार के विधायक प्रताप सिंह सिंघवी को भी प्रचार के दौरान याद नहीं किया गया। स्थानीय नेताओं को नजरअंदाज करने की बात भाजपा के स्थानीय नेताओं के बीच ही नहीं, बल्कि अंता विधानसभा क्षेत्र के लगभग सभी गांवों में रही।
मीणा फैक्टर की अनदेखी
राजस्थान में मीणा समाज को भाजपा का वोटर माना जाता है, लेकिन कैबिनेट मंत्री और मीणा समाज के दिग्गज नेता किरोड़ी लाल मीणा का प्रचार सिर्फ औपचारिकता भरा रहा। सियासी जानकार मानते हैं कि अगर किरोड़ी लाल मीणा पूरी सक्रियता से जुटते, तो तस्वीर बदल सकती थी। नरेश मीणा ने हनुमान बेनीवाल और राजेंद्र गुढ़ा के साथ मिलकर जातीय समीकरणों और भाजपा से नाराज वोटरों को साधने में कामयाबी हासिल की, जिसका सीधा नुकसान भाजपा को हुआ।
इस रिजल्ट से कांग्रेस-भाजपा पर क्या होगा असर?
राजस्थान के इस एक सीट के नतीजे से कांग्रेस में नई जान आएगी। अशोक गहलोत लगातार भाजपा सरकार को निशाना बना रहे हैं, और यह परिणाम कांग्रेस को एकजुट करने तथा अगले चुनावों में जाने का ईंधन देगा।
इधर, भाजपा को मंथन करना होगा कि सत्ता में रहते हुए और केवल एक सीट पर फोकस करते हुए भी हार क्यों हाथ लगी। पिछला विधानसभा चुनाव जीते कंवरलाल मीणा को सजा होते ही भाजपा को पता था कि यहां उपचुनाव होगा, इसके बावजूद वे जनता की नब्ज नहीं टटोल पाए। जानकारों का मानना है कि अगर भाजपा पिछड़े इलाके में लोगों की समस्या दूर करने के काम छेड़ देती, तो जनता साथ आ सकती थी। लेकिन ऐसा कुछ दिखा नहीं।
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