Highlights
• चित्तौड़गढ़ के व्यापारी रमेश ईनाणी हत्याकांड में सिरोही के संत की भूमिका संदिग्ध।
• राज्यमंत्री ओटाराम देवासी और सांसद लुंबाराम चौधरी के साथ मंच साझा करने पर बवाल।
• पुलिस जांच में शूटर मनीष दुबे और संत रमताराम के बीच संपर्कों का हुआ खुलासा।
• आरोपी संतों को संप्रदाय से बाहर किए जाने के बाद भी जनप्रतिनिधियों का साथ।
सिरोही | चित्तौड़गढ़ (Chittorgarh) में व्यापारी (Businessman) रमेश ईनाणी (Ramesh Inani) की हत्या (Murder) के संदिग्ध (Suspect) संत के साथ राज्यमंत्री (Minister) और सांसद (MP) के मंच साझा करने से विवाद (Controversy) गरमा गया है।
सिरोही जिले की राजनीति में उठा तूफान अभी भी शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। चित्तौड़गढ़ में एक व्यापारी की सनसनीखेज हत्या से जुड़े प्रकरण ने अब राजनीतिक रंग ले लिया है। राज्यमंत्री ओटाराम देवासी एवं सांसद लुंबाराम चौधरी द्वारा एक खेल प्रतियोगिता के समापन समारोह में एक ऐसे संत के साथ मंच साझा करने को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है, जिसकी भूमिका चित्तौड़गढ़ के एक बहुचर्चित हत्याकांड में संदिग्ध बताई जा रही है। यह घटनाक्रम न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है, जिससे जनप्रतिनिधियों की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं।
चित्तौड़गढ़ हत्याकांड और पुलिस की जांच
दरअसल, चित्तौड़गढ़ में 11 नवंबर को उत्तरप्रदेश के शूटर मनीष दुबे ने व्यापारी रमेश ईनाणी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। घटना के बाद पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए आरोपी शूटर को गिरफ्तार कर लिया था। गहन जांच में सामने आया कि इस जघन्य हत्या का मुख्य कारण जमीन विवाद था। मृतक के परिजनों ने अपनी पुलिस रिपोर्ट में रामद्वारा के संत रमताराम के साथ चल रहे विवाद का स्पष्ट उल्लेख किया था। जैसे-जैसे पुलिस जांच आगे बढ़ी, रमताराम की कड़ियां इस हत्याकांड से जुड़ती नजर आईं। स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए रमताराम 24 नवंबर को अपना मोबाइल बंद कर फरार हो गए। पुलिस अधीक्षक मनीष त्रिपाठी के निर्देश पर विशेष टीमें उनकी तलाश में विभिन्न राज्यों में दबिश दे रही हैं।
सिरोही के संत की संदिग्ध भूमिका का खुलासा
जांच अधिकारी सीआई तुलसीराम के अनुसार, तकनीकी साक्ष्य, दस्तावेज और गवाहों के आधार पर यह साबित हुआ है कि शूटर मनीष दुबे जून 2022 से लगातार संत रमताराम से संपर्क में था। इस मामले में सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि यह संपर्क सिरोही के ही एक अन्य संत भजनाराम ने करवाया था। इसी कारण संत भजनाराम की भूमिका भी पूरी तरह संदिग्ध मानी जा रही है। जब तक पुलिस जांच पूरी नहीं हो जाती, वे चित्तौड़गढ़ पुलिस की रडार पर बने हुए हैं। पुलिस अब उन सभी कड़ियों को जोड़ने का प्रयास कर रही है जिन्होंने इस साजिश को अंजाम देने में मदद की थी।
जनप्रतिनिधियों की संवेदनशीलता पर उठे सवाल
यह तथ्य अब किसी से छिपा नहीं है कि रामद्वारा के बाबाजी रतनाराम की अग्रिम जमानत याचिका खारिज होने के बाद दोनों संतों को संत संप्रदाय से निष्कासित किया जा चुका है। इसके बावजूद, राज्यमंत्री ओटाराम देवासी और सांसद लुंबाराम चौधरी जैसे जिम्मेदार पदों पर आसीन व्यक्तियों द्वारा एक खेल प्रतियोगिता के मंच पर संदिग्ध संत के साथ उपस्थित होना कई गंभीर सवाल खड़े करता है। सामाजिक और राजनीतिक हलकों में यह बहस तेज हो गई है कि क्या जनप्रतिनिधियों को सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल होने से पहले आयोजकों और सह-अतिथियों की पृष्ठभूमि की जांच नहीं करनी चाहिए? फिलहाल, यह मामला कानून-व्यवस्था के साथ-साथ नैतिक जिम्मेदारी का भी बड़ा प्रश्न बन गया है।
राजनीति