Highlights
- जेल से संसद पहुंचे बारामुला सांसद अब्दुल रसीद का दमदार संबोधन।
- कश्मीर के ऐतिहासिक विभाजन और नेताओं की भूमिका पर सवाल।
- आर्टिकल 370 हटाने और कश्मीरी पंडितों के पलायन पर बात।
- मातृभूमि के प्रति प्रेम और न्याय की मार्मिक अपील।
नई दिल्ली: बारामुला (Baramulla) के सांसद अब्दुल रसीद (Abdul Rasheed) ने संसद में कश्मीर (Kashmir) और वंदेमातरम (Vande Mataram) के कनेक्शन पर एक ओजस्वी भाषण दिया। उन्होंने भारत के विभाजन, कश्मीर की ऐतिहासिक समस्याओं, आर्टिकल 370 (Article 370) हटाने और कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) के पलायन पर अपनी बात रखी। रसीद ने अपनी पहचान और मातृभूमि के प्रति प्रेम को व्यक्त करते हुए न्याय की मांग की।
संसद में अपनी बात रखते हुए बारामुला के सांसद अब्दुल रसीद ने एक मार्मिक अपील के साथ अपना संबोधन शुरू किया। उन्होंने कहा, 'प्लीज रिक्वेस्ट है सर आप टाइम नहीं रोकना टाइम देना क्योंकि आप तो घर जाएंगे मुझे तो जेल जाना है वापस आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।' यह कहते हुए उन्होंने अपनी स्थिति और देश के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त किया।
मातृभूमि से प्रेम और विभाजन का दर्द
अब्दुल रसीद ने 'निसार तेरी गलियों पे ए वतन कि जहां चली है रस्म कोई ये सर उठा के ना चले' शेर के साथ अपनी बात रखी। उन्होंने अपनी मातृभूमि के प्रति गहरे प्रेम का इजहार किया। उन्होंने उस धरती को सलाम किया जिसने अंग्रेजों से आजादी तो ली, लेकिन अंग्रेजों की चालाकी और तत्कालीन लीडरशिप की अक्षमता के कारण अविभाजित भारत के तीन हिस्से कर दिए।
उन्होंने उस धरती को भी सलाम किया जिसने उन्हें जन्म तो दिया, लेकिन 65 सालों से वे उसकी एक झलक देखने को तरस रहे हैं। यह बयान उनकी व्यक्तिगत पीड़ा और कश्मीर के लोगों की भावनाओं को दर्शाता है, जो अपने ही देश में एक अलग-थलग महसूस करते हैं।
कश्मीर: एक सियासी अखाड़ा और अधूरे वादे
सांसद रसीद ने कश्मीर की धरती को सलाम करते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू, अली मोहम्मद जिन्ना, सरदार पटेल, मरहूम शेख मोहम्मद अब्दुल्ला और महाराजा हरि सिंह जैसे नेताओं पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि इन नेताओं की अदूरदर्शिता के कारण 1947 से आज तक कश्मीर को एक सियासी अखाड़ा बनाकर मारधाड़ का मैदान बना दिया गया है।
उन्होंने जम्मू-कश्मीर की उस धरती को भी सलाम किया जिसे 1947 में एक खूनी लकीर के जरिए दो टुकड़ों में बांट दिया गया। रसीद ने अपनी मातृभूमि के प्रति किए गए बड़े वादों का जिक्र किया, जो जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक ने किए, लेकिन उनके अनुसार एक भी वादा पूरा नहीं किया गया।
जंगल राज और पहचान का संकट
अब्दुल रसीद ने अपनी मातृभूमि में 1999 से जारी 'जंगल राज' पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने बताया कि हजारों लोग मारे गए, लेकिन न मारने वाले को पता कि वह क्यों मरा और न मरने वाले को पता कि उसके साथ क्या हुआ। उन्होंने अपनी पहचान और धर्म को लेकर पूछे जाने वाले सवालों पर भी प्रकाश डाला।
उन्होंने टीवी चैनलों की भूमिका पर भी सवाल उठाए, जो उनके अनुसार देश की विदेश नीति तय करते हैं और राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाते हैं। यह टिप्पणी मीडिया के प्रभाव और कश्मीर मुद्दे पर उसकी कवरेज की आलोचना थी।
भारत का ताज, कश्मीर की अनदेखी
सांसद रसीद ने कहा कि भारत ने कश्मीर को अपना ताज तो माना, लेकिन इस ताज की हिफाजत कभी नहीं की। उन्होंने आरोप लगाया कि भारत को ताज सर पर रखना और उसे संभालना नहीं आया। उन्होंने 1987 में नेहरू, राहुल गांधी, नेहरू खानदान, मुफ्ती खानदान और शेख खानदान पर रिकॉर्ड तोड़ धांधलियां करके बंदूक को जन्म देने का आरोप लगाया, जिसकी वजह से हजारों लोग कब्रिस्तान में सो गए।
उन्होंने जम्मू-कश्मीर की मातृभूमि के स्थानीय अफसरों को 'डिसइंपॉवर' करने की भी बात कही। यह उनके अनुसार, स्थानीय शासन और स्वायत्तता को कमजोर करने का एक प्रयास था।
धारा 370, कश्मीरी पंडित और न्याय की गुहार
अब्दुल रसीद ने 5 अगस्त 2019 को सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से सब कुछ छीन लेने का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि राज्य के दो हिस्से कर दिए गए, धारा 370 छीनी गई, लेकिन 35A नहीं छीनी गई। उन्होंने उस धरती को भी सलाम किया जहां से 1990 में एक साजिश के तहत उनके कश्मीरी पंडित भाइयों को निकाल दिया गया था।
उन्होंने न्याय की गुहार लगाते हुए कहा, 'न्याय कीजिए, न्याय कीजिए, हाथ जोड़ता हूं।' यह उनकी मार्मिक अपील थी, जो कश्मीर के विभिन्न समुदायों के लिए न्याय की मांग करती थी।
शिकारियों से घिरा हिरण और पहचान की राजनीति
रसीद ने कश्मीर के रहने वालों की हालत की तुलना जंगल में चारों तरफ शिकारियों से घिरे हिरन के बच्चे से की। उन्होंने देश की उस धरती को भी सलाम किया जिसने ऋषि सुनक, ममदानी और कमला हैरिस जैसे लोगों को पैदा किया जिनकी जड़ें हिंदुस्तान से जुड़ी हैं, लेकिन बदकिस्मती से मुसलमानों को गैर मुल्की कहा जाता है और टीपू सुल्तान की बेइज्जती की जाती है।
उन्होंने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें बदकिस्मती से 'मुस्लिम इंतहा पसंद' कहा जाता है, जबकि जम्मू में माता वैष्णो देवी कॉलेज में धर्म के नाम पर एडमिशन मांगा जाता है। यह टिप्पणी धार्मिक भेदभाव और दोहरे मापदंडों की ओर इशारा करती है।
शासन का अभाव और UAPA का दुरुपयोग
अब्दुल रसीद ने जम्मू-कश्मीर में 'आज की तारीख में कोई गवर्नेंस नहीं' होने की बात कही। उन्होंने मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच आपसी लड़ाई का भी जिक्र किया, जिससे शासन व्यवस्था प्रभावित हो रही है। उन्होंने हाथ फैलाकर और दामन फैलाकर उस धरती को सलाम किया जहां UAPA के तहत हजारों लोग जेल में बंद हैं, जिनके लिए कश्मीर में जगह दी गई।
उन्होंने अपने संबोधन का समापन एक शेर के साथ किया: 'मेरे कारवा में शामिल कोई कम जर्फ नहीं है, जो ना मिट सके वतन पे मेरा हमसफर नहीं है।' यह शेर उनकी देशभक्ति और दृढ़ संकल्प को दर्शाता है।
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