India: किताब का दावा: BJP ने वाजपेयी को राष्ट्रपति पद ऑफर किया था

किताब का दावा: BJP ने वाजपेयी को राष्ट्रपति पद ऑफर किया था
BJP ने वाजपेयी को राष्ट्रपति पद ऑफर किया था: किताब
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Highlights

  • भाजपा ने 2002 में डॉ. कलाम से पहले वाजपेयी को राष्ट्रपति पद का प्रस्ताव दिया था।
  • वाजपेयी ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था और आडवाणी को प्रधानमंत्री बनाने की बात कही थी।
  • अशोक टंडन की किताब 'अटल संस्मरण' में हुआ यह खुलासा।
  • वाजपेयी चाहते थे कि राष्ट्रपति पद पर सर्वसम्मति बने, सोनिया गांधी से भी की थी चर्चा।

नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) के करीबी अशोक टंडन (Ashok Tandon) की किताब 'अटल संस्मरण' (Atal Smaran) में दावा किया गया है कि भाजपा (BJP) ने 2002 में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Dr. APJ Abdul Kalam) से पहले वाजपेयी को राष्ट्रपति पद (President Post) की पेशकश की थी। वाजपेयी ने इसे ठुकरा दिया था।

भाजपा का वाजपेयी को राष्ट्रपति बनाने का प्रस्ताव

अशोक टंडन की हाल ही में जारी हुई किताब 'अटल संस्मरण' ने 2002 के राष्ट्रपति चुनाव से जुड़े एक महत्वपूर्ण और अनसुने पहलू का खुलासा किया है।

किताब के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर विचार करने से पहले ही राष्ट्रपति पद का प्रस्ताव दिया था।

पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की यह इच्छा थी कि वाजपेयी राष्ट्रपति भवन का कार्यभार संभालें। इसके साथ ही, यह भी सुझाव दिया गया था कि उन्हें प्रधानमंत्री का पद अपने वरिष्ठ सहयोगी लाल कृष्ण आडवाणी को सौंप देना चाहिए।

वाजपेयी ने ठुकराया प्रधानमंत्री पद छोड़ने का विचार

हालांकि, अटल बिहारी वाजपेयी ने भाजपा के इस प्रस्ताव को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया था। टंडन के विवरण के अनुसार, वाजपेयी ने पार्टी के इस कदम का समर्थन करने से साफ इनकार कर दिया।

उन्होंने दृढ़ता से कहा था कि वे इस तरह के किसी भी फैसले के पक्ष में नहीं हैं और न ही वे इसका समर्थन करेंगे। वाजपेयी का मानना था कि उन्हें अपना वर्तमान कार्यकाल पूरा करना चाहिए।

गौरतलब है कि अटल बिहारी वाजपेयी 1999 से 2004 तक, पूरे पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे। अशोक टंडन ने 1998 से 2004 तक वाजपेयी के मीडिया सलाहकार के रूप में अपनी सेवाएं दी थीं, जिससे उनके खुलासे विश्वसनीय माने जा रहे हैं।

डॉ. कलाम का राष्ट्रपति चुनाव और सर्वसम्मति

वाजपेयी द्वारा राष्ट्रपति पद का प्रस्ताव ठुकराने के बाद, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने 2002 में 11वें राष्ट्रपति चुनाव के लिए डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को अपना आधिकारिक उम्मीदवार घोषित किया। डॉ. कलाम के सामने कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार लक्ष्मी सहगल थीं।

दिलचस्प बात यह थी कि कांग्रेस सहित देश के प्रमुख विपक्षी दलों के सांसदों और विधायकों ने भी डॉ. कलाम के समर्थन में मतदान किया। इस व्यापक समर्थन के साथ डॉ. कलाम ने जीत हासिल की और 25 जुलाई 2002 को भारत के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली।

राष्ट्रपति पद पर वाजपेयी की सर्वसम्मति की चाहत

किताब 'अटल संस्मरण' में यह भी बताया गया है कि अटल बिहारी वाजपेयी की गहरी इच्छा थी कि देश का 11वां राष्ट्रपति पक्ष और विपक्ष, दोनों की सर्वसम्मति से चुना जाए।

इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को बातचीत के लिए आमंत्रित किया था।

इस महत्वपूर्ण बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, अनुभवी नेता प्रणब मुखर्जी और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जैसे प्रमुख व्यक्ति शामिल हुए थे।

इसी बैठक के दौरान वाजपेयी ने पहली बार औपचारिक रूप से घोषणा की कि एनडीए ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को अपना राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने का फैसला किया है।

कलाम के नाम पर सोनिया गांधी की प्रारंभिक प्रतिक्रिया

अशोक टंडन के अनुसार, डॉ. कलाम के नाम की घोषणा के बाद बैठक कक्ष में कुछ देर के लिए पूर्ण मौन छा गया था। इस चुप्पी को तोड़ते हुए सोनिया गांधी ने वाजपेयी से कहा था कि वे कलाम के नाम के चयन को लेकर कुछ हद तक हैरान हैं।

उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि हालांकि, इस प्रस्ताव पर विचार करने के अलावा उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं है। सोनिया गांधी ने आश्वासन दिया कि वे इस प्रस्ताव पर अपनी पार्टी के भीतर चर्चा करेंगी और उसके बाद ही कोई अंतिम फैसला लेंगी।

वाजपेयी-आडवाणी के रिश्ते: नीतिगत मतभेद और अटूट साझेदारी

अशोक टंडन ने अपनी किताब में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के बीच के असाधारण संबंधों पर भी विस्तार से चर्चा की है। उन्होंने लिखा है कि कुछ नीतिगत मतभेदों के बावजूद, दोनों नेताओं के रिश्ते कभी भी सार्वजनिक रूप से खराब नहीं हुए, जो उनकी परिपक्व राजनीति का परिचायक है।

टंडन के अनुसार, लालकृष्ण आडवाणी हमेशा वाजपेयी को अपना मार्गदर्शक नेता और प्रेरणा स्रोत मानते थे। वहीं, वाजपेयी आडवाणी को अपना 'अटल साथी' कहकर संबोधित करते थे, जो उनकी गहरी दोस्ती और राजनीतिक साझेदारी की मजबूती को दर्शाता है।

किताब के मुताबिक, वाजपेयी और आडवाणी की यह अद्वितीय साझेदारी भारतीय राजनीति में सहयोग, संतुलन और दूरदर्शिता का प्रतीक रही। इन दोनों दूरदर्शी नेताओं ने न केवल भारतीय जनता पार्टी को एक मजबूत आधार दिया, बल्कि पार्टी और सरकार दोनों को एक नई दिशा और पहचान भी प्रदान की।

संसद हमले के दौरान सोनिया गांधी का मानवीय सरोकार

टंडन ने अपनी किताब में 13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर हुए भयावह आतंकी हमले का भी मार्मिक जिक्र किया है। इस दुखद घटना के समय लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रहीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी से फोन पर बातचीत की थी।

हमले के वक्त वाजपेयी अपने सरकारी आवास पर थे और अपने सहयोगियों के साथ टेलीविजन पर सुरक्षाबलों की जवाबी कार्रवाई को देख रहे थे। टंडन ने अपनी किताब में लिखा है कि हमले के दौरान वाजपेयी को सोनिया गांधी का फोन आया था।

सोनिया गांधी ने वाजपेयी से अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि वे उनकी सुरक्षा को लेकर फिक्रमंद हैं। इसके जवाब में वाजपेयी ने बड़ेपन का परिचय देते हुए कहा, "मैं सुरक्षित हूं।

मुझे तो इस बात की चिंता थी कि कहीं आप संसद भवन में तो नहीं हैं। अपना ध्यान रखिएगा।" यह घटना राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से परे दोनों नेताओं के बीच व्यक्तिगत सम्मान और मानवीय सरोकार की भावना को उजागर करती है।

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