Highlights
- हाईकोर्ट ने ब्यावर सेशन जज के 'जंगल राज' वाले आदेश को अधिकार क्षेत्र से बाहर बताया।
- जमानत सुनवाई में CBI जांच और पुलिस पर कार्रवाई जैसे निर्देश अनुचित करार दिए।
- मामले की रिपोर्ट राजस्थान हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस को भेजी गई।
- चार आरोपियों को जमानत मिली, हाईकोर्ट ने चोटों की प्रकृति और सामान्य आरोपों को आधार बनाया।
जोधपुर: राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने ब्यावर (Beawar) के सेशन जज (Session Judge) दिनेश कुमार गुप्ता (Dinesh Kumar Gupta) के उस आदेश पर कड़ा रुख अपनाया है, जिसमें उन्होंने पुलिस व्यवस्था को 'जंगल राज' (Jungle Raj) बताते हुए सीबीआई (CBI) जांच के निर्देश दिए थे। हाईकोर्ट ने इसे अधिकार क्षेत्र से बाहर बताया और मामले की रिपोर्ट एक्टिंग चीफ जस्टिस (Acting Chief Justice) को भेजने का निर्देश दिया है।
ब्यावर के बदनौर में एक न्यायिक मजिस्ट्रेट के भाई पर हुए हमले के मामले में अदालती लड़ाई ने एक नया और गंभीर मोड़ ले लिया है।
राजस्थान हाईकोर्ट ने ब्यावर सेशन कोर्ट के उस चर्चित आदेश पर सख्त रुख अपनाया है, जिसमें सेशन जज ने स्थानीय पुलिस व्यवस्था को 'जंगल राज' करार देते हुए सीबीआई जांच के आदेश दे दिए थे।
हाईकोर्ट का अहम फैसला: जमानत सुनवाई में ऐसे निर्देश अनुचित
जस्टिस सुदेश बंसल की कोर्ट ने न केवल इस मामले में चार आरोपियों को जमानत दे दी।
बल्कि सेशन जज द्वारा दिए गए प्रशासनिक निर्देशों को 'अधिकार क्षेत्र से बाहर' बताते हुए पूरे मामले की रिपोर्ट हाईकोर्ट के 'एक्टिंग चीफ जस्टिस' को भेजने का निर्देश दिया है।
जस्टिस सुदेश बंसल ने आरोपी जितेंद्रसिंह, भारतसिंह, मनोज और ओमप्रकाश की जमानत अर्जी मंजूर कर ली।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सेशन जज (ब्यावर) द्वारा 25 नवंबर को दिए गए निर्देश, जैसे अवैध खनन रोकना और सीबीआई जांच, जमानत याचिका तय करते समय जज के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते।
हाईकोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि वह सेशन कोर्ट के उन निर्देशों में कोई दखल नहीं दे रहा है।
लेकिन प्रभावित पक्ष कानून के अनुसार उनके खिलाफ अपील कर सकते हैं।
जस्टिस बंसल ने रजिस्ट्रार (ज्यूडिशियल) को निर्देश दिया कि सेशन जज, ब्यावर के 25 नवंबर के आदेश की कॉपी 'माननीय एक्टिंग चीफ जस्टिस' के अवलोकन के लिए रखी जाए।
सेशन कोर्ट ने क्यों कहा था 'जंगल राज'?
कहानी का दूसरा पहलू ब्यावर सेशन कोर्ट का वह 13 पन्नों का आदेश है, जिसने प्रशासनिक हलकों में हड़कंप मचा दिया था।
25 नवंबर को जिला एवं सेशन न्यायाधीश दिनेश कुमार गुप्ता ने आरोपियों की जमानत खारिज करते हुए पुलिस और खनन माफिया के गठजोड़ पर तल्ख टिप्पणी की थी।
सेशन जज ने लिखा था, "हमलावरों को पुलिस और खान विभाग से सांठ-गांठ तथा ऊंची राजनीतिक पहुंच का लाभ मिल रहा है।"
"यह बदनौर थाना क्षेत्र में कानून के राज की बजाय 'पुलिस राज' एवं 'जंगल राज' की स्थिति को दर्शाता है।"
मजिस्ट्रेट का घर भी नहीं सुरक्षित
सेशन कोर्ट की नाराजगी की मुख्य वजह यह थी कि जिस घर में 50-60 लोगों की भीड़ ने हमला किया, वह एक न्यायिक अधिकारी (मजिस्ट्रेट) का निवास है।
पीड़ित सुनील कुमार, जो एक आरटीआई एक्टिविस्ट हैं, एक मजिस्ट्रेट के भाई हैं।
सेशन कोर्ट ने टिप्पणी की थी, "जब असामाजिक तत्व एक न्यायिक अधिकारी के घर में दिन-दहाड़े घुसकर जानलेवा हमला कर सकते हैं, तो आम नागरिक की क्या दुर्गति होगी, इसका अनुमान लगाया जा सकता है।"
सेशन कोर्ट के 3 बड़े 'अल्टिमेटम' जिन पर उठे सवाल
सेशन जज ने अपनी अंतर्निहित शक्तियों का उपयोग करते हुए तीन सख्त निर्देश दिए थे।
अब इन्हीं निर्देशों पर हाईकोर्ट ने सवाल उठाए हैं।
- CBI जांच: राज्य सरकार को 3 दिन में निर्णय लेकर जांच सीबीआई को सौंपने को कहा गया था।
- पुलिस पर कार्रवाई: डीजीपी को निर्देश दिया था कि दूषित अनुसंधान करने वाले पुलिसकर्मियों पर 20 दिसंबर तक कार्रवाई करें।
- खनन पर रोक: खान सचिव को बदनौर में अवैध खनन पर कठोरतापूर्वक रोक लगाने के निर्देश दिए थे।
हाईकोर्ट में जमानत का आधार और न्यायिक तर्क
हाईकोर्ट ने सेशन कोर्ट की भावनाओं के विपरीत, तथ्यों और साक्ष्यों पर ध्यान दिया।
जस्टिस सुदेश बंसल ने जमानत देते हुए निम्नलिखित कारण गिनाए।
- चोटों की प्रकृति: पीड़ित सुनील कुमार को 7 चोटें आई थीं, लेकिन माथे की एक चोट को छोड़कर बाकी सभी गैर-महत्वपूर्ण अंगों पर थीं। उन्हें उसी दिन अस्पताल से छुट्टी मिल गई थी।
- सामान्य आरोप: एफआईआर में भीड़ पर सामान्य आरोप लगाए गए थे। किसी भी याचिकाकर्ता को किसी विशिष्ट चोट के लिए जिम्मेदार नहीं बताया गया था।
- हथियार: आरोपियों के पास से केवल एक लकड़ी की लाठी बरामद हुई है।
- हिरासत: आरोपी 15 नवंबर 2025 से जेल में बंद थे और ट्रायल पूरा होने में लंबा समय लगेगा।
दोनों अदालतों के आदेश में मुख्य अंतर
पुलिस की भूमिका पर
सेशन कोर्ट (ब्यावर) का नजरिया था कि पुलिस राज और जंगल राज है, और पुलिस अवैध खनन माफिया से मिली हुई है।
वहीं, हाईकोर्ट (जोधपुर) ने केस डायरी और चोटों के आधार पर निर्णय लिया और पुलिस की भूमिका पर टिप्पणी से परहेज किया।
घटना की गंभीरता पर
सेशन कोर्ट का मानना था कि मजिस्ट्रेट के घर पर हमला हुआ है, यह न्याय व्यवस्था को चुनौती है।
हाईकोर्ट ने पाया कि चोटें साधारण हैं, कोई भी चोट जानलेवा (Vital part) पर नहीं है, और पीड़ित उसी दिन अस्पताल से डिस्चार्ज हो गए थे।
न्यायिक निर्देशों पर
सेशन कोर्ट ने सीबीआई जांच, पुलिस पर कार्रवाई और अवैध खनन रोकने के सख्त आदेश दिए थे।
हाईकोर्ट ने इन आदेशों को जमानत की सुनवाई में 'अधिकार क्षेत्र से बाहर' (Without Jurisdiction) बताया।
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