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राजस्थान में हर बार सरकार बदलने का रिवाज रहा है। एक बार भाजपा तो दूसरी बार कांग्रेस का राज रहा है। ऐसे में इस बार विधानसभा चुनाव में क्या राजस्थान का ये रिवाज बदलने वाला है।
जयपुर | राजस्थान में 25 नवंबर यानि कल प्रदेश की जनता आने वाले पांच सालों के लिए अपने मुख्यमंत्री के लिए मतदान करने वाली है।
चुनाव के लिए पिछले कई दिनों से जारी चुनावी शोर-शराबा गुरूवार शाम थम चुका है।
ऐसे में अब प्रदेश के 5 करोड़ 29 लाख 31 हजार 152 मतदाता EVM का बटन दबाकर 1875 प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे।
राजस्थान में हमेशा से ही मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच होता आया है, लेकिन अन्य राजनीतिक पार्टियां भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है।
इसी के साथ राजस्थान में हर बार सरकार बदलने का रिवाज भी रहा है। एक बार भाजपा तो दूसरी बार कांग्रेस का राज रहा है। ऐसे में इस बार विधानसभा चुनाव में क्या राजस्थान का ये रिवाज बदलने वाला है।
जहां एक और कांग्रेस की अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) सरकार फिर से कांग्रेस सरकार रिपीट होने का दावा कर इस रिवाज को बदलने का दावा कर रही है तो वहीं भारतीय जनता पार्टी इस रिवाज के इतिहास को दोहराने के लिए जनता के बीच पहुंच रही है।
ऐसे में सालों से चले आ रहे राजस्थान के इस रिवाज को बदलने या फिर कायम रखने में मुख्य रूप से ये पांच फैक्टर बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं।
पेट्रोल-डीजल की कीमते कर सकती हैं प्रभावित
देश में अगर सबसे ज्यादा पेट्रोल-डीजल महंगा है तो वह राजस्थान में बिक रहा है।
ऐसे में यहां कांग्रेस सरकार पर ईधन की कीमतों में कमी करने का दवाब भी हमेशा रहा है जो चुनावों में अहम मुद्दा है।
हर पांच साल में बदलती है सरकार
राजस्थान में सरकार बदलने का रिवाज 1993 से लेकर अब तक जारी है। यहां हर विधानसभा चुनाव में सरकार बदल जाती है।
गौरतलब है कि 1993 में भाजपा ने बाजी मारी और भैरोसिंह शेखावत मुख्यमंत्री बने, लेकिन अगले चुनाव 1998 में कांग्रेस ने सरकार बनाई और अशोक गहलोत सीएम निर्वाचित हुए।
हालांकि, पांच साल बाद यानि 2003 में अशोक गहलोत को भी हार का सामना करना पड़ा और भाजपा की वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) को सत्ता मिली।
इसके बाद साल 2008 में वसुंधरा को हार झेलनी पड़ी और सत्ता में फिर से कांग्रेस के अशोक गहलोत आ गए।
अब 2013 में फिर से राजे का राजपाठ आया और गहलोत जी को जाना पड़ा।
सत्ता परिवर्तन की इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए 2018 में गहलोत जी तीसरी बार सीएम बन गए।
ऐसे में इस बार भाजपा इसी सत्ता परिवर्तन की रिवाज के भरोसे है और उसने अपना सीएम फेस भी सामने नहीं लाया है।
वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस की गहलोत सरकार अपनी गारंटियों के बल पर इस बार राजस्थान में रिवाज पलटने का दावा कर रही है।
OPS का मिल सकता है नफा-नुकसान
राजस्थान में सरकारी कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) एक बड़ा मुद्दा रहा है। राज्य में 7.7 लाख सरकारी कर्मचारी हैं और 3.5 पेंशनभोगी हैं।
बता दें कि 2004 या उससे पहले तक कर्मचारियों के रिटायरमेंट के बाद सरकार हर महीने पेंशन देती थी, जो ओल्ड पेंशन स्कीम है।
इस योजना में कर्मचारियों को रिटायरमेंट के वक्त उनके वेतन की आधी राशि पेंशन के रूप में मिलती थी।
इसी बीच कर्मचारी की मृत्यु होने के बाद उनके परिजनों को पेंशन की राशि दी जाती थी।
लेकिन 2014 में मोदी सरकार ने एक बिल पास कर इस नियम को बदल दिया और नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) लागू कर दी।
हालांकि, राजस्थान समेत कई राज्यों ने एनपीएस को नकारते हुए ओपीएस सिस्टम को फिर से लागू कर दिया है।
अब कांग्रेस ओपीएस को लेकर आगे है तो भाजपा के लिए ये कानून महंगा साबित हो सकता है।
बागी बिगाड़ सकते हैं दोनों पार्टियों का खेल
टिकट नहीं मिलने से नाराज कांग्रेस और भाजपा के बागी नेता भी दोनों पार्टियों का खेल बिगाड़ सकते हैं।
छोटी पार्टियां खेल सकती है खेल
राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस के घमासान के बीच छोटे दल भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आए हैं।
प्रदेश में बसपा, आरएलपी, एएसपी और बीएपी प्रमुख रूप से सक्रिय पार्टियां हैं।
ये पार्टियां अहम मौकों पर दोनों पार्टियों का पूरा गणित बिगाड़ती रही हैं। ऐसे में इस बार भी रिवाज बदलेगी या नहीं ये तो 3 दिसंबर बाद ही मालूम चलेगा।
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