नशा मुक्ति बिल: किसानों पर असर: केंद्रीय उत्पाद शुल्क बिल: नशा मुक्ति या टैक्स वसूली?

Ad

Highlights

  • सांसद राजकुमार रोत ने केंद्रीय उत्पाद शुल्क संशोधन विधेयक 2025 पर चिंता व्यक्त की।
  • उन्होंने तेंदू पत्ता और सुपारी किसानों पर बिल के प्रभाव को लेकर सवाल उठाए।
  • बॉलीवुड सितारों द्वारा नशे के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई।
  • नशा मुक्ति के लिए शिक्षा और धार्मिक स्थलों पर नियंत्रण की वकालत की।

नई दिल्ली: सांसद राजकुमार रोत (Rajkumar Roat ) ने केंद्रीय उत्पाद शुल्क संशोधन विधेयक 2025 (Central Excise Amendment Bill 2025) पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि बिल का उद्देश्य नशा मुक्ति (De-addiction) होना चाहिए, न कि केवल टैक्स वसूली।

उन्होंने तेंदू पत्ता (Tendu Patta) और सुपारी (Supari) किसानों पर बिल के संभावित नकारात्मक प्रभाव पर प्रकाश डाला और बॉलीवुड (Bollywood) सितारों द्वारा नशे के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की।

केंद्रीय उत्पाद शुल्क संशोधन विधेयक 2025 पर चर्चा के दौरान, सांसद राजकुमार रोत ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इस बिल का मूल उद्देश्य देश में बढ़ते धूम्रपान और नशे को कम करना होना चाहिए।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यदि यह विधेयक देश में नशा मुक्ति अभियान को गति देता है और इस पर प्रभावी प्रतिबंध लगाता है, तो यह एक स्वागत योग्य कदम होगा।

हालांकि, उन्होंने बिल के संभावित नकारात्मक प्रभावों को लेकर अपनी गहरी चिंता भी व्यक्त की, विशेषकर उन समुदायों के लिए जिनकी आजीविका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन उत्पादों से जुड़ी हुई है।

तेंदू पत्ता और सुपारी किसानों की आजीविका पर संकट

रोत ने विशेष रूप से उन मेहनती किसानों की ओर ध्यान आकर्षित किया जो सुबह तड़के 4 बजे उठकर जंगलों में तेंदू पत्ता और सुपारी का संग्रह करते हैं। ये किसान दिनभर की कड़ी मेहनत के बाद तेंदू पत्तों के छोटे-छोटे बंडल बनाते हैं, जिन्हें वे कंपनियों को बेचकर अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं।

उनकी यह कमाई अक्सर बेहद कम होती है, लेकिन यह उनके परिवारों के लिए जीवनयापन का एकमात्र साधन होती है। उन्होंने कहा कि इस नए कानून का असर कहीं इन गरीब किसानों की आमदनी पर न पड़े, जो पहले से ही आर्थिक रूप से कमजोर हैं। यदि उनकी आय प्रभावित होती है, तो उनके सामने भुखमरी का संकट खड़ा हो सकता है।

सरकार को ऐसे प्रावधान करने चाहिए जिससे किसानों के हितों की रक्षा हो सके और उनकी आय प्रभावित न हो। यह सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए कि किसी भी नीतिगत बदलाव का बोझ गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर न पड़े, बल्कि उन्हें वैकल्पिक आजीविका के अवसर प्रदान किए जाएं।

आदिवासी और पिछड़े इलाकों में नशे का बढ़ता जाल

सांसद राजकुमार रोत ने देश में धूम्रपान और नशे के तेजी से बढ़ते प्रचलन के मुख्य कारणों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि आदिवासी, दलित और पिछड़े इलाकों में जहां शिक्षा पहुंचनी चाहिए थी, वहां शिक्षा नहीं पहुंची है, बल्कि नशा पहुंचा है।

इन क्षेत्रों में जागरूकता की कमी, गरीबी और रोजगार के अवसरों का अभाव अक्सर लोगों को नशे की ओर धकेल देता है।

हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए कि हम इन क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का प्रसार करें, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करें और रोजगार के अवसर पैदा करें, ताकि लोग नशे की लत से दूर रह सकें और एक गरिमापूर्ण जीवन जी सकें।

शिक्षा और आर्थिक सशक्तिकरण ही नशे के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार है।

सेलिब्रिटी विज्ञापन और युवाओं पर उनका प्रभाव

नशे के बढ़ते प्रचलन का एक प्रमुख कारण विज्ञापनों को बताते हुए, रोत ने 'विमल' जैसे उत्पादों के विज्ञापनों का उदाहरण दिया।

उन्होंने कहा कि बड़े-बड़े शहरों और ग्रामीण इलाकों में 'दाने-दाने में केसर का दम' जैसे आकर्षक विज्ञापन लगे हुए हैं। उन्होंने बॉलीवुड के कई बड़े सितारों का नाम लिए बिना कहा कि ये सितारे ऐसे विज्ञापनों के लिए करोड़ों रुपये लेते हैं। इन सितारों को युवा अपना आदर्श मानते हैं और उनकी हर बात का अनुसरण करने की कोशिश करते हैं।

उन्होंने अपनी बात रखते हुए कहा कि जब ये हीरो, जिन्हें युवा अपना रोल मॉडल मानते हैं, ऐसे उत्पादों का प्रचार करते हैं और कहते हैं कि इसमें तो केसर का दम है, तो युवा उन्हें देखकर प्रभावित होते हैं और इन उत्पादों का सेवन शुरू कर देते हैं।

उन्होंने सरकार से मांग की कि ऐसे भ्रामक और समाज को गुमराह करने वाले विज्ञापनों पर तुरंत प्रतिबंध लगाया जाए। साथ ही, उन्होंने ऐसे विज्ञापनों का प्रचार करने वाले बॉलीवुड सितारों पर भी कड़ी कार्रवाई करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

उनका मानना है कि इन सितारों की सामाजिक जिम्मेदारी है और उन्हें ऐसे उत्पादों का प्रचार नहीं करना चाहिए जो समाज के लिए हानिकारक हों और युवाओं के भविष्य को अंधकारमय बना सकते हैं।

डूंगरपुर-बांसवाड़ा में नशे की चौंकाने वाली बिक्री

अपने संसदीय क्षेत्र बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले का उदाहरण देते हुए, रोत ने चौंकाने वाले आंकड़े प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि इन आदिवासी इलाकों में एक दिन में लगभग 1 करोड़ 10 लाख रुपये के विमल उत्पादों की बिक्री होती है। यह आंकड़ा न केवल चिंताजनक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि इन क्षेत्रों में नशे की जड़ें कितनी गहरी हो चुकी हैं।

उन्होंने इसका मूल कारण किसी भी प्रकार के प्रतिबंध या नियंत्रण की कमी को बताया। उन्होंने कहा कि बाजार में डुप्लीकेट चीजें भी बन रही हैं और विशेषकर ग्रामीण इलाकों में इनकी बिक्री तेजी से हो रही है, जिससे सरकार को राजस्व का भी नुकसान हो रहा है और लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है। सरकार को इन डुप्लीकेट उत्पादों पर भी नियंत्रण लगाने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए और इनकी आपूर्ति श्रृंखला को तोड़ना चाहिए।

टैक्स का बोझ, प्रतिबंध और अवैध व्यापार की चुनौती

रोत ने सरकार से पूछा कि डुप्लीकेट उत्पादों पर नियंत्रण के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि टैक्स का असर उत्पादन करने वाली कंपनियों और बड़े व्यापारियों पर होना चाहिए, न कि ग्रामीण इलाकों के गरीब किसानों पर। उन्होंने कहा कि यदि टैक्स का बोझ किसानों पर पड़ता है, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा और उनकी आर्थिक स्थिति को और खराब कर देगा।

प्रतिबंध लगाने की बात पर, उन्होंने गुजरात में शराब प्रतिबंध का उदाहरण दिया। उन्होंने बताया कि गुजरात में शराब पर प्रतिबंध है, लेकिन वहां सबसे ज्यादा शराब बिकती है। जो बोतल 500 रुपये की होती है, वह अवैध बाजार में 1500 रुपये में बिकती है।

यह दर्शाता है कि केवल प्रतिबंध लगाना ही समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि इससे अवैध व्यापार को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे सरकार को राजस्व का नुकसान होता है और गुणवत्ताहीन उत्पादों के सेवन से लोगों के स्वास्थ्य को भी खतरा होता है। उन्होंने कहा कि हमें इस बात पर भी सोचने की जरूरत है कि प्रभावी नियंत्रण कैसे स्थापित किया जाए और अवैध व्यापार को कैसे रोका जाए, ताकि प्रतिबंध अपने वास्तविक उद्देश्य को पूरा कर सके।

युवाओं को नशे से बचाने की राष्ट्रीय चिंता

सांसद ने देश के युवाओं को नशे की लत से बचाने की अपनी गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम इस गंभीर समस्या का समाधान करें, क्योंकि नशे की लत न केवल व्यक्ति के जीवन को बर्बाद करती है, बल्कि पूरे परिवार और समाज को प्रभावित करती है।

नशे के कारण अपराध बढ़ते हैं, स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित होती हैं और देश की उत्पादकता पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। उन्होंने एक और महत्वपूर्ण मुद्दे की ओर ध्यान दिलाया, जिसमें कुछ संत धर्म की आड़ में अफीम और गांजा जैसे नशीले पदार्थों का उत्पादन और वितरण करते हैं। उन्होंने कहा कि कई मठों और धार्मिक स्थलों में ऐसी गतिविधियां होती हैं, और धर्म के आसपास होने के कारण उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती, जिससे यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है।

धार्मिक स्थलों की शुचिता और शिक्षा का मूल मंत्र

रोत ने मांग की कि ऐसे धार्मिक स्थलों और संतों पर भी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए जहां से अफीम और गांजा का प्रचलन होता है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि वह सभी संतों पर सवाल नहीं उठा रहे हैं, बल्कि केवल उन पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं जो गलत गतिविधियों में लिप्त हैं और युवाओं को भटकाते हैं। उन्होंने कहा कि धार्मिक स्थलों का उपयोग समाज को सही दिशा दिखाने और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए होना चाहिए, न कि नशे के व्यापार के लिए।

ऐसे स्थानों पर कड़ी निगरानी और कानूनी कार्रवाई आवश्यक है, ताकि धर्म की आड़ में होने वाले ऐसे कुकृत्यों को रोका जा सके।

अंत में, सांसद राजकुमार रोत ने दोहराया कि तेंदू पत्ता और सुपारी के उत्पादन पर निर्भर परिवारों की आजीविका प्रभावित नहीं होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि इस बिल का असर उत्पादन करने वाली कंपनियों और बड़े व्यापारियों पर होना चाहिए, न कि गरीब किसानों पर।

उन्होंने देश में धूम्रपान पर प्रतिबंध लगाने और आदिवासी, दलित व पिछड़े इलाकों में शिक्षा पहुंचाने की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि इन क्षेत्रों को नशे की गिरफ्त से बचाया जा सके और एक स्वस्थ व सशक्त समाज का निर्माण हो सके।

उन्होंने सभी से इस गंभीर मुद्दे पर मिलकर काम करने का आह्वान किया, ताकि नशे के चंगुल से युवाओं और समाज को बचाया जा सके।

Must Read: जो किसी ने नहीं किया वो कर गए सीएम गहलोत, बना दिया नया रिकॉर्ड

पढें राजनीति खबरें, ताजा हिंदी समाचार (Latest Hindi News) के लिए डाउनलोड करें thinQ360 App.

  • Follow us on :