Rajasthan: लिव-इन की कानूनी मान्यता समाप्त हो: आचार्य पाटोदिया

लिव-इन की कानूनी मान्यता समाप्त हो: आचार्य पाटोदिया
लिव-इन मान्यता खत्म करो: आचार्य पाटोदिया
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Highlights

  • लिव-इन संबंधों की कानूनी मान्यता समाप्त करने की मांग।
  • आचार्य पाटोदिया ने भारतीय वैवाहिक मूल्यों पर चिंता जताई।
  • प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट से कानून बनाने की अपील।
  • लिव-इन को समाज के लिए घातक बताया गया।

जयपुर: जयपुर (Jaipur) में आचार्य सत्यनारायण पाटोदिया (Acharya Satyanarayan Patodiya) ने लिव-इन रिलेशनशिप (Live-in Relationship) की कानूनी मान्यता समाप्त करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि आधुनिकता के नाम पर भारतीय वैवाहिक मूल्य कमजोर हो रहे हैं।

बुधवार को पिंकसिटी प्रेस क्लब में मीरा चैरिटेबल ट्रस्ट जयपुर द्वारा एक महत्वपूर्ण प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। यह आयोजन सेंटर फॉर पब्लिक अवेयरनेस एंड इन्फॉर्मेशन के डायरेक्टर आचार्य सत्यनारायण पाटोदिया की अगुआई में संपन्न हुआ।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता देने से उत्पन्न होने वाले गंभीर सामाजिक, सांस्कृतिक और वैवाहिक दुष्परिणामों पर गहरी चिंता व्यक्त की गई। इस दौरान इसकी कानूनी मान्यता को तत्काल समाप्त करने की जोरदार मांग उठाई गई, ताकि भारतीय समाज के ताने-बाने को बचाया जा सके।

भारतीय मूल्यों पर लिव-इन का प्रभाव

आचार्य पाटोदिया ने अपने संबोधन में स्पष्ट रूप से कहा कि आधुनिकता और पश्चिमीकरण के नाम पर लिव-इन प्रथा भारतीय वैवाहिक और पारिवारिक मूल्यों को लगातार कमजोर कर रही है। उन्होंने भारतीय विवाह व्यवस्था के महत्व पर विशेष जोर दिया, जिसे सदियों से समाज की नींव माना जाता रहा है।

उन्होंने भारतीय संस्कृति में रिश्तों की पवित्र भूमिका और लिव-इन संबंधों से समाज पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों पर विस्तार से चर्चा की। आचार्य पाटोदिया ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि ऐसे रिश्तों में जन्म लेने वाले बच्चों का भविष्य भी अक्सर अनिश्चितताओं और सामाजिक चुनौतियों से घिर जाता है।

कानूनी मान्यता समाप्त करने की मांग

प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपस्थित सभी वक्ताओं ने एकमत से लिव-इन रिलेशनशिप को समाज के लिए अत्यंत घातक बताया। उन्होंने इसकी कानूनी मान्यता को तुरंत समाप्त करने की मांग दोहराई, ताकि सामाजिक व्यवस्था में स्थिरता लाई जा सके।

आचार्य पाटोदिया ने इस संदर्भ में सरकारों की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि समाज में बढ़ते अनाचार और दुराचार को रोकने में सरकारें कई बार विफल रहती हैं, जिससे सामाजिक समस्याएं बढ़ती हैं।

इसके बाद ऐसी व्यवस्थाओं को वैध करार देने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है, जो कि एक खतरनाक चलन है। उन्होंने उज्जैन में वेश्यावृत्ति को रोक न पाने पर नगरपालिका द्वारा उसे लाइसेंस जारी कर वैध करने का उदाहरण देते हुए अपनी बात को पुष्ट किया।

आचार्य पाटोदिया का संकल्प और देशव्यापी अभियान

79 वर्षीय आचार्य पाटोदिया सनातन धर्म के चारों आश्रमों का पालन करते हुए एक अनुकरणीय जीवन जी रहे हैं। वे संगीत, कथक नृत्य और समाज सेवा जैसे विभिन्न क्षेत्रों से भी सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं।

उन्हें वर्ष 2025 में राष्ट्रपति भवन में आयोजित होने वाले “गरिमापूर्ण वृद्धावस्था” कार्यक्रम में सम्मानित किया गया था। आचार्य पाटोदिया ने बताया कि एक गहरी विपश्यना समाधि के दौरान उन्हें लिव-इन प्रथा को समाप्त करने का स्पष्ट आदेश प्राप्त हुआ था।

इस दिव्य आदेश के बाद उन्होंने भारतीय सामाजिक और वैवाहिक संरचना की रक्षा के लिए एक देशव्यापी जन आंदोलन शुरू किया है। यह आंदोलन लिव-इन संबंधों की कानूनी मान्यता समाप्त करने और पारंपरिक मूल्यों को पुनर्जीवित करने पर केंद्रित है।

प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट से अपील

आचार्य पाटोदिया ने इस गंभीर विषय पर भारत के प्रधानमंत्री को एक विस्तृत पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने लिव-इन रिलेशनशिप की कानूनी मान्यता समाप्त करने के लिए तत्काल एक प्रभावी कानून बनाने की मांग की है।

इसके अतिरिक्त, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 53वें मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत शर्मा से भी विनम्र अपील की है। उन्होंने उनसे इस महत्वपूर्ण विषय में स्वप्रेरणा से संज्ञान लेने और आवश्यक कदम उठाने का आग्रह किया है, ताकि समाज को इस चुनौती से मुक्ति मिल सके।

अन्य गणमान्य व्यक्तियों का समर्थन

प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भी अपने महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए और आचार्य पाटोदिया के अभियान का समर्थन किया। इनमें मानव मिलन संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष प्रमोद जैन चौरड़िया प्रमुख थे।

राजस्थान जैन सभा के पूर्व अध्यक्ष और राजस्थान महासभा के अध्यक्ष कमल बाबू जैन ने भी इस मांग का पुरजोर समर्थन किया। सर्व समाज जागृति संघ के संस्थापक अध्यक्ष डॉ सुरेश चंद्र शर्मा और रुचि साधवानी ने भी लिव-इन रिलेशनशिप को समाज के लिए घातक बताते हुए इसकी कानूनी मान्यता तुरंत समाप्त करने की मांग का समर्थन किया।

सभी वक्ताओं ने एक स्वर में भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों की रक्षा पर जोर दिया। उन्होंने लिव-इन संबंधों के बढ़ते चलन और उसके संभावित दीर्घकालिक दुष्परिणामों पर गहरी चिंता व्यक्त की, जिसे समाज के लिए एक बड़ी चुनौती बताया गया।

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