वंदे मातरम पर लवली आनंद का ओजस्वी भाषण: लोकसभा में लवली आनंद ने वंदे मातरम पर दिया भावुक भाषण

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Highlights

  • श्रीमती लवली आनंद ने वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर सदन में चर्चा में भाग लिया।
  • उन्होंने वंदे मातरम को भारत की आत्मा और राष्ट्र की पहचान बताया।
  • लवली आनंद ने प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विकास कार्यों की सराहना की।
  • उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में वंदे मातरम की भूमिका और अपने परिवार के बलिदान को भी याद किया।

नई दिल्ली: लोकसभा (Lok Sabha) में श्रीमती लवली आनंद (Smt. Lovely Anand) ने राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम (Vande Mataram) के 150 वर्ष पूरे होने पर चर्चा में भाग लिया। उन्होंने इसके ऐतिहासिक महत्व, स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) के नेतृत्व में देश के विकास पर प्रकाश डाला। उन्होंने वंदे मातरम को राष्ट्र की आत्मा बताया।

सभापति महोदया को धन्यवाद देते हुए श्रीमती लवली आनंद ने राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में सदन में चर्चा में भाग लेने की अनुमति मिलने पर खुशी व्यक्त की। उन्होंने अपनी पार्टी और बिहार के माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी की ओर से भी धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने इस बात पर हर्ष व्यक्त किया कि आज हमारे देश के राष्ट्रगीत पर सदन में चर्चा हो रही है।

वंदे मातरम का ऐतिहासिक सफर

श्रीमती आनंद ने बताया कि इस गीत को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी द्वारा 24 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान में प्रस्ताव के रूप में रखा गया और वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया गया। उन्होंने स्मरण कराया कि 150 वर्ष पहले, 7 नवंबर 1875 को बंकिम चंद्र चटर्जी की रचना वंदे मातरम साहित्यिक पत्रिका 'बंग दर्शन' में प्रकाशित हुई थी। बाद में यह 1882 में 'आनंद मठ' उपन्यास में भी प्रकाशित हुआ।

उन्होंने आगे कहा कि 1896 में माननीय रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा इसे मुख्य नारे के रूप में स्थापित किया गया, जिसने आजादी के आंदोलन में लोगों को एक सूत्र में बांधने का काम किया। इस गीत की लोकप्रियता ने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी और यही कारण था कि अंग्रेज डरकर इसके सार्वजनिक गायन पर प्रतिबंध लगाने को मजबूर हुए। हालांकि, इसके बावजूद इसका गायन बंद नहीं हुआ और यह आजादी के आंदोलन में प्रेरणा का स्रोत बना रहा।

स्वतंत्रता संग्राम की अमर धरोहर

लवली आनंद ने राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की रिकॉर्डिंग के इतिहास पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि 1907 में माननीय हेमचंद बंधु उपाध्याय जी द्वारा इसे पहली बार रिकॉर्ड किया गया था। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की इस अमर धरोहर और देशभक्ति की अलख जगाने वाले राष्ट्रगीत वंदे मातरम के सम्मान में सदन और पूरे देश में देशभक्ति के कार्यक्रमों के आयोजन के लिए माननीय प्रधानमंत्री जी को हृदय से अभिवादन किया।

देश के विकास में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का योगदान

अपने संबोधन में श्रीमती आनंद ने प्रधानमंत्री जी की दूरदर्शी सोच की सराहना की, जिसके कारण देश चौतरफा विकास की ओर अग्रसर है। उन्होंने देश की आर्थिक तरक्की और लोगों में खुशहाली का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि विकास की रफ्तार इतनी तेजी से बढ़ रही है कि दूसरी तिमाही में जीडीपी 8.2% की दर से आगे बढ़ रहा है, जिससे आलोचकों का चिंतित होना स्वाभाविक है।

उन्होंने कहा कि आलोचकों को विश्वास नहीं हो रहा कि प्रधानमंत्री जी देश को विकसित भारत बनाने में अपने सफल प्रयास को वर्ष 2047 तक पूरा करने के लक्ष्य को निर्धारित कर चुके हैं। इसके प्रमाण भी सामने हैं, क्योंकि भारत विश्व की चौथी अर्थव्यवस्था से तीसरी अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर है। इसके लिए उन्होंने माननीय प्रधानमंत्री जी को बधाई दी।

बिहार के विकास में नीतीश कुमार की भूमिका

श्रीमती आनंद ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी को भी बधाई दी, जिन्हें उन्होंने 'विश्वकर्मा' की संज्ञा दी। उन्होंने गत विधानसभा चुनाव में मिली शानदार सफलता पर उन्हें बधाई दी और कहा कि यह दो दशकों की उनकी सेवाओं और महान जनता का उनके प्रति अटूट विश्वास का प्रतिफल है। उन्होंने गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में कायम करते हुए दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। लवली आनंद ने कामना की कि नीतीश कुमार पूरी निष्ठा और तत्परता से बिहार को सजाने-संवारने में लगे रहें और गांधी, लोहिया, जयप्रकाश के सपनों का बिहार बनाने में कामयाब हों।

वंदे मातरम: राष्ट्र की आत्मा और पहचान

श्रीमती आनंद ने जोर देकर कहा कि वंदे मातरम केवल दो शब्द नहीं हैं, यह हमारे राष्ट्र की आत्मा है। उन्होंने कहा कि जब हम वंदे मातरम कहते हैं, तो हम अपने देश के प्रति कृतज्ञता, सम्मान और प्रेम व्यक्त करते हैं। यह हमें याद दिलाता है कि हमारा राष्ट्र हमारी सबसे बड़ी पहचान है और इसकी रक्षा, उन्नति और सम्मान हमारा कर्तव्य है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि हमारी पहचान, हमारी संस्कृति और हमारे राष्ट्र का गौरव सब कुछ वंदे मातरम में समाया हुआ है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में विविधता है – भाषा, जाति, संस्कृति, परंपराएं – लेकिन इन सबको एक सूत्र में बांधने वाली आवाज वंदे मातरम है।

अतीत का सम्मान और वीरों का बलिदान

विपक्ष के अतीत को याद न करने की बात पर श्रीमती आनंद ने कहा कि वह देश और समाज मर जाता है जो अपने महापुरुषों, वीरांगनाओं और वीरों की कुर्बानी को याद नहीं करता है। उन्होंने वंदे मातरम के मुद्दे को सदन में लाने के लिए प्रधानमंत्री जी के प्रति आभार व्यक्त किया।

उन्होंने भावुक होकर कहा कि वंदे मातरम उनके रग-रग में है, क्योंकि उनके तीन-तीन पीढ़ियों ने देश की आजादी के लिए बलिदान दिया है। उन्होंने बताया कि आनंद मोहन जी के दादा जी और उनके दादा जी स्वतंत्रता सेनानी थे। आनंद मोहन जी जेपी आंदोलन के उपज हैं और उन्होंने 17 साल की उम्र से ही जेपी आंदोलन में साथ दिया, वंदे मातरम किया। उन्होंने उस समय समाजवाद के लिए आवाज उठाई जब देश में काला कानून था।

श्रीमती आनंद ने वीर कुंवर सिंह जैसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को भी याद किया, जिन्होंने 80 वर्ष की उम्र में अंग्रेजों को छक्के छुड़ा दिए और अपने बाएं हाथ में गोली लगने पर उसे काटकर गंगा को समर्पित कर दिया। उन्होंने वीरांगनाओं के बलिदान को भी याद किया और कहा कि देश को सजाकर और संवारकर रखना है। उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ियों के लिए वंदे मातरम एक सबक है, क्योंकि उन्हें इतिहास बताना जरूरी है, तभी हम वर्तमान और भविष्य को सजा सकते हैं।

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