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जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 29 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक जापान और चीन के दौरे पर गए, तो एक सवाल ज़रूर उठा—
???? “एस. जयशंकर कहां थे?”
नई दिल्ली। भारत की विदेश नीति… जिसने दुनिया को चौंकाया, जिसने भारत की आवाज़ को वैश्विक मंच पर बुलंद किया। लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 29 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक जापान और चीन के दौरे पर गए, तो एक सवाल ज़रूर उठा—
???? “एस. जयशंकर कहां थे?”
क्या ये सिर्फ संयोग था, या फिर किसी बड़ी रणनीति का हिस्सा? आइए, इस रहस्य पर से परत-दर-परत पर्दा उठाते हैं।
✦ जयशंकर की भूमिका और ताक़त
2019 से मोदी सरकार की विदेश नीति का सबसे मजबूत चेहरा एस. जयशंकर रहे हैं।
अमेरिका से लेकर रूस, चीन से लेकर यूरोप तक—भारत की ब्रांडिंग उन्होंने ही की।
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2009 से 2013 तक चीन में भारत के राजदूत रहे।
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जापान में भी कूटनीतिक अनुभव लिया।
यानी, जिन देशों की यात्रा मोदी ने हाल में की, उन्हें जयशंकर सबसे बेहतर समझते हैं। ऐसे में उनका न होना और भी रहस्यमय लगता है।
✦ आधिकारिक कारण और असमंजस
इंडिया टुडे की एडिटर गीता मोहन ने दावा किया—जयशंकर की तबीयत ठीक नहीं थी।
लेकिन विदेश मंत्रालय ने कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया।
वहीं जयशंकर अपने एक्स अकाउंट पर लगातार सक्रिय दिखे।
मीटिंग्स और मुलाक़ातों की तस्वीरें शेयर करते रहे।
???? सवाल गहराया: अगर स्वास्थ्य ठीक था तो विदेश दौरे में क्यों नहीं गए?
✦ विशेषज्ञों की राय
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इंद्राणी बागची (थिंक टैंक) – “इसमें बहुत ज़्यादा मतलब मत निकालिए। जयशंकर वही करते हैं जो सरकार तय करती है।”
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कंवल सिब्बल (पूर्व विदेश सचिव) – “संभव है निजी कारण हो। विदेश नीति किसी एक व्यक्ति पर निर्भर नहीं करती।”
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सलमान खुर्शीद (पूर्व विदेश मंत्री) – “मोदी सरकार ने गुटनिरपेक्ष नीति छोड़ी और अमेरिका के करीब गई। लेकिन ट्रंप ने 50% टैरिफ़ लगाकर झटका दिया। शायद अब भारत संतुलन की कोशिश कर रहा है।”
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अनाम विशेषज्ञ – “जयशंकर ने विदेश नीति को बहुत अमेरिका-केंद्रित बना दिया था। अब भारत शिफ्ट कर रहा है, इसलिए उन्हें इस प्रोसेस से अलग रखा गया।”
✦ चीन की नज़र और ग्लोबल टाइम्स का हमला
जयशंकर ने हमेशा साफ़ कहा—
???? “भारत मल्टीपोलर एशिया चाहता है, चीन-प्रधान एशिया नहीं।”
चीन इस बेबाक़ी से असहज रहा है।
उसका सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने हाल में लेख छापा:
???? “India’s Diplomacy has a S. Jaishankar Problem”
लेख में आरोप लगाया गया कि जयशंकर चीन-विरोधी रुख़ अपनाकर अमेरिका को खुश करना चाहते हैं।
यह साफ़ दिखाता है कि बीजिंग उन्हें पसंद नहीं करता। और शायद इसी कारण, मोदी-शी मुलाक़ात को अहम बनाने के लिए जयशंकर को किनारे रखा गया।
✦ असली मुद्दा क्या है?
भारत ने कभी अपनी संप्रभुता से समझौता नहीं किया।
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रूस से तेल खरीदना जारी रखा।
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चीन को खुलकर चुनौती दी।
संभव है कि इस बार मोदी सरकार ने जानबूझकर यह संकेत दिया हो कि चर्चा मोदी-शी स्तर पर होगी और जयशंकर को रणनीतिक रूप से अलग रखा गया।
✦ भारत की विदेश नीति का बड़ा चित्र
मोदी सरकार की कोशिश साफ़ है—
भारत न तो पूरी तरह अमेरिका के पाले में है, न ही चीन के दबाव में।
???? भारत अब अपनी शर्तों पर दुनिया से बात करता है।
एससीओ समिट में मोदी-शी मुलाक़ात इसका बड़ा उदाहरण है।
जयशंकर की गैरमौजूदगी केवल स्वास्थ्य कारण हो सकती है, लेकिन कूटनीति में कभी-कभी ग़ैरहाज़िरी भी संदेश होती है।
भारत की विदेश नीति आज किसी एक चेहरे या धुरी पर नहीं टिकी।
कभी प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी से, तो कभी जयशंकर की अनुपस्थिति से—भारत अपनी बात दुनिया तक पहुँचाता है।
और यही है नई दिल्ली का संदेश—
???? भारत झुकेगा नहीं… भारत रुकेगा नहीं।
क्योंकि अब दुनिया को आगे बढ़ना है, तो भारत के साथ ही बढ़ना होगा।