Bihar: नीतीश का हिजाब खींचना, पैर छूना: क्या वाकई बीमार हैं CM?

नीतीश का हिजाब खींचना, पैर छूना: क्या वाकई बीमार हैं CM?
नीतीश कुमार का अटपटा व्यवहार, स्वास्थ्य पर सवाल
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Highlights

  • नीतीश कुमार के हिजाब खींचने और पीएम मोदी के पैर छूने जैसे अटपटे व्यवहार चर्चा में।
  • विपक्ष ने नीतीश के मानसिक स्वास्थ्य पर सवाल उठाए और इस्तीफे की मांग की।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि नीतीश कुमार को मेडिकल इश्यू हैं।
  • BJP अपनी राजनीतिक मजबूरियों के चलते नीतीश पर चुप्पी साधे हुए है।

पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Chief Minister Nitish Kumar) के हालिया अटपटे व्यवहार ने उनके स्वास्थ्य पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। RJD (Rashtriya Janata Dal) ने उनकी मानसिक स्थिति पर चिंता जताई है। यह लेख उनके व्यवहार, राजनीतिक हंगामे और BJP (Bharatiya Janata Party) की चुप्पी की पड़ताल करता है।

नीतीश कुमार का अटपटा व्यवहार: एक विस्तृत ब्यौरा

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अजीबोगरीब हरकतें लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं। इन हरकतों ने उनकी तबीयत को लेकर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सार्वजनिक मंचों पर उनका व्यवहार अप्रत्याशित और चौंकाने वाला रहा है।

ये घटनाएं उनके राजनीतिक करियर और सार्वजनिक छवि पर गहरा असर डाल रही हैं, जिससे राजनीतिक गलियारों में हलचल मची हुई है।

हिजाब खींचने की घटना

सबसे ताजा घटना 15 दिसंबर की है, जब पटना में मुख्यमंत्री सचिवालय स्थित 'संवाद' सभागार में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस दौरान नीतीश कुमार एक मुस्लिम महिला आयुष डॉक्टर के चेहरे से हिजाब खींचते हुए देखे गए।

यह घटना नियुक्ति पत्र वितरण समारोह के दौरान हुई, जिसका वीडियो तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। वीडियो में स्पष्ट दिख रहा है कि मुख्यमंत्री महिला के चेहरे से हिजाब हटा रहे हैं।

इस अप्रत्याशित व्यवहार के समय, उनके पीछे खड़े उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी उन्हें रोकने का प्रयास करते दिखे। हालांकि, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय और मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव दीपक कुमार इस दौरान हंसते हुए नजर आए, जिससे स्थिति और भी असहज हो गई।

प्रधानमंत्री मोदी के पैर छूने के प्रयास

यह पहली बार नहीं है जब नीतीश कुमार ने इस तरह का अटपटा व्यवहार किया हो। 20 नवंबर 2025 को, जब उन्होंने रिकॉर्ड 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तो पटना एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को छोड़ने गए थे।

वहां उन्होंने झुककर प्रधानमंत्री के पैर छूकर आशीर्वाद लेने का प्रयास किया, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने तुरंत उन्हें रोक लिया और सीधा किया। यह घटना भी खूब चर्चा में रही।

इससे पहले भी नीतीश कुमार दो बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पैर छूने की कोशिश कर चुके हैं। पहली बार 7 जून 2024 को, जब दिल्ली में लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद NDA की बैठक हुई थी।

दूसरी बार 13 नवंबर 2024 को, जब प्रधानमंत्री मोदी दरभंगा AIIMS के शिलान्यास कार्यक्रम में आए थे। इस दौरान अपना भाषण खत्म कर मुख्यमंत्री अपनी कुर्सी की ओर जा रहे थे, लेकिन बीच में रुककर उन्होंने प्रधानमंत्री के पैर छू लिए थे।

अन्य अटपटी हरकतें

नीतीश कुमार के अटपटे व्यवहार की सूची काफी लंबी है। 20 मार्च 2025 को पटना के एक कार्यक्रम में राष्ट्रगान बजने के दौरान ही वे हंसी-ठिठोली करते दिखे।

उनके प्रधान सचिव दीपक कुमार ने हाथ देकर सावधान मुद्रा में रहने का इशारा किया, तो नीतीश पत्रकारों को प्रणाम करने लगे। यह घटना भी सार्वजनिक रूप से उनकी बदलती मानसिक स्थिति की ओर इशारा करती है।

15 मार्च 2025 को पटना में होली मिलन समारोह के दौरान नीतीश कुमार भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद के पैर छूने के लिए झुके। हालांकि, भाजपा सांसद ने मुख्यमंत्री को रोक दिया।

पास खड़े जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने भी मुख्यमंत्री का हाथ पकड़ा। इसके बाद नीतीश कुमार ने रविशंकर को गले लगा लिया, जबकि नीतीश कुमार रविशंकर प्रसाद से 4 साल बड़े हैं।

30 जनवरी 2025 को पटना में बापू के लिए आयोजित श्रद्धांजलि सभा में भी उन्होंने अजीब व्यवहार किया। महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ताली बजाने लगे, जिस पर तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव ने उन्हें रोका।

30 नवंबर 2024 को विधानसभा के शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन नीतीश कुमार सदन में भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी के ब्रेसलेट से खेलने लगे। मुख्यमंत्री का यह अंदाज देखकर मंत्री अशोक चौधरी भी अपनी हंसी नहीं रोक पाए।

15 अक्टूबर 2024 को गांधी मैदान में दशहरा पर रावण वध समारोह का आयोजन हुआ। इसमें नीतीश ने रावण पर चलाने के लिए दिए गए तीर-धनुष को फेंक दिया, जिससे उपस्थित लोग हैरान रह गए।

21 सितंबर 2024 को नीतीश कुमार मंत्री अशोक चौधरी के कंधे पर सिर रखकर उनसे लिपट गए थे। मुख्यमंत्री ने कहा था- 'हम इनसे बहुत प्रेम करते हैं।' ये सभी घटनाएं उनके बदलते व्यवहार को दर्शाती हैं।

नीतीश कुमार के व्यवहार पर राजनीतिक हंगामा

नीतीश कुमार के इन अटपटे व्यवहारों ने देश की राजनीति में एक बड़ा हंगामा खड़ा कर दिया है। विपक्ष ने उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर सवाल उठाए हैं और उनके इस्तीफे की मांग की है।

कई मुस्लिम संगठनों ने भी हिजाब खींचने की घटना पर कड़ा विरोध जताया है, जिससे राजनीतिक माहौल और भी गरमा गया है।

विपक्ष की कड़ी प्रतिक्रिया

कांग्रेस ने अपने X अकाउंट से वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा, 'बिहार के सबसे बड़े पद पर बैठा हुआ आदमी सरेआम ऐसी हरकत कर रहा है। सोचिए- राज्य में महिलाएं कितनी सुरक्षित होंगी? नीतीश कुमार को इस घटिया हरकत के लिए तुरंत इस्तीफा देना चाहिए। ये घटियापन माफी लायक नहीं है।'

राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने भी X पर वीडियो शेयर करते हुए कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा, 'नीतीश जी को यह क्या हो गया है? मानसिक स्थिति बिल्कुल ही अब दयनीय स्थिति में पहुंच चुकी है।' RJD ने यह भी पूछा- 'नीतीश जी संघी हो गए हैं क्या।'

मुस्लिम संगठनों और नेताओं का विरोध

श्रीनगर की मुस्लिम महिला नेता जायरा वसीम ने सोशल मीडिया पर नीतीश कुमार से बिना शर्त माफी की मांग की। उन्होंने X पर लिखा, 'महिलाओं की गरिमा और मर्यादा कोई खिलौना नहीं हैं, जिससे खिलवाड़ किया जा सके। खासकर सार्वजनिक मंच पर तो बिल्कुल नहीं।'

देवबंदी मौलबी कारी इसहाक़ गोरा ने भी इस घटना की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा, 'इसे देखकर केवल मेरा ही नहीं पूरे देश की जनता का खून खौल उठा होगा। आप एक तरफ महिलाओं के सम्मान की बात करते हैं और दूसरी तरफ एक महिला का अपमान करते दिख रहे हैं। इस मामले में नीतीश कुमार को पूरे देश की महिलाओं से माफी मांगनी होगी।'

समाजवादी पार्टी (सपा) सांसद इकरा हसन ने भी इस घटना को शर्मनाक बताया। उन्होंने कहा, 'शर्मनाक। एक महिला डॉक्टर का हिजाब खींचना उसकी गरिमा और धार्मिक पहचान पर सीधा हमला है। जब राज्य का मुख्यमंत्री ऐसा करे तो महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल उठना लाजिमी है।'

जम्मू-कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (JKPDP) की प्रेसिडेंट महबूबा मुफ्ती ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, 'एक युवती का नकाब खींचते हुए देखकर मुझे गहरा सदमा लगा। ये बुढ़ापे का असर है या फिर मुसलमानों को सार्वजनिक अपमान। नीतीश साहब, शायद अब आपके पद छोड़ने का समय आ गया है।'

क्या नीतीश कुमार वाकई अस्वस्थ हैं? विशेषज्ञों की राय

नीतीश कुमार के लगातार बदलते और अटपटे व्यवहार को देखकर यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या वे वाकई मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं? कई वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक इस मुद्दे पर अपनी राय दे रहे हैं।

उनकी राय में, नीतीश कुमार के साथ कुछ मेडिकल इश्यूज हो सकते हैं, जो उनके सार्वजनिक व्यवहार में परिलक्षित हो रहे हैं।

सीनियर जर्नलिस्ट संतोष सिंह का विश्लेषण

सीनियर जर्नलिस्ट और 'जेपी टू बीजेपी' के लेखक संतोष सिंह इस मामले पर अपनी राय रखते हैं। वे कहते हैं, 'इसमें कोई दो राय नहीं है कि उनके साथ मेडिकल इश्यू है। ऐसा वे पहली बार नहीं कर रहे हैं। इससे पहले भी वह आईएएस अफसर के सिर पर गमला रख चुके हैं।'

संतोष सिंह आगे कहते हैं, 'दिन-प्रतिदिन बढ़ती उम्र के साथ उनके मानसिक स्वास्थ्य का ह्रास हो रहा है। पार्टी और अधिकारी को इस बात को गंभीरता से लेना चाहिए। उनका जितना पब्लिक इंटरेक्शन होगा, उतनी इस तरह की घटनाएं बढ़ेंगी।'

पॉलिटिकल एनालिस्ट प्रवीण बागी का मत

सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एनालिस्ट प्रवीण बागी भी नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर चिंता व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं, 'नीतीश की छवि एक सधे नेता की रही है। वो बहुत सोच-समझकर बोलते रहे हैं। उनके पुराने भाषणों में हनक होती थी।'

बागी आगे बताते हैं, 'अब पब्लिक स्पीच टुकड़ों में देते हैं। अगर लिखा हुआ भाषण नहीं है, तो उन्हें वाक्य पूरा करने में तकलीफ होती है। पिछले कुछ समय से लगातार उनके बदले व्यवहार को देखकर मन में स्वास्थ्य को लेकर कई तरह के सवाल आते हैं। उनके साथ हेल्थ इश्यू तो है।'

जदयू और भाजपा नेताओं का बचाव और सुरक्षा घेरा

नीतीश कुमार के बचाव में उनके कुछ करीबी नेता भी सामने आए हैं। मंत्री जमा खान ने उनकी हिजाब खींचने की घटना का बचाव करते हुए कहा, 'वे किसी को यह महसूस नहीं कराते कि वह बिहार के मुख्यमंत्री हैं। वे उन्हें महसूस कराते हैं कि वह उनके अभिभावक हैं। कल की जो बात लोग कर रहे हैं वह उनकी बेटी जैसी लड़की है। यह स्नेह का भाव है।'

हालांकि, इन घटनाओं के बाद से नीतीश कुमार का सुरक्षा पहरा और भी सख्त कर दिया गया है। हाल के कुछ महीनों में नीतीश कुमार को जदयू और भाजपा नेता घेरे रहते हैं। नीतीश के साथ ज्यादातर समय जदयू नेता विजय कुमार चौधरी दिखते हैं। उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी भी उनके साथ दिखते हैं।

नीतीश कुमार पद क्यों नहीं छोड़ रहे?

नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर उठ रहे सवालों के बावजूद, वे अपने पद से हटने को तैयार नहीं दिख रहे हैं। इसके पीछे दो बड़े कारण बताए जा रहे हैं, जो उनकी राजनीतिक स्थिति और पार्टी की आंतरिक मजबूरियों से जुड़े हैं।

ये कारण उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, भले ही उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंताएं बढ़ रही हों।

करीबियों का स्वार्थ

सीनियर जर्नलिस्ट प्रवीण बागी इस स्थिति पर प्रकाश डालते हैं। वे कहते हैं, 'नीतीश कुमार को कुछ नेताओं और आईएएस अफसरों ने घेर रखा है। वह नहीं चाहते कि नीतीश कुमार हटें। वह उनके साथ रहकर अपनी मनमर्जी चला रहे हैं।'

प्रवीण बागी आगे बताते हैं, 'उनके आसपास रहने वाले नेता और अफसर नीतीश कुमार की इस स्थिति का फायदा उठा रहे हैं। उन्हें पता है कि नीतीश कुमार के हटने के बाद भाजपा सत्ता में आएगी तो उनकी दाल नहीं गलेगी। बिहार के बारे में बन रहे परसेप्शन से इन्हें मतलब नहीं है।'

पार्टी की मजबूरी और नेतृत्व का संकट

जदयू के भीतर नीतीश कुमार के बाद अगला नेता कौन होगा, यह अभी तक तय नहीं हुआ है। पार्टी में नेतृत्व का स्पष्ट अभाव है, जो नीतीश कुमार को पद पर बने रहने के लिए मजबूर कर रहा है।

नीतीश के बाद चार बड़े नेता केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह, राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा, विजय कुमार चौधरी और अशोक चौधरी हैं। इनमें ललन सिंह और विजय चौधरी भूमिहार हैं। संजय झा ब्राह्मण हैं और अशोक चौधरी दलित।

जबकि, जदयू का कोर वोटर कुर्मी-कोईरी और EBC हैं। तीनों समुदायों को मिला लें तो बिहार की कुल आबादी का 43% हैं, जिनमें अकेले EBC आबादी 36% है।

मतलब यह है कि नीतीश के बाद पार्टी के चारों बड़े नेता जदयू के कोर वोट बैंक से नहीं आते। यानी चारों कुर्मी-कोईरी और अति पिछड़ा समीकरण में फिट नहीं बैठते।

इसके अलावा, जदयू में नीतीश कुमार के करीबी नेताओं में आपसी तालमेल नहीं है, जिसके चलते किसी भी स्थिति में नेतृत्व को लेकर विवाद रहेगा।

निशांत कुमार की राजनीतिक एंट्री की तैयारी

इन्हीं कारणों से, नीतीश कुमार की बढ़ती उम्र को देखते हुए उनके बेटे निशांत कुमार को राजनीति में एंट्री कराने की तैयारी की जा रही है। हालांकि, निशांत कुमार अभी पूरी तरह राजनीतिज्ञ नहीं बने हैं।

ऐसे में उनके आने के तुरंत बाद नीतीश कुमार राजनीति से हट जाएंगे, इसकी संभावना बहुत कम है। प्रवीण बागी कहते हैं, 'निशांत को नीतीश कुमार अपनी देखरेख में ट्रेंड करेंगे। वह पहले उनको पार्टी की गतिविधियों में लगाएंगे। एक-दो साल ट्रेनिंग दी जाएगी। उसके बाद पार्टी की कमान सौंप सकते हैं और सरकार में एंट्री दे सकते हैं।'

नीतीश की कथित बीमारी पर भाजपा की चुप्पी क्यों?

नीतीश कुमार के स्वास्थ्य और उनके अटपटे व्यवहार को लेकर उठ रहे सवालों के बावजूद, भाजपा ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है। इस चुप्पी के पीछे कई राजनीतिक मजबूरियां और रणनीतिक कारण हैं, जो भाजपा के बिहार में भविष्य की राजनीति से जुड़े हैं।

भाजपा फिलहाल नीतीश कुमार को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाना चाहती।

भाजपा के पास चेहरे की कमी

सीनियर जर्नलिस्ट प्रियदर्शी रंजन कहते हैं, 'भाजपा अब तक नीतीश कुमार की जूनियर पार्टनर बनकर ही रही है। उसने अपना एक भी ऐसा चेहरा तैयार नहीं किया है, जिसकी पैठ या प्रभाव पूरे राज्य में हो।'

ऐसी स्थिति में राजनीतिक रूप से जागरूक बिहार में भाजपा किसी अनजान चेहरे पर दांव लगाने से बचना चाहेगी। नीतीश कुमार ही उनके लिए सबसे व्यवहार्य विकल्प हैं।

नीतीश का मजबूत वोट शेयर

भाजपा के सामने एक और बड़ी मजबूरी यह है कि बिहार में नीतीश कुमार के पास कम से कम 16-17% वोट शेयर है। उनके पाला बदलने से भी उनके वोट शेयर पर कोई खास असर नहीं पड़ता है।

वह बिहार में कुर्मी, EBC और महादलित समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं। इस समुदाय के लोगों के लिए नीतीश कुमार प्राइड इश्यू हैं। यही वजह है कि नीतीश कुमार को साथ रखना भाजपा की मजबूरी है।

एक्सपर्ट मानते हैं कि बिना नीतीश कुमार की मर्जी से उनका पद से हटाने पर उनके वोटर भड़क सकते हैं। यह रिस्क भाजपा नहीं लेना चाहती, क्योंकि उसे राज्य में अभी लंबी राजनीति करनी है।

नीतीश के पास दूसरा विकल्प

नीतीश कुमार के पास भाजपा के साथ न रहने की स्थिति में भी सरकार बनाने का विकल्प मौजूद है। अबकी बार नीतीश कुमार की पार्टी जदयू 101 सीटों पर चुनाव लड़कर 85 सीटें जीती है।

अगर वह भाजपा से नाता तोड़ेंगे तो उनको सरकार बनाने के लिए 37 विधायकों की जरूरत है। इसके लिए उनको तेजस्वी यादव की राजद, कांग्रेस, ओवैसी की AIMIM और लेफ्ट से हाथ मिलाना पड़ सकता है।

हाल में ओवैसी की पार्टी के विधायकों से मिले भी हैं। नीरज कुमार ने तो दावा भी किया है कि राजद के विधायक हमारे संपर्क में हैं।

फिलहाल राजद के पास 25, कांग्रेस के पास 6, AIMIM के पास 5, लेफ्ट के पास 3 और BSP-IIP के पास 1-1 विधायक हैं। सबको जोड़ने पर 41 होता है। और इसमें जदयू के 85 विधायकों को जोड़ने पर (85+41) 126 होगा। मतलब बहुमत से सिर्फ 4 अधिक।

14 नवंबर की शाम चुनाव के नतीजे के बाद दिल्ली भाजपा कार्यालय में प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यकर्ताओं को संबोधित किया और इसे सुशासन की जीत बताया।

मानसिक अस्वस्थता और पद पर बने रहना: कानूनी पहलू

भारतीय कानून के तहत, कोई भी नेता मानसिक रूप से अस्वस्थ रहकर संवैधानिक पद पर नहीं रह सकता। इसके लिए कुछ स्पष्ट प्रावधान हैं, जो व्यक्ति की मानसिक स्थिति को चुनाव लड़ने या पद पर बने रहने के लिए अयोग्य ठहराते हैं।

इन प्रावधानों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सार्वजनिक पदों पर बैठे व्यक्ति मानसिक रूप से सक्षम और स्थिर हों।

लोक प्रतिनिधित्व कानून 1950 (सेक्शन 16)

लोक प्रतिनिधित्व कानून 1950 के सेक्शन 16 के तहत, मतदाता सूची में उस व्यक्ति का नाम शामिल नहीं किया जाएगा, जिसके बारे में अदालत में साबित हो जाए कि वह मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है। यह कानून नागरिक की बुनियादी राजनीतिक भागीदारी पर रोक लगाता है यदि उसकी मानसिक स्थिति ठीक न हो।

लोक प्रतिनिधित्व कानून 1951 (सेक्शन 4)

लोक प्रतिनिधित्व कानून 1951 का सेक्शन 4 इस बात को और स्पष्ट करता है। इसके तहत, अगर किसी व्यक्ति का नाम मतदाता सूची में नहीं है, तो वह चुनाव नहीं लड़ सकता। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि केवल मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति ही चुनावी प्रक्रिया में भाग ले सकें।

आर्टिकल 191

संविधान का आर्टिकल 191 भी इस संबंध में महत्वपूर्ण है। इसके अनुसार, अगर किसी व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं है और अदालत में यह साबित हो जाता है, तो विधानसभा से उसकी सदस्यता जा सकती है। कोई भी व्यक्ति किसी सदन का सदस्य नहीं हो सकता यदि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ पाया जाता है।

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