Rajasthan: राजस्थान पुलिस को छका रहे शातिर अपराधी: 61 बम धमकियों का नहीं मिला तोड़

राजस्थान पुलिस को छका रहे शातिर अपराधी: 61 बम धमकियों का नहीं मिला तोड़
बम धमकियों से जूझ रही राजस्थान पुलिस
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Highlights

  • राजस्थान में एक साल में 61 से अधिक बम धमकियां मिलीं।
  • अपराधी VPN और अस्थायी ईमेल का उपयोग कर पहचान छिपा रहे हैं।
  • VPN सर्वर विदेश में होने के कारण अपराधियों को ट्रेस करना मुश्किल।
  • राजस्थान हाईकोर्ट की सुरक्षा बढ़ाई गई, IIT प्रशिक्षित साइबर कमांडो कर रहे प्रयास।

जयपुर: राजस्थान पुलिस (Rajasthan Police) पिछले एक साल में मिली 61 से अधिक बम धमकियों का तोड़ ढूंढने में संघर्ष कर रही है। शातिर अपराधी VPN का उपयोग कर अपनी पहचान छिपा रहे हैं, जिससे उन्हें ट्रेस करना मुश्किल हो रहा है।

बीते एक साल में राजस्थान में स्कूल, कॉलेज, कोर्ट, स्टेडियम, अस्पताल, होटल और धार्मिक स्थलों को बम से उड़ाने की 61 से अधिक धमकियां मिल चुकी हैं। ये धमकियां ई-मेल और फोन के जरिए भेजी गईं, जिससे प्रदेश में लगातार हड़कंप मचा रहा।

धमकी देने वालों ने राजस्थान हाईकोर्ट और एसएमएस स्टेडियम जैसे महत्वपूर्ण स्थानों को भी निशाना बनाने की बात कही। हर बार पुलिस को बड़े पैमाने पर सर्च ऑपरेशन चलाना पड़ा, लेकिन कोई बम नहीं मिला।

शातिर अपराधी क्यों नहीं पकड़े जा रहे?

सबसे बड़ा सवाल यही है कि इतनी धमकियां मिलने के बावजूद अपराधी अब तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर क्यों हैं। राजस्थान पुलिस और इंटेलिजेंस एजेंसियां इन बदमाशों को पकड़ने में क्यों बेबस नजर आ रही हैं।

इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए विशेषज्ञों की मदद ली गई, जिन्होंने बताया कि अपराधी आधुनिक तकनीक का सहारा लेकर पुलिस को छका रहे हैं। उनकी तकनीक इतनी जटिल है कि उन्हें ट्रेस करना बेहद मुश्किल हो जाता है।

VPN की मदद से मेल कर रहे बदमाश, ट्रेस करना नहीं आसान

दिल्ली में एक सीनियर आईपीएस अधिकारी ने बताया कि ये धमकी भरे ई-मेल देश के कोने-कोने में आ रहे हैं। इन धमकियों को भेजने के लिए आरोपी वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (VPN) का इस्तेमाल कर रहे हैं।

VPN एक ऐसा टूल है जो उपयोगकर्ता को एक प्राइवेट नेटवर्क बनाने में मदद करता है। भले ही कोई जियो, एयरटेल, बीएसएनएल या किसी भी इंटरनेट सेवा का उपयोग कर रहा हो, VPN उसकी पहचान छिपा देता है।

इसका प्रमुख काम नेटवर्क ट्रैफिक को एन्क्रिप्ट करना है। यह उपयोगकर्ता के आईपी इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस और लोकेशन को छिपा देता है, जिससे उसकी तमाम जानकारियां गुप्त रहती हैं।

ई-मेल आईडी के लिए लोग आमतौर पर जी-मेल, याहू, आउटलुक जैसे डोमेन का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन कुछ सर्वर ऐसे भी हैं जहां कुछ समय के लिए ई-मेल बनाकर उसे आसानी से डिलीट किया जा सकता है।

धमकी भेजने वाले अधिकांश शातिर अपराधी ऐसे ही सर्वर पर फर्जी ई-मेल आईडी बनाते हैं। इसके लिए किसी मोबाइल नंबर, ओटीपी या लोकेशन की जरूरत नहीं पड़ती।

कैसे काम करती है ट्रेसिंग की चुनौती?

जब साइबर एक्सपर्ट टीमें यह जानने की कोशिश करती हैं कि मेल कहां से भेजा गया, तो उन्हें वीपीएन नेटवर्क का आईपी एड्रेस मिलता है। यह आईपी एड्रेस सीधे अपराधी तक नहीं ले जाता।

उदाहरण के लिए, यदि किसी शातिर ने आउटलुक पर फर्जी ई-मेल आईडी बनाई और वीपीएन की आईडी से इंटरनेट चलाया, तो धमकी भेजने के बाद पुलिस आउटलुक के सर्वर तक पहुंचती है।

आउटलुक बताता है कि उसके पास किस आईपी एड्रेस से मेल आईडी की रिक्वेस्ट आई थी। लेकिन जब पुलिस उस आईपी एड्रेस पर जाती है, तो उसे विदेश में चल रहे वीपीएन का आईपी एड्रेस मिलता है।

यह जानकारी कि मेल आईडी किसने बनाई, कहां बैठकर बनाई, या कौनसे मोबाइल, कंप्यूटर या लैपटॉप पर बनाई, वीपीएन नेटवर्क पर नहीं मिलती। जब तक वीपीएन कंपनी पुलिस को उस आईपी एड्रेस की जानकारी नहीं देती, तब तक एजेंसियां मेल करने वाले तक नहीं पहुंच सकतीं।

विदेश में VPN सर्वर, डेटा मिलना आसान नहीं

विशेषज्ञों के अनुसार, वीपीएन सेवा देने वाली कंपनियों के सर्वर अक्सर विदेश में होते हैं। ये कंपनियां कुछ शुल्क लेकर वीपीएन सर्वर प्रदान करती हैं, जिससे फेक मेल भेजने वाला खुद के इंटरनेट पर जाने से पहले उनके सर्वर का उपयोग करता है।

पुलिस या जांच एजेंसी जब मेल करने वाले का पता लगाने के लिए वीपीएन सर्वर पर जाती है, तो वहां उपयोगकर्ता का आईपी एड्रेस छिपा हुआ मिलता है। केवल वीपीएन की आईडी ही दिखाई देती है।

जब तक वीपीएन प्रोवाइडर कंपनी डेटा नहीं देती, तब तक मेल करने वाले की पहचान करना बहुत मुश्किल होता है। इनसे डेटा मंगवाने के लिए कोर्ट के आदेश और केंद्रीय एजेंसियों की मंजूरी लेना आवश्यक होता है।

कई बार देखा गया है कि वीपीएन सर्वर पाकिस्तान या चीन जैसे देशों से चल रहे होते हैं, ऐसे में उनसे डेटा प्राप्त करना और भी कठिन हो जाता है।

साइबर एक्सपर्ट मुकेश चौधरी बताते हैं कि यदि दोनों देशों में म्यूचुअल लीगल असिस्टेंट की संधि होती है, तो वे आपराधिक जांच में एक-दूसरे की मदद करते हैं। हालांकि, इसकी प्रक्रिया काफी लंबी और जटिल होती है।

धमकी मिलने के बाद एजेंसियां क्या करती हैं?

जैसे ही कोई धमकी भरा मेल मिलता है, उसे तत्काल सोशल मीडिया पर ट्रैक करना शुरू कर दिया जाता है। एजेंसियां यह कोशिश करती हैं कि ई-मेल के बारे में कोई और जानकारी सोशल मीडिया से मिल जाए।

वे देखती हैं कि मेल में लिखे गए शब्द हूबहू सोशल मीडिया पर किसी आईपी एड्रेस पर तो नहीं चल रहे हैं। कई बार धमकी देने वाले अलग-अलग प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं, जिससे सुराग मिलने की उम्मीद होती है।

लेकिन पिछले कुछ समय से इस तरीके से भी कोई खास मदद नहीं मिल पाई है। वीपीएन सर्वर से आए धमकी भरे मेल ट्रेस नहीं हो पाते, ऐसे में पुलिस के पास सर्च ऑपरेशन के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं बचता।

IIT प्रशिक्षित साइबर कमांडो कर रहे प्रयास

राजस्थान में साइबर अपराध से निपटने के लिए राजस्थान पुलिस ने अपने साइबर कमांडो तैयार किए हैं। ये 17 कमांडो आईआईटी कानपुर में प्रशिक्षण लेकर पुलिस मुख्यालय में सेवा दे रहे हैं।

यह टीम ऑनलाइन और साइबर फ्रॉड से संबंधित अपराधों पर काम कर रही है। हालांकि, इस तरह की बम धमकियों को लेकर अभी तक कोई मजबूत सिस्टम मौजूद नहीं है।

पुलिस को इसके लिए नए सॉफ्टवेयर की जरूरत है, जिससे उनकी टीम प्रभावी रूप से काम कर सके और इन शातिर अपराधियों को पकड़ सके।

राजस्थान हाईकोर्ट की सुरक्षा बढ़ाई गई

राजस्थान हाईकोर्ट को पिछले चार दिनों से लगातार मेल के जरिए धमकी मिल रही है। जयपुर कमिश्नरेट, एटीएस और पुलिस मुख्यालय की टीम ने हाईकोर्ट में एक बैठक की है।

इस बैठक के परिणामस्वरूप, अब कोर्ट को हर दिन सुबह दो घंटे तक सर्च किया जाएगा। कोर्ट में प्रवेश करने से पहले सभी आगंतुकों की गहन जांच की जाएगी।

यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि कोर्ट के समय में किसी भी प्रकार की धमकी मिलने पर दहशत न फैले और सुरक्षा व्यवस्था मजबूत बनी रहे।

दुनिया में सबसे ज्यादा कहां होता है VPN का इस्तेमाल?

ईस्टर्न यूरोप के कई देशों में वीपीएन का व्यापक उपयोग किया जाता है। विश्व में सबसे अधिक वीपीएन का उपयोग संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और कतर में होता है, क्योंकि वहां इंटरनेट सेवाओं पर कई तरह की पाबंदियां हैं।

लोग अपनी प्राइवेसी बनाए रखने के लिए वहां वीपीएन का अधिक उपयोग करते हैं। सिंगापुर पहला देश है जहां 80 प्रतिशत लोग साइबर सुरक्षा के लिए वीपीएन का उपयोग करते हैं।

अमेरिका, तुर्की, रूस और ब्राजील जैसे देशों में भी वीपीएन का जमकर उपयोग हो रहा है, जो इसकी बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाता है।

जितना महंगा VPN, उतना अधिक सुरक्षित

वीपीएन सेवाएं 4 डॉलर प्रति 30 दिन के हिसाब से मिलना शुरू होती हैं। कोई भी इसे आसानी से डाउनलोड करके उपयोग में ले सकता है।

वीपीएन का महंगा प्लान लेने का फायदा यह है कि यह मिनटों में आपकी नकली लोकेशन को एक देश से दूसरे देश पहुंचा देता है। इससे जांच एजेंसियां आपकी वास्तविक लोकेशन को ट्रेस नहीं कर पातीं, जिससे अपराधी सुरक्षित महसूस करते हैं।

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