Highlights
- भिवाड़ी के कहरानी गांव में अवैध खनन से अरावली की पहाड़ियां टावरनुमा चट्टानों में तब्दील हो गई हैं।
- विशेषज्ञों का अनुमान है कि खनन माफियाओं ने क्षेत्र से एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का खनिज निकाला है।
- अवैध खनन के कारण 50 फीट तक गहरे गड्ढे बने और हादसों में अब तक 15 से ज्यादा लोगों की मौत हुई।
- सुप्रीम कोर्ट की 100 मीटर की नई परिभाषा से अरावली के अस्तित्व पर अब बड़ा खतरा मंडरा रहा है।
अलवर | राजस्थान के भिवाड़ी क्षेत्र में अरावली की पहाड़ियों की जो स्थिति हो गई है वह पर्यावरण प्रेमियों और भविष्य की पीढ़ियों के लिए किसी डरावने सपने से कम नहीं है। दिल्ली और एनसीआर के बेहद नजदीक स्थित कहरानी गांव की पहाड़ियों को देखकर अवैध खनन के भयानक प्रभाव का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। यहां पहाड़ अब लगभग पूरी तरह खत्म हो चुके हैं और उनकी जगह केवल टावर जैसी दिखने वाली नुकीली चट्टानें और विशालकाय गहरे गड्ढे ही शेष बचे हैं। स्थानीय निवासियों का दावा है कि इसी पहाड़ी के पत्थरों को काटकर नोएडा और दिल्ली की बड़ी इमारतों का नया कंस्ट्रक्शन किया गया है।
अवैध खनन का काला कारोबार और आर्थिक नुकसान
पिछले एक दशक में इस क्षेत्र में इतना अधिक अंधाधुंध खनन हुआ है कि कई पहाड़ियों का नामोनिशान मिट गया है। विशेषज्ञों का दावा है कि माफियाओं ने यहां से करीब एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की खनिज संपदा को अवैध रूप से निकालकर बाजार में बेच डाला है। वर्ष 2014 में अलवर के वन विभाग ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी। उस समय की रिपोर्ट में भी 50 हजार करोड़ रुपये से अधिक की वन और खनिज संपदा के नुकसान का स्पष्ट हवाला दिया गया था। दैनिक भास्कर की टीम ने जब ड्रोन के जरिए इन पहाड़ियों का जायजा लिया तो चौंकाने वाली तस्वीरें सामने आईं। पहाड़ के मूल लेवल से भी 50 फीट नीचे तक खुदाई की गई है जिससे वहां अब खतरनाक तालाब बन गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट की नई परिभाषा और पर्यावरण की चिंता
अरावली के संरक्षण को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई के बीच सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अरावली की एक नई परिभाषा को मंजूरी दी है। इस नए नियम के अनुसार अब केवल 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ी को ही अरावली का हिस्सा माना जाएगा। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की 2010 की रिपोर्ट के अनुसार अरावली क्षेत्र की लगभग 12 हजार पहाड़ियों में से केवल 8 प्रतिशत ही 100 मीटर से ऊंची हैं। इसका सीधा मतलब यह है कि कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों पर अब अवैध खनन का खतरा और अधिक बढ़ गया है क्योंकि वे कानूनी सुरक्षा के दायरे से बाहर हो सकती हैं।
खनन के कारण हुए हादसे और स्थानीय प्रभाव
कहरानी और आसपास के गांवों जैसे जोड़िया कहरानी बूडली और चौपानकी के निवासियों का कहना है कि इस अवैध कारोबार ने न केवल प्रकृति को उजाड़ा बल्कि कई निर्दोष जिंदगियां भी छीन ली हैं। स्थानीय चरवाहों के अनुसार अवैध खनन के दौरान हुए हादसों और खुदाई के बाद बने गहरे गड्ढों में डूबने से अब तक 15 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। ग्रामीणों का कहना है कि जब खनन अपने चरम पर था तब यहां 24 घंटे अनगिनत डंपरों का शोर रहता था और धूल के गुबार से सांस लेना दूभर था। अवैध खनन बंद होने से अब शांति तो है लेकिन पर्यावरण को जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई नामुमकिन है।
प्रशासनिक अनदेखी और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप
क्षेत्र के बुजुर्ग किसानों का आरोप है कि पिछली सरकारों के कार्यकाल में पुलिस और प्रशासन की मिलीभगत से यह काला खेल बेखौफ चलता रहा। ग्रामीणों का दावा है कि एक डंपर को सुरक्षित पास कराने के लिए पुलिस प्रशासन द्वारा निश्चित मासिक वसूली की जाती थी। साल 2012 के बाद जब सरकार ने कुछ सख्ती दिखाई और ईमानदार अधिकारियों ने एक्शन लिया तो करीब 200 से अधिक मुकदमे दर्ज किए गए थे। हालांकि माफिया के दबाव में अक्सर कड़े अधिकारियों का तबादला कर दिया जाता था जिससे अवैध गतिविधियों को फिर से फलने-फूलने का मौका मिल जाता था।
बेरोजगारी और भविष्य की बड़ी चुनौतियां
अवैध खनन पर पूरी तरह रोक लगने के बाद अब स्थानीय युवाओं के सामने रोजगार का बड़ा संकट खड़ा हो गया है। चौपानकी और आसपास के इलाकों के युवाओं का कहना है कि यहां स्थापित फैक्ट्रियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता नहीं दी जाती है जिससे बेरोजगारी बढ़ रही है। वे सरकार से मांग कर रहे हैं कि पर्यावरण नियमों का पालन करते हुए वैध तरीके से खनन की लीज जारी की जाए ताकि लोगों को वैध रोजगार मिल सके। अरावली का यह क्षेत्र न केवल दिल्ली-एनसीआर के लिए फेफड़ों का काम करता है बल्कि यह मरुस्थल के विस्तार को रोकने में भी सहायक है। ऐसे में इन पहाड़ियों का अस्तित्व बचाना बेहद जरूरी है।
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