Sirohi Rajasthan: आशुतोष आचार्य का कुर्सी प्रेम: सिरोही-माउंट आबू में विवादों से घिरा कार्यकाल

आशुतोष आचार्य का कुर्सी प्रेम: सिरोही-माउंट आबू में विवादों से घिरा कार्यकाल
आशुतोष आचार्य का कुर्सी प्रेम और विवाद
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Highlights

  • आशुतोष आचार्य तीसरी बार सिरोही नगरपरिषद आयुक्त बने।
  • उन्हें माउंट आबू नगरपालिका का भी दूसरी बार चार्ज मिला है।
  • उनका कार्यकाल एलईडी घोटाले और एसीबी ट्रैप जैसे विवादों से घिरा रहा है।
  • सरकार की कार्यशैली पर भी सवाल उठ रहे हैं, मंत्री की मेहरबानी पर आरोप।

सिरोही: सिरोही (Sirohi) नगर परिषद में राजस्व अधिकारी आशुतोष आचार्य (Ashutosh Acharya) का आयुक्त (Commissioner) कुर्सी प्रेम चर्चा में है। वे तीसरी बार सिरोही आयुक्त बने हैं और माउंट आबू (Mount Abu) का भी दूसरी बार चार्ज मिला है। उनका कार्यकाल विवादों से घिरा रहा है, जिससे सरकार (Government) की कार्यशैली पर भी सवाल उठ रहे हैं।

नगर परिषद में राजस्व अधिकारी आशुतोष आचार्य का आयुक्त कुर्सी प्रेम किसी से छिपा नहीं है। पिछले छह सालों के कार्यकाल में वे बतौर आयुक्त तीन बार एपीओ हो चुके हैं। इसके बावजूद वे कुर्सी से अपना मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं।

सिरोही नगर परिषद में उन्हें दो बार 15-15 दिन के लिए कार्यवाहक आयुक्त का चार्ज दिया गया था। इसके बाद माउंट आबू आयुक्त शिवपाल सिंह राजपुरोहित को यहां आयुक्त लगाया गया।

लेकिन, आशुतोष आचार्य का कुर्सी प्रेम देखिए, वे जुगाड़ बिठाकर शिवगंज नगरपालिका ईओ का चार्ज ले आए। शिवगंज में ईओ लगते ही वे सिरोही नगर परिषद में राजस्व अधिकारी के मूल पद पर लौट आए।

इस बीच शिवपाल सिंह राजपुरोहित के एपीओ होने के बाद आशुतोष आचार्य फिर से सिरोही नगर परिषद के तीसरी बार आयुक्त बन गए। इतना ही नहीं, दो दिन पहले उन्हें माउंट आबू नगरपालिका आयुक्त का भी चार्ज मिल गया।

राजस्व अधिकारी होते हुए भी वे दो-दो नगर निकायों में बतौर आयुक्त कार्यालय में दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने और महत्वपूर्ण कामकाज संभालने में व्यस्त हैं। यह स्थिति कई सवाल खड़े करती है।

आचार्य का विवादों से घिरा कार्यकाल

आशुतोष आचार्य का कार्यकाल हमेशा विवादों से घिरा रहा है। सादड़ी नगरपालिका में अधिशाषी अधिकारी रहते हुए उनका नाम एलईडी घोटाले से जोड़ा गया था।

वहीं, भीनमाल में राजस्व अधिकारी के पद पर रहते हुए भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने उन्हें रिश्वत लेते हुए ट्रैप किया था। एसीबी की कार्रवाई में आचार्य को 4 लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया था।

हालांकि, भीनमाल एसीबी ट्रैप मामले में खुद को निर्दोष बताते हुए आचार्य ने कहा है कि उन्हें सभी पुराने विवादों में क्लीन चिट मिल चुकी है। लेकिन इन घटनाओं ने उनके कार्यकाल पर दाग लगाया है।

पाली में तीन बार एपीओ होने का रिकॉर्ड

आचार्य के कार्यकाल की एक और बड़ी विशेषता रही है कि पाली में तीन बार आयुक्त रहते हुए उन्हें एपीओ किया गया। नवंबर 2017 में पूर्व आयुक्त इंद्रसिंह राठौड़ के तबादले के बाद आचार्य को आयुक्त पद पर लगाया गया था।

लेकिन जल्द ही यह पद उनसे छिन गया। इसके बाद अगस्त 2018 में फिर से उन्हें आयुक्त बनाया गया, लेकिन सितंबर 2019 में कांग्रेस नेताओं की शिकायतों के चलते फिर से एपीओ कर दिया गया।

हालांकि, पांच दिन बाद ही एपीओ आदेश रद्द कर आचार्य को पुन: आयुक्त पद पर बिठा दिया गया। सितंबर 2020 में तीसरी बार उन्हें एपीओ किया गया, जो उनके कार्यकाल की अस्थिरता को दर्शाता है।

माउंट आबू में दूसरी बार आयुक्त की कमान

प्रदेश की सबसे धनी माउंट आबू नगरपालिका में भी आचार्य का जुगाड़ चर्चा में रहा है। यहां पहले से नियुक्त आयुक्त संजय देवल को महज 24 घंटे में हटाकर आचार्य ने अपना कार्यभार संभाला था।

देवल के हटते ही नगर परिषद के हितैषी भी आचार्य का स्वागत करने में जुट गए थे। इस कुर्सी विवाद के बाद अब दूसरी बार फिर से वे माउंट आबू नगरपालिका के आयुक्त बन गए हैं।

माउंट आबू नगरपालिका आयुक्त शिवपाल सिंह राजपुरोहित के एपीओ होने के बाद यह पद खाली था। आशुतोष आचार्य यहां भी जुगाड़ बिठाने में कामयाब हो गए, जिससे उनकी राजनीतिक पहुंच पर सवाल उठते हैं।

सरकार की कार्यशैली पर उठते सवाल और राजनीतिक मेहरबानी

आशुतोष आचार्य को सिरोही नगर परिषद में बार-बार आयुक्त बनाने पर सरकार की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। स्थानीय विधायक व राज्यमंत्री ओटाराम देवासी की मेहरबानी के बिना नियम विरूद्ध एक राजस्व अधिकारी को आयुक्त का चार्ज दिलाना संभव नहीं है।

इस मामले में पूर्व विधायक संयम लोढ़ा ने भी कलेक्टर अल्पा चौधरी को अवगत कराते हुए राजपत्रित अधिकारी को ही आयुक्त लगाने का आग्रह किया था। आचार्य को तीसरी बार आयुक्त का कार्यभार दिया गया है, जो नियमों की अनदेखी प्रतीत होती है।

आचार्य की कार्यशैली को लेकर सिरोही के पार्षदों में भी असंतोष है। नगर परिषद की बोर्ड बैठकें बुलाने के बावजूद आचार्य की अनुपस्थिति चर्चाओं में रही है, जिससे विकास कार्यों पर असर पड़ रहा है।

यह स्थिति स्थानीय प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है। जनता के हित में इन नियुक्तियों की निष्पक्ष जांच आवश्यक है।

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