Highlights
- बच्चों और युवाओं में बढ़ती आक्रामक प्रवृत्ति पर चिंता।
- स्कूलों में चाकूबाजी और घर में हिंसा की घटनाओं का जिक्र।
- नैतिक शिक्षा और जीवन मूल्यों को पुनः अनिवार्य करने की अपील।
- मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और सोशल मीडिया निगरानी का सुझाव।
नई दिल्ली: राजस्थान (Rajasthan) के बीजेपी अध्यक्ष (BJP President) मदन राठौड़ (Madan Rathore) ने राज्यसभा (Rajya Sabha) में बच्चों व युवाओं में बढ़ती हिंसा पर चिंता जताई। उन्होंने नैतिक शिक्षा व मानसिक स्वास्थ्य पर जोर दिया।
राज्यसभा सांसद मदन राठौड़ ने सभापति महोदय के माध्यम से सरकार का ध्यान एक अत्यंत गंभीर और चिंताजनक सामाजिक समस्या की ओर आकर्षित किया है। उन्होंने बच्चों और युवाओं में बढ़ती आक्रामक प्रवृत्ति तथा हिंसात्मक व्यवहार पर गहरी चिंता व्यक्त की। राठौड़ ने इस बात पर जोर दिया कि यह समस्या अब केवल महानगरों तक सीमित नहीं है, बल्कि छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में भी तेजी से फैल रही है।
विद्यालयों में बढ़ती हिंसा और भयावह उदाहरण
राठौड़ ने अपने संबोधन में कहा कि आज विद्यालय जैसे सुरक्षित माने जाने वाले स्थानों में भी छात्र एक-दूसरे पर चाकू से हमला कर रहे हैं। मारपीट की घटनाएं आम होती जा रही हैं, जो समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी है। उन्होंने हाल ही में एक स्कूल में एक छात्र द्वारा अपने सहपाठी पर चाकू से हमला करने की घटना का जिक्र किया, जिसने पूरे देश को झकझोर दिया था।
देशभर से सामने आए चिंताजनक मामले
देशभर में ऐसे कई उदाहरण सामने आ रहे हैं, जो इस समस्या की गंभीरता को दर्शाते हैं। राठौड़ ने गाजियाबाद की एक घटना का उल्लेख किया, जहां एक छात्र ने परीक्षा में कम अंक आने पर स्कूल में तोड़फोड़ कर दी। इसी तरह, मुंबई में एक 15 वर्षीय छात्र ने ऑनलाइन गेम न खेलने देने पर अपने पिता पर हाथ तक उठा दिया। ये घटनाएं बताती हैं कि बच्चों और युवाओं में धैर्य और सहनशीलता की कमी किस हद तक बढ़ गई है।
आक्रामक व्यवहार के मूल कारण
सांसद राठौड़ ने इस समस्या के पीछे कई गहरे कारणों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने परिवार में संस्कारों की कमी को एक प्रमुख कारक बताया, जहां बच्चों को नैतिक मूल्यों की शिक्षा नहीं मिल पा रही है। इसके साथ ही, सामाजिक और डिजिटल मीडिया से आने वाली हिंसात्मक सामग्री भी बच्चों के मन पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है।
नैतिक शिक्षा का अभाव, मानसिक स्वास्थ्य के प्रति उपेक्षा और माता-पिता के बच्चों से संवादहीनता भी इस प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रही है। जब बच्चे अपनी समस्याओं और भावनाओं को साझा नहीं कर पाते, तो वे अंदर ही अंदर कुंठित होते जाते हैं और अंततः उनका व्यवहार हिंसक हो जाता है। यह महज एक सामाजिक चिंता ही नहीं, बल्कि आने वाले भविष्य के लिए एक गंभीर चेतावनी है।
भविष्य की पीढ़ी के लिए गंभीर चेतावनी
राठौड़ ने आगाह किया कि यदि हम आज नैतिक शिक्षा, मानसिक स्वास्थ्य और परिवार की भूमिका को लेकर सजग नहीं हुए, तो आने वाली पीढ़ी एक संवेदनहीन समाज की ओर बढ़ती जाएगी। उन्होंने कहा कि एक स्वस्थ और जिम्मेदार समाज के निर्माण के लिए इन मुद्दों पर तत्काल ध्यान देना आवश्यक है।
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समस्या के समाधान हेतु महत्वपूर्ण सुझाव
इस गंभीर समस्या के समाधान हेतु मदन राठौड़ ने सरकार से कुछ विनम्र अपील की। उन्होंने सुझाव दिया कि विद्यालयों में नैतिक शिक्षा और जीवन मूल्यों को पुनः अनिवार्य किया जाए, ताकि बच्चों को बचपन से ही सही-गलत का ज्ञान हो सके।
इसके अतिरिक्त, शिक्षकों और अभिभावकों के लिए संवेदनशीलता कार्यशालाएं आयोजित की जानी चाहिए, ताकि वे बच्चों के व्यवहार को समझ सकें और उनसे बेहतर संवाद स्थापित कर सकें। छात्रों के लिए मानसिक स्वास्थ्य परामर्श सेवाएं उपलब्ध कराना भी अत्यंत आवश्यक है, ताकि वे अपनी मानसिक समस्याओं का समाधान पा सकें।
राठौड़ ने सोशल मीडिया और ऑनलाइन गेमिंग कंटेंट्स पर निगरानी और उचित मार्गदर्शन सुनिश्चित करने की भी मांग की, ताकि बच्चों को हिंसात्मक और अनुपयुक्त सामग्री से बचाया जा सके। इन उपायों से ही बच्चों और युवाओं में बढ़ती आक्रामक प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जा सकता है और एक संवेदनशील व जिम्मेदार पीढ़ी का निर्माण किया जा सकता है।
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