Highlights
- दोनों पार्टियों के लिए जरूरी है गुर्जर वोटबैंक
- क्या भाजपा से गिले शिकवे दूर कर पाएगा गुर्जर समाज ?
- कौन है गुर्जर समाज के क्षत्रप ?
- मुख्यमंत्री बनाने की उम्मीद में गुर्जर समाज एकछत्र कांग्रेस के साथ जुड़ गया लेकिन वहां भी गुर्जरो की ख्वाहिशे अधूरी रही
देवनारायण जयंती : राजस्थान में भगवान् देवनारायण दिलाएंगे वोट, दोनों पार्टियां सियासी आराधना में लगी
राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने कल शाम एक आदेश जारी कर गुर्जर समाज के लोक देवता भगवन देवनारायण की जयंती पर सरकारी अवकाश की घोषणा कर दी.
सरकार के इस आदेश के बाद राजस्थान भर के गुर्जर समाज ने सरकार के इस निर्णय का स्वागत किया और अपनी ख़ुशी जाहिर की.
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने यह फैसला ठीक उस वक्त लिया है जब इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देवनारायण जयंती समारोह में शामिल होने के लिए भीलवाड़ा के आसींद आ रहे है.
दोनों पार्टियों के लिए जरूरी है गुर्जर वोटबैंक
गौरतलब है कि राजस्थान के पिछले विधानसभा चुनाव में गुर्जर समाज ने सचिन पायलट के नाम पर कांग्रेस को जबरदस्त वोट दिए और कांग्रेस की सरकार बनवाने में गुर्जर समाज की बहुत बड़ी भूमिका थी लेकिन सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने के कारण गुर्जर समाज कांग्रेस से नाराज हो गया और गहलोत - पायलट की अदावत ने इसे और ज्यादा हवा दी.
ऐसे में राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव में यह बड़ा सवाल है कि गुर्जर समाज आखिर किसके साथ जाने वाला है. इस बड़े वोटबैंक पर टकटकी लगाए बैठी भाजपा ने गुर्जर समाज को साधने की कोशिश शुरू कर दी है और उसी कारण खुद नरेंद्र मोदी आज भीलवाड़ा आ रहे है.
लेकिन कल शाम एक बड़ा फैसला लेकर अशोक गहलोत ने नया पेज फंसा दिया है क्योकि देवनारायण जयंती पर छुट्टी की मांग को लेकर पहले भी गुर्जर समाज के नेता सरकार को पत्र लिख चुके है और लगातार इसके लिए मांग करते रहे है. इसलिए कहा जा सकता है कि राजनीति के माहिर खिलाडी अशोक गहलोत ने ठीक वक्त पर सही निशाना लगा दिया है.
क्या भाजपा से गिले शिकवे दूर कर पाएगा गुर्जर समाज ?
अगर राजस्थान की राजनीति को इतिहास में जाकर थोड़ा कुरेदा जाए तो पता चलता है कि गुर्जर समाज एक शिफ्टिंग वोटबैंक रहा है और दोनों ही राजनितिक पार्टियों में समय समय पर शिफ्ट होता रह है.
वैसे तो गुर्जर समाज को परम्परागत भाजपा का ही वोटबैंक मन जाता है लेकिन कांग्रेस के दिग्गज नेता राजेश पायलट के नाम पर यह समाज कांग्रेस में शिफ्ट हो गया.
फिर वसुंधरा राजे के गुर्जरों की समधन वाले नारे से जुड़कर यह समाज भाजपा के लिए भी बहुत फायदेमंद साबित हुआ. लेकिन गुर्जर आरक्षण आंदोलन के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से गुर्जर समाज खफा हो गया और उसी समय सचिन पायलट एक बड़े नेता बनकर उभरे.
पिछले विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की उम्मीद में गुर्जर समाज एकछत्र कांग्रेस के साथ जुड़ गया लेकिन वहां भी गुर्जरों की ख्वाहिशे अधूरी रही और अब इस समाज में एक बेचैनी है जिसे जिसे साधने की कोशिश दोनों पार्टियों ने शुरू कर दी है.
कौन है गुर्जर समाज के क्षत्रप ?
राजस्थान में बड़े वोटबैंक वाला यह समाज शुरू से क्षत्रपों के नाम पर वोट देता रहा है. राजेश पायलट एक दौर में इस समाज के बड़े क्षत्रप रहे है और उनके लिए आज भी इस समाज में बहुत शृद्धा और सम्मान की भावना है.
राजेश पायलट की विरासत को लेकर चल रहे उनके बेटे सचिन पायलट फ़िलहाल गुर्जर समाज के सबसे बड़े क्षत्रप है और उनकी एक आवाज पर यह समाज लामबंध हो जाता है.
सचिन पायलट के लिए गुर्जर समाज के युवाओ में लोकप्रियता इस कदर की है कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाने की मांग ले लिए बहुत से युवाओ ने सोनिया गाँधी को अपने खून से खत लिखा था.
राजस्थान में इस समाज का दूसरा बड़ा क्षत्रप बैंसला परिवार है जिसके मुखिया गुर्जर आरक्षण आंदोलन के प्रणेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला थे.
कर्नल बैंसला को लेकर गुर्जर समाज में एक अलग ही तरह की शृद्धा है और गुर्जर समाज उन्हें एक सामाजिक परिवर्तन का दूत मानता है.
खुद भी राजनीति में हाथ आजमा चुके थे लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई. उनके निधन के बाद उनके बेटे विजय बैंसला अपने पिता की विरासत को संभालने का काम कर रहे है.
विजय बैंसला की राजनितिक महत्वकांक्षाए खुलकर सामने आ जाती है. राजनितिक चर्चाओं के बीच तो यह भी बताया जाता है कि विजय बैंसला भविष्य में सचिन पायलट का बड़ा नुक्सान कर सकते है.
लगातार उभर रहे हैं अशोक चांदना
राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री अशोक चांदना अशोक गहलोत कैम्प के विधायक मने जाते है और बीते पांच साल में उनका प्रभाव बहुत बढा है.
अशोक चांदना अभी युवा है और हाड़ौती क्षेत्र के प्रभावी नेता माने जाते है.
एक तरफ सचिन पायलट और बैंसला परिवार की पकड़ राजस्थान भर के गुर्जर समाज पर है तो अशोक चांदना फिलहाल अपने क्षेत्र में ही प्रभाव ज़माने में सफल हो पाए है.
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अशोक चांदना आने वाले समय में गुर्जर समाज के बड़े क्षत्रप हो सकते है.
अलग—अलग देवताओं की आराधना में जुटने का यह तरीका पहली बार नहीं हैं। वसुन्धरा राजे चाहे परिवर्तन यात्रा हो या सुराज संकल्प यात्रा।
हर बार दैवीय आराधना से कैम्पेन की शुरूआत करती है। यही नहीं सचिन पायलट भी किसानों के आयोजन में खरनाल के तेजा मंदिर, हनुमानगढ़ के काली मंदिर आदि में धोक लगा चुके हैं।