Highlights
- भजनलाल सरकार एकल पट्टा मामले में मुकदमा चलाना चाहती है।
- एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने हाईकोर्ट को बताया कि पिछली सरकार का फैसला जनहित में नहीं था।
- मामले में तीन पूर्व अधिकारी और गणपति कंस्ट्रक्शन के प्रोपराइटर आरोपी हैं।
- सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को मामले की सुनवाई खुद करने का निर्देश दिया था।
जयपुर: भजनलाल सरकार (Bhajanlal Sarkar) एकल पट्टा मामले में मुकदमा चलाना चाहती है, जिसकी जानकारी आज हाईकोर्ट (High Court) में दी गई। पिछली गहलोत सरकार (Gehlot Sarkar) का मामला वापस लेने का फैसला सार्वजनिक हित में नहीं था।
राजस्थान में भजनलाल सरकार ने एकल पट्टा मामले में मुकदमा चलाने की अपनी मंशा साफ कर दी है। सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू और एएजी शिव मंगल शर्मा ने कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एसपी शर्मा की एकलपीठ में पैरवी करते हुए यह जानकारी दी। उन्होंने स्पष्ट किया कि पिछली गहलोत सरकार द्वारा इस मामले को वापस लेने का निर्णय सार्वजनिक हित में नहीं था और आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाना बेहद जरूरी है।
भजनलाल सरकार का रुख: मुकदमा चलाना जरूरी
सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि वे अभियोजन वापसी के 19 जनवरी 2021 के आवेदन को वापस लेना चाहते हैं। इसके लिए जल्द ही ट्रायल कोर्ट में एक आवेदन प्रस्तुत किया जाएगा। इस संबंध में सरकार की ओर से शुक्रवार को हाईकोर्ट में एक कॉपी भी पेश की गई। हाईकोर्ट ने इस पर निर्देश दिए कि आवेदन को रजिस्ट्री में प्रस्तुत किया जाए और उसकी कॉपी सभी आरोपियों को भी दी जाए। इसके साथ ही मामले की अगली सुनवाई जनवरी के दूसरे सप्ताह तक के लिए टाल दी गई है।
क्या है एकल पट्टा मामला?
यह मामला जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) द्वारा 29 जून 2011 को गणपति कंस्ट्रक्शन के प्रोपराइटर शैलेंद्र गर्ग के नाम एकल पट्टा जारी करने से जुड़ा है। इस मामले में परिवादी रामशरण सिंह ने वर्ष 2013 में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) में शिकायत दर्ज कराई थी। एसीबी की जांच के बाद तत्कालीन एसीएस जीएस संधू, डिप्टी सचिव निष्काम दिवाकर, जेडीए के जोन उपायुक्त ओंकारमल सैनी सहित शैलेंद्र गर्ग और दो अन्य आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था।
एसीबी ने इन सभी आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में चालान पेश किया था। मामले की गंभीरता को देखते हुए विभाग ने 25 मई 2013 को इस एकल पट्टे को निरस्त कर दिया था। यह कार्रवाई भ्रष्टाचार के आरोपों के मद्देनजर की गई थी, जिसमें कई वरिष्ठ अधिकारियों के नाम सामने आए थे।
गहलोत सरकार का यू-टर्न और कोर्ट का फैसला
प्रदेश में सरकार बदलने के बाद, तत्कालीन गहलोत सरकार के कार्यकाल में एसीबी ने इस मामले में तीन क्लोजर रिपोर्ट कोर्ट में पेश की थीं। इन तीनों रिपोर्टों में सरकार ने पूर्व आईएएस जीएस संधू, पूर्व आरएएस निष्काम दिवाकर और ओंकारमल सैनी को क्लीन चिट दे दी थी। इसके बाद, साल 2021 में गहलोत सरकार ने तीनों अधिकारियों के खिलाफ मामला वापस लेने के लिए एसीबी कोर्ट में एक आवेदन दायर कर दिया था।
हालांकि, एसीबी कोर्ट ने सरकार के इस आवेदन को खारिज कर दिया था। इसके बाद, तीनों अधिकारियों ने एसीबी कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 17 जनवरी 2023 को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के संधू, दिवाकर और सैनी के खिलाफ केस वापस लेने के फैसले को सही मान लिया था, जिससे अधिकारियों को बड़ी राहत मिली थी।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ अशोक पाठक ने सुप्रीम कोर्ट में एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए 5 नवंबर 2024 को हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को इस मामले की सुनवाई स्वयं करने का निर्देश दिया, जिसके बाद से हाईकोर्ट इस मामले पर सुनवाई कर रही है। अब भजनलाल सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह इस मामले में आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाना चाहती है, जिससे यह मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है।
राजनीति