करौली-धौलपुर में एनीमिया पर संसद में हंगामा: करौली-धौलपुर में एनीमिया: सांसद जाटव ने उठाए सवाल, मंत्री का जवाब

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Highlights

  • सांसद भजनलाल जाटव ने करौली-धौलपुर में बच्चों में एनीमिया की गंभीर स्थिति पर चिंता जताई।
  • जाटव ने कुपोषण रोकने की योजनाओं के लिए स्वीकृत और खर्च हुई राशि का ब्यौरा मांगा।
  • स्वास्थ्य राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल ने मल्टी-फैक्टोरियल समस्या बताते हुए विस्तृत जानकारी का आश्वासन दिया।
  • सांसद ने आंगनबाड़ी केंद्रों और स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली पर भी सरकार को घेरा।

नई दिल्ली: लोकसभा में करौली-धौलपुर (Karauli-Dholpur) के सांसद भजनलाल जाटव (Bhajanlal Jatav) ने अपने क्षेत्र में बच्चों में एनीमिया (Anemia) और कुपोषण (Malnutrition) का मुद्दा उठाया। उन्होंने सरकार पर आंकड़े छिपाने का आरोप लगाया और मंत्री अनुप्रिया पटेल (Anupriya Patel) से फंड और योजनाओं पर सवाल किए।

संसद का सत्र चल रहा है और देश के कोने-कोने से जन प्रतिनिधि अपने क्षेत्रों की समस्याओं को सदन में उठा रहे हैं। इसी कड़ी में राजस्थान के करौली-धौलपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद भजनलाल जाटव ने एक बेहद गंभीर और संवेदनशील मुद्दे पर सरकार का ध्यान आकर्षित किया। यह मुद्दा है बच्चों में व्याप्त एनीमिया और कुपोषण का, जो उनके भविष्य को सीधे तौर पर प्रभावित करता है।

सांसद भजनलाल जाटव ने उठाए गंभीर सवाल

सांसद भजनलाल जाटव ने लोकसभा में अपने क्षेत्र की स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने सदन को बताया कि करौली-धौलपुर में बच्चों में एनीमिया की दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है। उनके अनुसार, 'हर दूसरे बच्चे के अंदर एनीमिया होता है' और उनके क्षेत्र में यह आंकड़ा और भी भयावह है। जाटव ने आरोप लगाया कि सरकार ने इन आंकड़ों को छिपाने का प्रयास किया है, जिससे समस्या की गंभीरता कम न लगे।

उन्होंने सीधे तौर पर मंत्री महोदय से प्रश्न किया कि कुपोषण कम करने के लिए जो योजनाएं चलाई जा रही हैं, उनके तहत पिछले तीन वर्षों में करौली और धौलपुर जिलों में कितनी राशि स्वीकृत की गई और वास्तव में कितनी राशि खर्च हुई? इसके साथ ही, उन्होंने यह भी जानना चाहा कि क्या सरकार इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए बजट बढ़ाने पर विचार कर रही है?

स्वास्थ्य राज्यमंत्री का प्रारंभिक जवाब

सांसद के इन तीखे सवालों का जवाब देने के लिए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल सामने आईं। उन्होंने स्वीकार किया कि माननीय सदस्य ने करौली और धौलपुर जिलों में कुपोषण के संबंध में किए जा रहे प्रयासों और धनराशि के बारे में जानकारी मांगी है।

हालांकि, मंत्री पटेल ने तुरंत आंकड़े उपलब्ध न होने की बात कही। उन्होंने स्पष्ट किया कि धनराशि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत राज्य सरकारों से प्राप्त प्रस्तावों के आधार पर स्वीकृत की जाती है। उन्होंने आश्वासन दिया कि वे इन विशिष्ट जिलों के संबंध में स्वीकृत धनराशि की जानकारी बाद में सदस्य को उपलब्ध करा देंगी।

सांसद जाटव का पलटवार: 'आंकड़े क्यों छिपाए?'

मंत्री के जवाब से असंतुष्ट, सांसद भजनलाल जाटव ने अपनी बात फिर से रखी। उन्होंने मंत्री के NHM के तहत धनराशि स्वीकृत होने के तर्क पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि यह NHM के तहत आता है, तो कम से कम राजस्थान राज्य को हस्तांतरित कुल राशि का ही ब्यौरा दे दिया जाए।

जाटव ने अपने पहले के आरोप को दोहराया कि राष्ट्रीय औसत दर की तुलना में करौली-धौलपुर में एनीमिया की दर कई प्रतिशत ज्यादा है, लेकिन इस आंकड़े को छिपाया गया है। उन्होंने कहा, 'आप यह सोचिए जब 10 योजनाएं आपने गिना दीं और बजट आपको पता नहीं कि भाई कितनी योजनाओं पे आपने बजट खर्च किया है, तो कैसे मूलभूत सुविधाओं को उन बच्चों को कुपोषण रोकने के लिए हम उपाय करेंगे?' यह सवाल सरकार की योजनाओं की प्रभावशीलता पर सीधा प्रहार था।

पिछड़े क्षेत्रों की बदहाली का मुद्दा

सांसद ने अपने क्षेत्र की एक और महत्वपूर्ण विशेषता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि करौली-धौलपुर क्षेत्र अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति बहुल है, जो कि पिछड़े और आदिवासी क्षेत्रों की श्रेणी में आता है। इन क्षेत्रों में कुपोषण की दर सामान्य से भी अधिक होती है, जिसके लिए सरकार को एक विशेष और अधिक प्रभावी रणनीति बनाने की आवश्यकता है।

उन्होंने जमीनी हकीकत बयां करते हुए कहा कि योजनाओं में आंगनबाड़ियों का जिक्र तो है, लेकिन उनकी हालत जर्जर है। नई आंगनबाड़ियां खुली नहीं हैं और जहां हैं, वहां मूलभूत मेडिकल सुविधाएं नदारद हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) पर डॉक्टर नहीं हैं, उप-स्वास्थ्य केंद्रों पर कंपाउंडर, जीएनएम (GNM) और एएनएम (ANM) जैसे स्वास्थ्यकर्मी नहीं हैं, और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHC) पर भी डॉक्टरों की कमी है। ऐसे में, जब जांच ही नहीं हो पाएगी, तो योजनाएं धरातल पर कैसे उतरेंगी और बच्चों को कुपोषण से कैसे बचाया जाएगा?

राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल का विस्तृत जवाब

सांसद जाटव के विस्तृत और गंभीर आरोपों के बाद, राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल ने एक बार फिर जवाब दिया। उन्होंने सबसे पहले यह स्पष्ट किया कि कुपोषण (माल न्यूट्रिशन) एक बहुआयामी (मल्टी-डायमेंशनल) और बहु-कारकीय (मल्टी-फैक्टोरियल) मुद्दा है। इसका मतलब है कि यह केवल एक विभाग या मंत्रालय की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि इसमें सरकार के कई विभाग और मंत्रालय मिलकर काम करते हैं।

उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ-साथ महिला एवं बाल विकास मंत्रालय भी इस दिशा में सक्रिय रूप से कार्य करता है। जहां तक आंगनबाड़ियों की स्थापना और उनकी संख्या में वृद्धि का प्रश्न है, यह महिला और बाल विकास मंत्रालय के दायरे में आता है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रयास और डिजिटल हस्तक्षेप

स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रयासों पर प्रकाश डालते हुए मंत्री पटेल ने बताया कि देश भर में 1,78,000 से अधिक आयुष्मान आरोग्य मंदिर स्थापित किए गए हैं। इन केंद्रों पर देश की आम जनता को 12 सेवाओं का पैकेज उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है, जिससे जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाई जा सके।

एनीमिया को लेकर किए जा रहे विशेष प्रयासों का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने छह लाभार्थी श्रेणियां बनाई हैं। इनमें छह साल से कम उम्र के बच्चे, पांच से नौ साल के बच्चे, 10 से 19 साल के बच्चे, प्रजनन आयु वर्ग की महिलाएं, स्तनपान कराने वाली माताएं और गर्भवती महिलाएं शामिल हैं। इन सभी को आईएफए (आयरन फोलिक एसिड) टैबलेट्स और बच्चों को आईएफए सिरप देकर एनीमिया को कम करने की कोशिश की जा रही है।

ये सभी प्रयास राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत संचालित होते हैं, जिसके प्रस्ताव राज्य सरकारें अपनी पीआईपी (प्रोग्राम इम्प्लीमेंटेशन प्लान) के माध्यम से केंद्र को भेजती हैं। मंत्री ने जोर देकर कहा कि इन प्रयासों में किसी भी बच्चे को छोड़ा नहीं जाता है, चाहे वह आदिवासी इलाके का हो या किसी अन्य क्षेत्र का। उनका उद्देश्य हर बच्चे को एनीमिया मुक्त बनाना है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अब सरकार ने डिजिटल हस्तक्षेपों के माध्यम से 'लाइन लिस्टिंग ऑफ केसेस' शुरू की है। इसका अर्थ है कि एक-एक बच्चे की डिजिटल ट्रैकिंग और मॉनिटरिंग की जा रही है। किस इलाके का कौन सा बच्चा किस आयु वर्ग का है और उसकी एनीमिया की स्थिति क्या है, इसकी सटीक जानकारी अब उपलब्ध है। इसके अलावा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, आशा (ASHA) कार्यकर्ताओं और फील्ड स्तर के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को निरंतर प्रशिक्षित किया जा रहा है, ताकि वे एक-एक बच्चे और माता को मॉनिटर कर सकें और उन तक एनीमिया की दवाइयां और टैबलेट पहुंचा सकें।

संसद में जनहित के मुद्दों पर बहस का महत्व

यह संसदीय बहस दर्शाती है कि कैसे जन प्रतिनिधि अपने क्षेत्रों की मूलभूत समस्याओं को राष्ट्रीय मंच पर उठाते हैं। एनीमिया और कुपोषण जैसे मुद्दे न केवल स्वास्थ्य से जुड़े हैं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास से भी गहरे रूप से संबंधित हैं। पिछड़े और आदिवासी क्षेत्रों में इन समस्याओं की गंभीरता और भी बढ़ जाती है, जहां स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और जागरूकता का अभाव एक बड़ी चुनौती है।

सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों, जैसे आयुष्मान आरोग्य मंदिर और डिजिटल ट्रैकिंग, सराहनीय हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इन योजनाओं का क्रियान्वयन और भी महत्वपूर्ण है। सांसद जाटव द्वारा उठाए गए आंगनबाड़ियों की जर्जर हालत और स्वास्थ्यकर्मियों की कमी जैसे मुद्दे इस बात की ओर इशारा करते हैं कि नीतियों और उनके वास्तविक क्रियान्वयन के बीच अभी भी एक बड़ा अंतर है, जिसे पाटने की आवश्यकता है।

आगे की राह और चुनौतियां

कुपोषण और एनीमिया से मुक्ति पाना एक लंबी और सतत प्रक्रिया है। इसमें केवल स्वास्थ्य मंत्रालय ही नहीं, बल्कि महिला एवं बाल विकास, शिक्षा, ग्रामीण विकास और यहां तक कि पेयजल एवं स्वच्छता जैसे मंत्रालयों का भी समन्वय आवश्यक है। सांसद द्वारा उठाए गए सवालों ने सरकार को इन चुनौतियों पर पुनः विचार करने और अपनी रणनीतियों को और अधिक प्रभावी बनाने का अवसर दिया है।

यह सुनिश्चित करना कि हर बच्चे को पर्याप्त पोषण मिले, हर गर्भवती महिला को उचित देखभाल मिले और हर व्यक्ति को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हों, एक स्वस्थ और सशक्त राष्ट्र के निर्माण के लिए अत्यंत आवश्यक है। संसद में हुई यह बहस इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो सरकार और जनता दोनों को इस गंभीर मुद्दे के प्रति सचेत करती है।

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