Highlights
- अरविंद सिंह भाटी ने युवाओं को राष्ट्र की रणनीतिक संपत्ति बताया और उनके संरक्षण पर जोर दिया।
- कौशल की कमी और डिग्री पर अत्यधिक निर्भरता को एक बड़ी चुनौती बताया, 'स्किल फर्स्ट, डिग्री लेटर' पर बल दिया।
- रोबोटिक्स और एआई के बढ़ते प्रभाव से उत्पन्न होने वाली भविष्य की चुनौतियों के लिए युवाओं को तैयार रहने का आह्वान किया।
- युवाओं को डिजिटल भटकाव से बचकर डिजिटल अनुशासन अपनाने और राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने की प्रेरणा दी।
मूंगथला आबूरोड: मूंगथला आबूरोड (Moongthala Abu Road) में आयोजित युवा सम्मेलन (Youth Conference) में अरविंद सिंह भाटी (Arvind Singh Bhati) ने युवाओं को राष्ट्र की रणनीतिक संपत्ति बताया। उन्होंने कौशल विकास, डिजिटल अनुशासन और भविष्य की चुनौतियों पर जोर दिया।
युवा सम्मेलन को संबोधित करते हुए अरविंद सिंह भाटी ने कहा कि आज के समय में ऐसे युवा सम्मेलनों की आवश्यकता और प्रासंगिकता को समझना बेहद जरूरी है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जहां युवाओं की भीड़ होती है, वहां केवल शोर नहीं होता, बल्कि संभावनाओं की भी गुंजाइश बढ़ जाती है। भारत की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा युवाओं का है, और हमारे पास दुनिया की सबसे बड़ी युवा जनसांख्यिकी है।
युवा भारत की सामरिक संपत्ति
भाटी ने कहा कि विश्व में सबसे अधिक डिजिटली एक्टिव युवा भी भारत में ही हैं। इसलिए वे मानते हैं कि भारत में युवा केवल भीड़ नहीं हैं, बल्कि हमारी रणनीतिक संपत्ति हैं, हमारे राष्ट्र की संपत्ति हैं। इस संपत्ति के संरक्षण की जिम्मेदारी हमसे एक पीढ़ी पहले के लोगों की भी है और हमारी भी है। उन्होंने बताया कि जिस संगठन से वे आते हैं, वह कहता है कि आज का छात्र आज का नागरिक है, और वह आज भी देश और समाज के लिए उतना ही जिम्मेदार है जितना वह कल होगा।
कौशल विकास की चुनौती
भाटी ने युवाओं के सामने आने वाली सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक 'स्किल मिसमैच' यानी कौशल की कमी को बताया। उन्होंने जोधपुर के जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय में 2022 में छात्र संघ अध्यक्ष रहने के अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि हम विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को केवल डिग्री पाने का परिसर समझ बैठे हैं। हम डिग्री तो ले लेते हैं, लेकिन हममें कौशल की कमी होती है।
उन्होंने इस सोच पर काम करने की आवश्यकता पर जोर दिया कि 'स्किल फर्स्ट और डिग्री लेटर'। भाटी ने कहा कि हम जिस विषय की तैयारी कर रहे हैं या जिस कोर्स का अध्ययन कर रहे हैं, हमें उसके कौशल का ज्ञान होना चाहिए। यदि हम सिर्फ डिग्री लेकर बैठे रहे तो आने वाला समय बहुत भयावह हो सकता है।
रोबोटिक्स और एआई का भविष्य
भविष्य की चुनौतियों पर बात करते हुए अरविंद सिंह भाटी ने रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के समिश्रण को एक बड़ी चुनौती बताया। उन्होंने कहा कि यह आज से दो दशक बाद मैन पावर के सामने बहुत बड़ी चुनौती खड़ी करने वाली है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण टेस्ला की एफएसडी (फुल सेल्फ ड्राइव) कारें हैं, जिन्हें चलाने के लिए किसी ड्राइवर की जरूरत नहीं होती। यह तकनीक हाईली स्किल्ड वर्कर्स और इंजीनियर्स ने विकसित की है।
भाटी ने कहा कि यह तो सिर्फ शुरुआत है। आज से 10-15 साल बाद यह तकनीक इस देश और समाज में किस रूप में अस्तित्व में आएगी, इस पर हमें सोचना पड़ेगा। यदि हम अपनी बुद्धिमता और ज्ञान कौशल को नहीं बढ़ाएंगे, तो हम वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बहुत पीछे रह जाएंगे।
एआई के उन्नत संस्करण: एजीआई और एएसआई
कुछ वैज्ञानिकों का दावा है कि एआई के बाद उसका नेक्स्ट अपग्रेडेड वर्जन एजीआई (आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस) है, जिसकी संभावना अगले एक दशक में अस्तित्व में आने की कही जा रही है। उसके एक दशक बाद एएसआई (आर्टिफिशियल सुपर इंटेलिजेंस) नाम का टर्म अस्तित्व में आता है, जिसकी भविष्यवाणी दो दशक बाद वैज्ञानिकों द्वारा की जा रही है।
भाटी ने युवाओं से प्रश्न किया कि उस समय की प्रतिस्पर्धा में हम कैसे जीवित रहेंगे? हम अपने अस्तित्व को कैसे बचाए रखेंगे? अपने कौशल के साथ-साथ हम अपने देश, परिवार और समाज में अपनी भूमिका को कैसे स्थापित कर सकेंगे? इन सभी प्रश्नों पर हमें अभी से विचार करना होगा।
डिजिटल अनुशासन की आवश्यकता
अरविंद सिंह भाटी ने आज के युवाओं के डिजिटल व्यवहार पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि युवा डिजिटली पोकीन में डूबे हैं, डिजिटली कंफ्यूज्ड हैं, या जिन्हें वे डिजिटली डिस्ट्रक्टेड कहते हैं। इससे बाहर आने और डिजिटली डिसिप्लिन सीखने की आवश्यकता है, डिजिटली शिष्टाचार सीखने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि हम लोग घंटों इंस्टाग्राम रील्स, फेसबुक, ट्विटर पर स्क्रॉल करते हुए अपने दिन का अधिकांश समय बिता देते हैं। इससे हो सकता है कि हमारा समय तो निकल रहा है, परंतु हमें हासिल क्या हो रहा है? हमारे जीवन में उसकी उपयोगिता क्या बढ़ रही है? हमारे जीवन में वह काम कहां आ रही है? इस पर सोचना पड़ेगा। यदि हम इन सब बातों पर विचार नहीं करेंगे तो हम बहुत पीछे रह जाएंगे।
संस्कृति और आधुनिकता का संगम
भाटी ने माना कि आजकल मीडिया का शोर इतना है कि वह गलत को सही साबित कर देता है, परंतु सत्य आखिर में भी सत्य रहेगा। उन्होंने कहा कि हमारी जिम्मेदारी है कि हम सामूहिक रूप से मिलकर परिवार और आज की परंपराओं को आधुनिकता के साथ किस प्रकार जोड़ेंगे। इसमें यह भी ध्यान रहे कि हमारी संस्कृति की भूमिका भी बनी रहे।
राजनीति में युवाओं की भागीदारी
खासतौर से युवाओं को राजनीति में आने की आवश्यकता पर बल देते हुए भाटी ने कहा कि राजनीति में क्षितिज के पार देखने वाले युवाओं की नितांत आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हमारे युवाओं के पास शक्ति बहुत है, पर विजन की बहुत कमी दिखती है। हम ताकत और ऊर्जा बहुत दिखाते हैं, पर जब कोई बड़े नेता हमसे हमारे विजन के बारे में पूछते हैं, वहां हम पीछे हो जाते हैं।
उन्होंने कहा कि हमारी ओरिएटिंग स्किल्स नहीं हैं, हमारा नॉलेज बेस नहीं है। जब तक हम अपना नॉलेज बेस नहीं बढ़ाएंगे, हमारी बोलने की क्षमता को नहीं बढ़ाएंगे, तब तक हमें कोई नहीं पूछेगा।
21वीं सदी भारत की सदी
अपने संबोधन के अंत में अरविंद सिंह भाटी ने कहा कि व्यक्ति कितना ही श्रेष्ठ क्यों न हो, त्यागी क्यों न हो, योजना कुशल क्यों न हो, समाज कभी नहीं रुकता। समाज की अखंड गंगा बहती रहती है। उन्होंने युवाओं से कहा कि हम जो सुनते हैं कि 21वीं सदी भारत की सदी है, यदि हम इस प्रकार शीतलता के साथ बैठे रहे तो निश्चित रूप से वह दिन और दूर होगा।
परंतु यदि हम अभी से जागे, अभी से हमने आगे की तैयारियां शुरू कर दी, तो यह समूचा विश्व, वैश्विक दृष्टि से भारत को अलग भाव से देखेगा और हम विश्व में और सम्मान के साथ खड़े होंगे।
आयोजकों और सफल युवाओं को बधाई
उन्होंने कार्यक्रम का आयोजन करवाने वाले योगेश भाई का बहुत-बहुत धन्यवाद किया। भाटी ने बताया कि जब वे लंदन में थे, तब उनकी योगेश भाई से मुलाकात हुई थी और वहीं से इस कार्यक्रम में शामिल होने का आमंत्रण मिला था।
अंत में, उन्होंने हाल ही में RAS बने भैराराम को शुभकामनाएं दीं। भाटी ने अपेक्षा व्यक्त की कि वे यहां के आदर्श बनकर आने वाली पीढ़ी को सिखाएंगे कि किस प्रकार प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करनी है, किस प्रकार खुद को तैयार करना है।
उन्होंने युवाओं को सलाह दी कि जिंदगी में जो भी काम करें, उसमें तल्लीनता से लगें। सही होगा या गलत, यह फैसला छोड़ें, परंतु किसी काम में डूबने की आदत डालें। असफलताएं कभी असंभव नहीं हैं, असफलताओं को भी आप संभव कर सकते हैं। उन्होंने युवाओं को आलोचनाओं से न डरने और लगे रहने का संदेश दिया।
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