नई दिल्ली | भारत में चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और संसाधनों के बेहतर उपयोग के उद्देश्य से संसद द्वारा 'एक राष्ट्र - एक चुनाव' विधेयक पर चर्चा के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया गया है। इस समिति की अध्यक्षता पाली लोकसभा क्षेत्र से सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री पीपी चौधरी को सौंपी गई है।
जेपीसी की संरचना और भूमिका
संसद द्वारा जारी बुलेटिन के अनुसार, इस समिति में कुल 39 सदस्य हैं, जिनमें 27 लोकसभा सांसद और 12 राज्यसभा सांसद शामिल हैं। समिति का उद्देश्य विधेयक के हर पहलू का गहन मूल्यांकन करना और इस पर व्यापक चर्चा करना है। सांसद चौधरी ने अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी मिलने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि "इस विधेयक का लक्ष्य भारत की चुनावी प्रक्रिया में क्रांतिकारी बदलाव लाना है। समिति का प्रयास यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी पक्षों की राय विधेयक में समाहित हो।"
चौधरी की कार्यशैली और अनुभव
तीसरी बार सांसद बने पीपी चौधरी को उनके कुशल नेतृत्व और कार्यशैली के लिए सराहा जाता रहा है। इससे पहले, जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) विधेयक, 2022 और व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 पर बनी संयुक्त संसदीय समितियों में उनके नेतृत्व को पक्ष-विपक्ष दोनों ने सराहा था।
वह 45 वर्षों से अधिक के कानूनी अनुभव के साथ संवैधानिक कानून में विशेषज्ञता रखते हैं और राजस्थान उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक में अपनी सेवा दे चुके हैं। उनकी गहन समझ और अनुभव के कारण उन्हें मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री बनाया गया था।
समिति के अन्य सदस्य
जेपीसी में विभिन्न दलों के वरिष्ठ नेताओं को शामिल किया गया है। लोकसभा से मनीष तिवारी, सुप्रिया सुले, भर्तृहरि महताब, डॉ. संबित पात्रा, और प्रियंका गांधी वाड्रा जैसे प्रमुख नाम समिति का हिस्सा हैं। राज्यसभा से रणदीप सुरजेवाला, विजय साईं रेड्डी, और संजय सिंह जैसे नेता शामिल किए गए हैं।
आगे की प्रक्रिया
सांसद चौधरी ने समिति की पहली बैठक में यह सुनिश्चित करने का आश्वासन दिया कि सभी सदस्यों को विधेयक पर चर्चा करने और सुझाव देने का पूरा अवसर मिलेगा। समिति की अंतिम रिपोर्ट को सदन में पेश करने से पहले सभी संशोधनों और सुझावों पर व्यापक विचार-विमर्श किया जाएगा।
'एक राष्ट्र - एक चुनाव' पहल को भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। इसके जरिए देश में बार-बार चुनाव कराने की प्रक्रिया से होने वाली आर्थिक और प्रशासनिक परेशानियों को कम करने का प्रयास किया जाएगा।