Highlights
- नसीराबाद ने 20 नवंबर को अपना 207वां स्थापना दिवस मनाया।
- इसकी नींव 20 नवंबर, 1818 को सर डेविड ऑक्टरलोनी ने रखी थी।
- 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का शंखनाद यहीं से हुआ था।
- यहां आज भी ऐतिहासिक जामा मस्जिद और मार्टिन मेमोरियल चर्च मौजूद हैं।
अजमेर: राजस्थान (Rajasthan) के अजमेर (Ajmer) जिले में स्थित ऐतिहासिक शहर नसीराबाद (Naseerabad) ने 20 नवंबर को अपना 207वां स्थापना दिवस मनाया। ब्रिटिश जनरल सर डेविड ऑक्टरलोनी (Sir David Ochterlony) ने 20 नवंबर, 1818 को इसकी नींव रखी थी, और यह 1857 की क्रांति (1857 Revolt) का महत्वपूर्ण केंद्र रहा।
अजमेर से 22 किलोमीटर दूर अरावली पर्वतमालाओं के बीच बसे इस शहर की नींव 20 नवंबर, 1818 को ब्रिटिश जनरल सर डेविड ऑक्टरलोनी ने रखी थी। इससे पहले इसे कैंटोनमेंट के नाम से जाना जाता था। ऑक्टरलोनी द्वारा नींव रखे जाने के बाद, मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय ने उन्हें नसीर-उद-दौला की उपाधि से सम्मानित किया, जिसके बाद यह जगह नसीराबाद के नाम से प्रसिद्ध हुई।
1857 की क्रांति का शंखनाद स्थल
नसीराबाद का नाम इतिहास के पन्नों में 28 मई 1857 को अचानक चर्चाओं में आया, जब इस छावनी में देशभक्तों ने विद्रोह कर अंग्रेजी शासन को खुली चुनौती दी। यह वह भूमि है जहां से राजपूताना में बगावत का शंखनाद सबसे पहले गूंजा था। स्वतंत्रता संग्राम की याद में बना कीर्ति स्तंभ आज भी उसी विद्रोह की कहानी सुनाता है।
अंग्रेज ब्रिगेडियर नॉक्स ने यहां सैन्य छावनी की स्थापना की, जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शुरुआती दौर में यहां अंग्रेज अफसरों का ही बोलबाला था। स्कूल, पोस्टमास्टर, थानेदार, जज- सभी अंग्रेज अधिकारी थे, जिसका प्रभाव आज भी नसीराबाद की संरचना में दिखाई देता है।
वीरों की गाथाएं और अन्य विद्रोह
नसीराबाद को विजय सिंह पथिक, चांदकरण शारदा, मेजर अब्दुल हमीद और हवलदार गोविंद कहार जैसे महान वीरों के नाम से भी जाना जाता है। 18 जून 1847 को जवाहर सिंह और डूंगर सिंह (डूंगरी डाकू) ने अपने ब्रिटिश विरोधी सहयोगियों के साथ मिलकर नसीराबाद छावनी पर सफल आक्रमण किया था। उन्होंने ब्रिटिश खजाना और शस्त्रागार लूटा, गॉड हाउस में आग लगाई और अंग्रेज गार्ड को मार गिराया। इन वीर देशप्रेमियों की गाथाएं आज भी भाट और चारण गाते हैं।
1857 तक नसीराबाद, नीमच, देवली और एरिनपुर प्रमुख फौजी मुकाम थे। उस समय नसीराबाद में भारतीय तोपखाना और फर्स्ट मुंबई लांसर जैसी दो रेजिमेंट तैनात थीं।
नसीराबाद की ऐतिहासिक और स्थापत्य पहचान
5665.42 एकड़ में फैला यह शहर आज भी एक प्रमुख सैन्य छावनी है। यहां कई ऐतिहासिक संरचनाएं मौजूद हैं। इसकी भव्य स्थापत्य कला में से यहां बनी जामा मस्जिद बहुत खास है, जहां एक साथ 8000 लोग नमाज अदा कर सकते हैं।
इसके अलावा अंग्रेजों द्वारा बनाए गए गेंदघर, मिशन स्कूल, और मार्टिन मेमोरियल चर्च आज भी नसीराबाद की पहचान का प्रतीक हैं। कहा जाता है कि इस चर्च का निर्माण महामारी से बचाव हेतु बिलियन मार्टिन ने कराया था।
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